पश्चिमी उप्र पहुंची सेहत का खजाना बड़सेमा... कई खासियत से है भरपूर

तमिलनाडु, पूर्वांचल और बिहार में प्रचलित बड़सेमा कई खासियत से भरपूर है। पी-फैमिली की बड़सेमा प्रोटीन युक्त होने के साथ ही कीट नहीं फटकते।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Fri, 09 Nov 2018 03:51 PM (IST) Updated:Fri, 09 Nov 2018 03:51 PM (IST)
पश्चिमी उप्र पहुंची सेहत का खजाना बड़सेमा... कई खासियत से है भरपूर
पश्चिमी उप्र पहुंची सेहत का खजाना बड़सेमा... कई खासियत से है भरपूर

बरेली(स्पेशल डेस्क)। सेहत का खजाना कही जाने वाली पी-फैमिली की कैनेवेलिया ग्लैडियाटा यानी बड़सेमा (बेलदार सब्जी) पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी पहुंच गई है। केंद्रीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) और केंद्रीय कृषि विज्ञान केंद्र ने इसे क्षेत्र में विकसित करने का बीड़ा उठाया है। अभी तक इसका फल तमिलनाडु, पूर्वांचल और बिहार में ही प्रचलित था। बड़सेमा कई खासियत से भरपूर है। बड़े साइज को देखते हुए इसे पी-फैमिली की बड़ी बहन भी कहते हैं। प्रोटीन युक्त होने के साथ ही बड़सेमा पर कीट नहीं फटकते। इस लिहाज से कीटनाशक बिल्कुल डालने की जरूरत नहीं होती और इसकी पौष्टिकता बढ़ती है। 

200 ग्राम तक वजनी एक फली

दलहनी फसल के अंतर्गत बड़सेमा एक बेलदार सब्जी है। इसका पौधा करीब छह से दस फीट तक लंबा होता है। वहीं, इसकी एक-एक फली करीब 100 से 150 ग्राम वजनी और 10 सेंटीमीटर से 15 सेमी तक लंबी होती है। कई बार बड़सेमा की फली 200 ग्राम तक वजनी होती है। इसकी लंबाई और चौड़ाई के लिहाज से इसे स्वोर्ड बीन (तलवार जैसी सेम) भी कहते हैं।

सहफसल के रूप में अच्छा स्रोत

बड़सेमा को मेढ़ों पर सहफसल के रूप में छायादार स्थान पर उगाया जा सकता है। फसल सूखे की स्थिति में सहनशील होती है। वहीं, कीट का असर नहीं है। फसल के बीज 5-8 किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 60 सेमी दूरी पर बोए जाते हैं। हल्के सर्द मौसम में फसल अच्छी मानी जाती है।

75 दिन में मिलने लगती है फली

बड़सेमा की खेती करने के बाद इसमें पहली बार 75 दिन बाद फलियां मिलनी शुरू हो जाती हैं। इसकी एक-एक फसल 110 से 120 दिन की होती है। सही तरह से देखभाल करने पर इससे दो तीन वर्षों तक सफलतापूर्वक फसल ली जा सकती है। एक हेक्टेयर में 75 कुंतल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार ले सकते हैं। इसके बीजों का छिलका उतारकर व उबालकर खाना चाहिए।

इलाकाई किसानों को किया जा रहा जागरूक

बड़सेमा की फसल स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर होने के साथ आर्थिक रूप से मजबूती दे सकती है। इलाकाई किसानों को भी इसके लिए जागरूक किया जा रहा है।

- डॉ.राजकुमार, निदेशक, आइवीआरआइ 

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