मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण, जाने क्या है महाभियोग

प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी ने कहा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। जाने क्या है महाभियोग प्रस्ताव?

By Nawal MishraEdited By: Publish:Sat, 21 Apr 2018 07:45 PM (IST) Updated:Sun, 22 Apr 2018 11:36 AM (IST)
मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण, जाने क्या है महाभियोग
मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण, जाने क्या है महाभियोग

फतेहपुर (जेएनएन)। प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी ने कहा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके लिए उन्होंने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कैसे नरेंद्र मोदी हटें इस पर विपक्ष जुटा है। उन्होंने कहा विपक्ष के पास मुद्दा ही नहीं बचा है।  उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष ने महाभियोग का नोटिस दिया है। इस प्रस्ताव में पद का दुरुपयोग और दु‌र्व्यवहार की बात की गयी हैं। कांग्रेस और दुसरे दलों ने राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू से मुलाकात के बाद इस प्रस्ताव की जानकारियां सार्वजनिक भी कीं थी। 

राजनीति नहीं होनी चाहिए

मंत्री पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह पटेल के फतेहपुर आवास में पत्रकारों से पचौरी ने कहा जस्टिस लोया की मौत स्वाभाविक मौत थी। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा जस्टिस लोया के परिवार वाले कुछ नहीं कह रहे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा राम मंदिर आस्था से जुड़ा है। यह राजनीतिक  मुद्दा नहीं है। अब तो मंदिर मुद्दा रह ही नहीं गया। अब तो जमीन किसकी है। यह मुख्य बात है।

क्या है महाभियोग प्रस्ताव?

महाभियोग का इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों को हटाने के लिए होता है। महाभियोग का ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग तब लाया जा सकता है जब संविधान उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो  लोकसभा में लाने के लिए 100 और राज्यसभा के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर होना ज़रूरी हैं। सदन के स्पीकर या अध्यक्ष प्रस्ताव स्वीकार या ख़ारिज कर सकते हैं, ऐसे समिति जांच करती है। समिति में एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस और एक प्रख्यात व्यक्ति होता है।

 महाभियोग जनतंत्र के नाम पर आत्मघाती पहल 

महाभियोग प्रस्ताव पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने तल्ख शब्दों में नाराजगी जताई है। इस कदम को जनतंत्र के नाम पर आत्मघाती पहल करार दिया है। अधिवक्ताओं ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया को चीफ जस्टिस के पक्ष में मजबूती के साथ खड़े होकर देशव्यापी विरोध करना चाहिए, ताकि विपक्ष प्रस्ताव को वापस लेने को मजबूर हो। यह भी कहा कि न्यायाधीशों को राजनीति में न घसीटा जाए।  निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता बीएन सिंह ने कहा कि सीजेआइ पर कांग्रेस व अन्य दलों की ओर से लाया गया महाभियोग न्याय पालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता को चोट पहुंचाने वाला प्रयास है। यह कदम जजों पर अनुचित दबाव डालकर मनमुताबिक फैसला कराने की कोशिश है, जो अत्यंत निंदनीय कृत्य है। इससे न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई है और न्याय व्यवस्था पर अविश्वास का माहौल बनाया जा रहा है। हाईकोर्ट बार इलाहाबाद के पूर्व अध्यक्ष आरके ओझा ने कहा कि यह देश में अराजकता फैलाने की तरफ बढ़ा कदम है। जनतंत्र के तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका में से सांसदों, विधायकों व नौकरशाही से जनता का विश्वास उठ चुका है। जनता का न्याय के लिए अदालतों पर भरोसा कायम है। इसी भरोसे को तोडऩे की कार्यवाही की गई है। जब सुप्रीम कोर्ट के जजों के फैसले पसंद न होने पर सवालों के कटघरे में होंगे तो जनतंत्र कैसे सुरक्षित रहेगा। विपक्षी दलों ने जनतंत्र के नाम पर आत्मघाती पहल की है। लोया केस से नाराज लोग पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते थे। 

न्यायपालिका पर दबाव बनाने की राजनीति

पीयूसीएल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरके जैन ने कहा कि यह एक राजनीतिक कदम है, जो सफल नहीं होगा, यह जानते हुए भी उठाया गया है। सिर्फ राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रस्ताव लाया गया है, क्योंकि सीजेआइ पर महाभियोग लाने के लिए कदाचार या अन्य कोई आरोप नहीं है। यह केवल न्यायपालिका पर दबाव बनाने की राजनीति है। कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के अध्यक्ष एएन त्रिपाठी ने कहा कि केवल दो ही आधारों पर जज के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है। सिद्ध कदाचार या फिर असमर्थता, जिन पांच आधारों पर प्रस्ताव लाया गया है, वे राजनीतिक हैं। किसी फैसले से नाखुश होकर महाभियोग नहीं लाया जा सकता। चुनावी फायदे के लिए यह कार्रवाई की गई है, जिसने न्याय व्यवस्था को सवालों के दायरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व अध्यक्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया वीसी मिश्र ने कहा कि महाभियोग न्याय व्यवस्था के खिलाफ भद्दा मजाक है। राजनीतिक लाभ के लिए न्याय व्यवस्था पर कुठाराघात है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया को चीफ जस्टिस के साथ खड़े होकर देशव्यापी विरोध कर प्रस्ताव वापस लेने का दबाव बनाना चाहिए। अपील करनी चाहिए कि न्यायाधीशों को राजनीति में न घसीटा जाए, क्योंकि यह जनतंत्र के लिए घातक कदम है। 

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