‘अटल’ स्मृतियां संजोने को व्याकुल पूर्व प्रधानमंत्री का यह गांव

भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष के बिना होगा पहला चुनाव। पूरी ब्रजभूमि में घुली हैं अटल बिहारी वाजपेयी की यादें।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 10:09 AM (IST) Updated:Tue, 02 Apr 2019 10:09 AM (IST)
‘अटल’ स्मृतियां संजोने को व्याकुल पूर्व प्रधानमंत्री का यह गांव
‘अटल’ स्मृतियां संजोने को व्याकुल पूर्व प्रधानमंत्री का यह गांव

आगरा, अजय शुक्‍ला। आजादी के बाद लोकतंत्र का यह पहला उत्सव है, जिसमें भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी का आभामंडल नहीं होगा। यूं तो अटल जी पूरे देश के थे, दलीय सीमा से इतर जन-जन के, लेकिन ब्रज के कण-कण में वह माटी की खुशबू संग समाए हैं। कोई भी चुनाव रहा हो, मथुरा से बटेश्वर तक फैली ब्रज भूमि में उनके ओज भरे भाषण बड़ी संजीदगी और उम्मीद के साथ गाये जाते रहे। अटल जी के भाषण कविता की तरह होते और अपनत्व अलंकार सरीखा। अब यह उम्मीदें मुरझाई हैं। 

आगरा से इटावा जाती टू-लेन मक्खनी सड़क बाह तहसील से बटेश्वर के लिए मुड़ जाती है। सड़क पर कार दौड़ाते हुए अहसास होता है कि हम किसी आदर्श गांव की तरफ जा रहे हैं। फिर, ढलान से उतरते हुए सबसे पहले यमुना घाटी के किनारे बने पांच सौ से हजार साल प्राचीन 101 शिवमंदिरों की श्रंखला दृष्टिगोचर होती है। आबादी इसी के इर्द-गिर्द छितरायी। अब आधे मंदिर ही बचे हैं लेकिन यह विहंगम दृश्य देखकर अटल जी के विराट व्यक्तित्व और विशाल हृदयता की गहरी जड़ों का प्रथम आभास मिलता है।

चुनावी माहौल में भी यहां अभी चुप्पी छाई है। भगवान बटेश्वरनाथ के दर्शन को आसपास के जिलों से कार-बाइक द्वारा पहुंचे दर्शनार्थी हों या प्रसाद व खानपान की दुकानें या फिर इधर-उधर सुस्ताते, गपियाते फुर्सतिए, रोजमर्रा की गपशप में ही व्यस्त नजर आते हैं। हम रुख करते हैं, अटल जी के पैतृक आवास की तरफ जो अब एक टीले पर उगी झाड़-झंखाड़ के रूप में नजर आता है। अटल जी के न रहने पर उनकी स्मृति में यहां एक पौधा रोपा गया था। यह अब मुरझा रहा है, बटेश्वर की उम्मीदों की तरह। रिश्ते में भतीजे रमेश चंद्र वाजपेयी एक मंदिर की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, यह कुल देवी का मंदिर है।

अटल जी इसी मकान में (अब टीले पर झाड़) जन्मे और 15 साल की उम्र तक रहे। एक अन्य भतीजे और बटेश्वरनाथ मंदिर के पुजारी राकेश वाजपेयी का मकान भी यहीं है। सामने वाले टीले पर। मंदिर प्रांगण में उनसे बात शुरू हुई तो आसपास से कुछ और लोग जुट आए। बोले-अस्थि विसर्जन के बाद यहां कोई बड़ा नेता नहीं आया और न ही उनकी स्मृति संजोने की घोषणाएं पूरी हुईं। राकेश वाजपेयी इस टिप्पणी पर कुछ झेंपते हुए कहते हैं, पीड़ा तो है पर इस बार उनकी यादों के नाम पर वोट पड़ेगा। क्षेत्र में विकास अब भी समस्या है।

सबसे बड़ी समस्या है परिवहन। सड़क तो है लेकिन आजादी के बाद भी आज तक यहां सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन नहीं है। बीच में एक निजी बस चलती थी, अब वह भी नहीं। लोगों को कहीं भी जाना हो, जिला मुख्यालय आगरा आना हो तो सिर्फ निजी साधन का ही सहारा है। इसके बावजूद यहां का मतदाता इसी में खुश है कि वह अटल जी के गांव का है।

4800 वोट हैं बटेश्वर में

बटेश्वर कोई छोटा-मोटा गांव नहीं। 15 मुहल्लों में बंटा करीब छह हजार की आबादी और 48 सौ वोटर वाला गांव है। तीर्थ पर्यटन क्षेत्र बनने की भरपूर संभावनाएं। आगरा ही नहीं आसपास से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन न होने के कारण आर्थिक रीढ़ नहीं बन पाते।

जिला बने तो अटल हो स्मृति

राकेश वाजपेयी कहते हैं कि बटेश्वर में अटल जी की यादें संजोनी हैं तो फतेहाबाद आंशिक को जोड़ते हुए बाह को अटल जिला बना दिया जाए। बटेश्वर को तहसील। यह इस पिछड़े क्षेत्र की बहुत पुरानी मांग है। हाल ही में जिला बनाने का प्रस्ताव तैयार भी हुआ था लेकिन फिर न जाने क्यों यह प्रस्ताव कागजों में ही दबकर रह गया। जिला बनाने की मांग पर अतीत में कई बार आंदोलन भी हो चुके हैं। आगरा मुख्यालय से दूरी के कारण बाह तहसील में अफसर भी नहीं बैठते और लोगों के काम अटके रहते हैं। यह इस बार का चुनावी मुद्दा भी है बटेश्वर का।  

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