गलियां गुमसुम, गांव उदास, डबडबाती आंखों से बटेश्वर कर रहा अपने अटल को याद

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्‍‌न अटल बिहारी वाजपेयी की मौत की खबर सुनमे ही फफक पड़े चचेरे भाई। अटल के शिखर पर पहुंचने से हर ग्रामीण को था नाज।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 17 Aug 2018 01:50 PM (IST) Updated:Fri, 17 Aug 2018 01:50 PM (IST)
गलियां गुमसुम, गांव उदास, डबडबाती आंखों से बटेश्वर कर रहा अपने अटल को याद
गलियां गुमसुम, गांव उदास, डबडबाती आंखों से बटेश्वर कर रहा अपने अटल को याद

आगरा (विनीत मिश्रा): वह गांव जहां अटल जी का बचपन बीता। जिसकी माटी में वह साथियों संग अठखेलियां करते थे। जो गलियां उनके अंट्टाहास से गूंजती थीं, वह अब गुमसुम हैं और गांव उदास। उदासी ऐसी कि हर आंख डबडबाई है। जिस लाल पर उन्हें नाज था, वह उन्हें सदा के लिए छोड़कर चला गया।

बटेश्वर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव रहा है। परिवार के अन्य लोग अभी भी बटेश्वर में रहते हैं। पिता की नौकरी के कारण वह ग्वालियर में ही बस गए। लेकिन स्कूल की छुंिट्टयों में वह बटेश्वर आते, तो खूब मस्ती करते थे। भले ही विकास से दूर है, लेकिन धर्म नगरी बटेश्वर में अलग ही उल्लास रहता है। गुरुवार को खुशी इस गांव से रूठी थी। तीर्थ नगरी का संकेत देते गांव के प्रवेश द्वार से कुछ अंदर बढ़े तो गांव का बाजार सजा था। खरीदारी के बीच हर शख्स की जुबां पर अटल जी के ही चर्चे थे। कुछ आगे बढ़े तो टीले पर बसे बटेश्वर गांव में भी अजीब सी खामोशी थी। गांव के अंदर घुसते ही राम सिंह का मकान है, वैसे तो रोज यहां दिन में कई बार ग्रामीण कोई न कोई चर्चा करते थे, लेकिन आज यहां सन्नाटा था। गांव की कच्ची गलियों से ही रास्ता अटल जी के पैतृक आवास का जाता था। पूरी तरह ढह चुके आवास की मिंट्टी में दबीं ईंटें बहुत कुछ कहती हैं। जिन गलियों में रोज बच्चों की अठखेलियां होती थीं, वह सन्नाटे में डूबी हैं। घरों के चूल्हों में धधकती आग की लपटें निधन की खबर से शांत हो गईं। अटल जी जब अस्पताल में थे, तो गांव का हर शख्स उनकी पल-पल की खबर पूछता। निगाहें टीवी पर लगती थीं। गुरुवार को जब उनकी दुनिया से रुखसती की खबर पहुंची, तो आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। उनके चचेरे भाई राकेश वाजपेई फफक कर रो पड़े। पूर्व प्रधान चरन सिंह से अटल जी की कई मुलाकातें हुईं, जब वह विदेश मंत्री थे तब भी और जब प्रधानमंत्री थे तब भी। अटल जी की बात चली, तो चरन सिंह फफक पड़े। बोले, हमने बहुत कुछ खो दिया, उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। वह जब प्रधानमंत्री बने तो हर ग्रामीण का सीना फक्र से चौड़ा था। रिश्ते में उनके भतीजे अश्वनी वाजपेई अटल जी का नाम लेते ही गांव के उस मैदान की ओर हाथ उठाकर इशारा करते हैं, जहां कभी बाल सखाओं के साथ अटल जी गिल्ली-डंडा खेलते थे। गर्मी की छुंिट्टयों में जिस तपती दोपहरी में वह जहां खेलते थे, उस मैदान पर आज चारपाई पर बैठे कुछ बुजुर्ग अटल जी की ही यादों में खोए थे। यादों में खो गए घाटों के सन्नाटे:

यमुना के किनारे बसे बटेश्वर के घाट भी शायद आज अटल जी की यादों में खो गए हैं। गांव में अटल जी जब भी आते, बच्चों के साथ यमुना के घाटों पर खूब नहाते थे। आज वही घाट वीरान से थे। कुलदेवी के मंदिर में करते थे पूजा:

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के खंडहर हो चुके मकान के सामने ही कुलदेवी का मंदिर है। खुद अटल जी और उनके परिवार के लोग इसी मंदिर में पूजा करते थे।

जंगलात कोठी पर फहरा दिया तिरंगा:

बात 27 अगस्त 1942 की है। बटेश्वर बाजार में आला अफसर का दरबार सजा था। अटल जी कुछ साथियों के साथ बटेश्वर बीहड़ स्थित जंगलात कोठी (अंग्रेजों का स्थानीय कार्यालय) पहुंच गए। यहां उन्होंने तिरंगा फहराया और खुद ही देश को आजाद घोषित कर दिया। बाद में उन्हें व उनके साथियों को इसके लिए जुर्माना भी झेलना पड़ा।

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