हे नागरिक ! हमें कर दो माफ, पालिका ने है पाला-पोसा

देर रात तक दुष्यंत कुमार की कविताओं में डूबे नागरिक को कब नींद आ गई, पता नहीं। भोर की नींद का तो

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jun 2017 01:01 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jun 2017 01:01 AM (IST)
हे नागरिक ! हमें कर दो माफ, पालिका ने है पाला-पोसा
हे नागरिक ! हमें कर दो माफ, पालिका ने है पाला-पोसा

देर रात तक दुष्यंत कुमार की कविताओं में डूबे नागरिक को कब नींद आ गई, पता नहीं। भोर की नींद का तो अपना ही मजा है, लेकिन यह क्या ? कानों में भौंरों की मा¨नद भनभनाहट सी आवाज गूंज रही। अलसाया नागरिक सिर खुजलाते हुए आंखें खोला तो मानों सैनिकों ने घेरते हुए उस पर हमला बोल दिया हो। इतने सैनिक कहां से आज इधर आ पड़े ? माजरा उसे समझ में नहीं आ रहा था तो खिड़की से झांका। इतने तड़के ही सड़कों पर काफी चहल-पहल देख सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट समझने में देर नहीं लगी। अरे भई, आज तो 21 जून है, लेकिन अचानक पालिका के नरक से निकले सैनिक रूपी मच्छरों ने रिहायशी आवासों में कैसे हमला बोल दिया ? तभी भनभनाहट से उनका दर्द कानों में गूंजने लगा। मानो मच्छर अपनी व्यथा कह रहे हो- हे ! नागरिक हमें माफ कर दो। मेरा कोई दोष नहीं है। वर्षों से तो पालिका ने हमें पाला-पोसा, हमें बसने के लिए नालियों को कीचड़युक्त छोड़ा और हमारा कुनबा बढ़ता गया। अतिक्रमण हटाओ अभियान सरीखे आज अचानक हमारे घरों में जहर रूपी चूना फेंक कर हमें दरबदर कर दिया। जान बचाकर हम तुम्हारे घर में शरण लेने आ गए तो खुद का रक्तदान कर हमें बचा लो।''

हालात से परेशान नागरिक सोचा, चलो भई अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कम से कम वर्षों से चूने का इंतजार कर रही सड़कों व नालियों में आज चूने का छिड़काव तो किया गया। हम अपना दर्द शह लेंगे, लेकिन यह पालिका आए दिन ऐसा करती तो न ही मच्छरों का कुनबा बढ़ता और न तो नागरिकों की नींद हराम होती। खैर छोड़िए इन बातों को, आज तो अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। सो नागरिक को भी हाकिमों सहित बड़े-बड़े नेताओं का योगासन देखना है। घर की देहरी लांघ नागरिक चल पड़ा शहर के योग स्थलों का जायजा लेने। सड़क पर आज वो चेहरे भी नजर आए जो मूंदा आंख कतौं कछु नाहीं'' के सिद्धांत पर विश्वास रखते हैं। सफेद टी-शर्ट का तो आज खास जलवा दिख रहा। नागरिक ठंडी सड़क की ओर जाने के लिए मुड़ा तो सिधारी पुल के पास हाथों में फावड़ा लिए सैकड़ों लोग खड़े नजर आए। नागरिक सोचा, अरे यह कैसा योग है जो वे फावड़े के साथ करेंगे।

नागरिक के पांव वहीं ठहर गए, उसकी आंखों के सामने अजीब नजारा था। दर्जनभर सफेद लकदकधारी, फूली हुई तोंद वाले भलमानुषों का समूह हंसी-ठिठोली करता पुल के एक साइड से योग के लिए आगे बढ़ रहा था तो पुल के दूसरी साइड पिचके गाल, धंसे पेट, दोहरी कमर, हाथ में फावड़ा, मुंह से फुक-फुक कर निकलते धुएं के साथ एक अदद मजदूरी को तलाशती आंखें। वहां रूकने वाली हर गाड़ियों को घेरकर वे काम मांगने की गुजारिश करते रहे। जिसे मौका मिला उसकी आंखें चमक उठीं, लेकिन जिसे इन्कार मिला वे मायूस नजर आए। इसी बीच तोंद वाले शर्माजी अपने साथी वर्माजी से बोले कि आज सौ बार कपालभाती करके ही दम छोड़ूंगा। इस तोंद को तो अंदर डालके रहूंगा। वर्माजी ही-ही करते हुए बोले, शर्माजी कपालभाती से काम नहीं चलेगा। शर्माजी फुटबाल को कम करने के लिए दौड़ लगाने के साथ ही भोजन पर भी कंट्रोल करिए। दूसरी ओर हरिया कल्लू से बोला कि आज फिर मलकिनियां बीमार हव, आज मजूरी मिली त वोके देखाईब डग्डरी में। कलूआ बोला, अरे चाचा का बताईं तू मलकिनियां के बीमारी से परेशान हऊआ और हम खर्चा खोराकी में। चाचा का करी आज अगर मजूरी ना मिली त फांका ही काटेके पड़ी।

इसी उधेड़बून में खोया नागरिक पहुंच गया योग स्थल। वहां का नजारा ही गजब था। पेट के बल लेटे हुए लोग सांप की तरह जमीन पर लोट रहे थे। इंस्ट्रक्टर माइक से बोला, यह सर्पासन है। इससे तोंद कम करने में मदद मिलेगी, पेट अंदर चला जाएगा, शरीर हल्का होगा, ब्लड प्रेशर और सूगर मेनटेन रहेगा। नागरिकों के मन में सवाल कौंधता है कि यह तो भरे पेट को कम करने का योग है भई। क्या कोई ऐसा भी योग है जो खाली पेट को भर सके। सभी आंखें फाड़ देखने लगे। तभी एक ने जवाब दिया, गजब हो यार। देख नहीं रहे हैं, पूरा शासन-प्रशासन योग कर रहा है। पीएम कर रहे हैं, सीएम कर रहे हैं, कोई सेकुलर योग तो कोई धर्म योग कर रहा है। योग की महिमा अनंत है। कोई साइकिलासन कर रहा है तो राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी घोषित होते ही 22 दलों ने मिलकर नया योगासन शुरू कर दिया है। यहीं देख लो भई, योग में आला हाकिम भी आए हैं। शहर के साथ ही नगर, गांव-देहात हर जगह योगासन चल रहा है। थाना व तहसील सब योगमय हो गया है। सभी अनुलोम-विलोम कर रहे हैं। सफाई करने वालों को शीर्षासन करने का हुक्म है और आप हो कि खाली पेट भरने का योग पूछ रहे हो। क्या आजादी के 60 सालों में खाली पेट नहीं भरा ? अगर भरा है तो तोंद को कम करने का योग करो। अगर नहीं तो जब आज तक यह सवाल नहीं उठाए तो अब क्यों ? मुझे तो उस वैद्य की विद्या पर तरस आता है, जो भूखों को सेहत की दवा देता है। यह सुन नागरिक को योग की महिमा समझ में आने लगी और वह दुष्यंत कुमार के गीत गुनगुनाते हुए चल पड़ा..

न हो कमीज तो पांवों से पेट ढक लेंगे,

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।

-नागरिक

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