बीन से हुई शुरुआत पहुंची सेक्सोफोन तक, बड़ा अनूठा है ताजनगरी की बैंड- बाजा और बरात का सफर Agra News
आगरा के बैंडवादक दर्जनों फिल्मों में भी दे चुके हैं अपनी प्रस्तुति।
आगरा, आदर्शनदंन गुप्त। बैैंडबाजों की मधुर धुनें, झिलमिलाती गुलाबबाड़, दोनों तरफ आंखें चौंधिया देने वाली रंग-बिरंगी लाइटें और इन सबके पीछे सफेद रंग की सुडौल घोड़ी या बग्घी पर बैठे दूल्हे राजा। ये सब शादियों की शान बढ़ाते हैैं। वधू के दरवाजे तक ये बैैंडबाजे बेहिसाब खुशियां बिखेरते हैैं। शान और शौकत बढ़ाने वाले आगरा के ये बैैंड पूरे देश में अपनी छाप छोड़ चुके हैैं। लोगों का मानना है कि देश के विभिन्न प्रांतों में बैैंडबाजे भव्य तो हो सकते हैैं, लेकिन मधुर धुन निकालने की कला में यहां के बैैंडवादक महारत हासिल किए हुए हैैं। यही वजह है कि कई फिल्मों में भी यहां के बैैंड अपनी कला प्रदर्शित कर चुके हैैं।
आगरा में बैंडबाजों का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। पहले यहां बीन बैैंड बजा करता था, जिसमें सपेरे की बीन बजाया करते थे, उनका संगत ढोल ताशे और हारमोनियम करते थे। करीब सवा सौ साल पहले यहां बैैंडबाजों की रौनक शुरू हुुई।
पहले साधारण ब्रास से बने वाद्य यंत्र हुआ करते थे। समय के बदलाव के साथ इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों ने दस्तक दी। पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ सेक्सोफोन, इलेक्ट्रॉनिक गिटार, इलेक्ट्रॉनिक कोडियम, इलेक्ट्रॉनिक ऑर्गन आदि का भी उपयोग होने लगा है।
इसी प्रकार पहले सब्जी की ठेल में दो लाउडस्पीकर लगाकर निकलते थे। उसके बाद लोहे की ट्रॉली निकाली जाने लगी। स्टील के बाद अब फाइबर की ट्रॉली का चलन बढ़ा है। जिनमेंं आकर्षक लाइटिंग के साथ ईको साउंड होता है। बरात की रोशनी में भी बदलाव आया। पहले मिट्टी के तेल के हंडे, फिर गैस के हंडे बरात के साथ चलते थे। उसके बाद ट्यूब लाइट फिर सीएफएल जलने लगी थीं। अब एलइडी लाइट जलाई जाती हैैं।
ज्यादातर बैंडवादक एक दिन में दो बुकिंग करते हैं। मौसम के अनुसार बुकिंग समय बदलता रहता है।
कम हो होता जा रहा घोडिय़ों का चलन
शादियों के इन सीजन में घोड़ी का चलन अभी कम होता जा रहा है। बग्घियों का उपयोग बहुत शान ओ शौकत के साथ किया जाता है। शहर के भीतरी भाग में भले कुछ जगह घोडिय़ों पर दुल्हे राजा निकल रहे हों, लेकिन शहर के बाहरी क्षेत्रों में बने मैरिज होम और फाइव स्टार होटलों में तो अधिकांश बग्घियों उपयोग किया जा रहा है। जिनमें दो या चार घोड़ी लगी होती हैं
बढ़ रही कलाकारों की संख्या
पहले बरातों में 11 वाद्य कलाकार हुआ थे, अब 121 तक यह संख्या पहुंच गई है, जिससे बरात की रौनक बढ़ती जा रही है। हर व्यक्ति में अपनी बरात को शाही दिखाने की होड़ लगी हुई है।
पंजाब के बैैंड की भी मांग
बरातों में कभी बैैंडों की संख्या बढ़ानी हो या फिर अन्य कोई उत्सव हो तो पंजाब के बैगपाइपर बैैंड की मांग होती है। जालंधर के इस बैैंड में 12 कलाकार होते हैैं और वहां की पारंपरिक यूनिफॉर्म पहनते हैैं। परंपरागत वाद्य यंत्रों के साथ सुरीली धुन निकालते हैैं। कलाबाजी भी प्रस्तुत करते है, जिससे दर्शक रोमांचित होता है।
ये बढ़ाते हैैं बरात की शान
बैंड, बग्गी, लाइट, गुलाबबाड़, फूलों की गैलरी, आतिशबाजी, फूलों की तोप, भांगड़ा पार्टी, शहनाई वादन, ढोल।
पुराने गीतों में आज भी दम
-यह देश यह देश है वीर जवानों का -आज मेरे यार की शादी है
-दुनिया वालों शराबी न समझो
-बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है
-खुशी-खुशी कर दो बिदा
अलग-अलग तरह की होती है ड्रेस
बरात की शान बढ़ाने के लिए बैंडवादकों यूनिफार्म अलग-अलग होती है। धार्मिक आयोजनों में ये केसरिया या पीले परिधान पहनते हैैं। वेस्टर्न, मुगल, राजस्थानी, पंजाबी यूनिफार्म ये कलाकार पहनते हैैं।
लगातार करना होता है रिहर्सल बैैंडवादक कलाकारों को पालीवाल पार्क, हाथीघाट आदि खुले स्थलों पर रिहर्सल करते देखा जा सकता है। इन बैैंडवादकों का कहना है कि अब गीतों की प्रस्तुति काफी कठिन हो गई है। नए फिल्मी गीत ज्यादा दिन तक नहीं रहते है। इसलिए हर बार नए गीतों का रिहर्सल करना होता है। पहले ये कलाकार शास्त्रीय संगीत का भी प्रशिक्षण लेते थे, जिससे शास्त्रीय गीतों पर आधारित फिल्मी गीतों की धुन आसानी से निकाली जा सके। ये बैडबाजों का यह काम अनगिनत लोगों को रोजगार दे रहा है। जिसमें छोटे-छोटे मजबूर मजदूर भी हैैं।
1500 से हैैं अधिक
शहर और उसके आसपास करीब 1500 बैडबाजे हैैं। वैसे तो पूरे शहर में है। खास तौर से फुलट्टïी और कालामहल पर इनके प्रमुख कार्यालय हैैं
दूरदराज के भी होते के कलाकार
बैैंड वादक आगरा और आसपास के जिले के भी होते हैैं। राजस्थान के विभिन्न नगरों के ज्यादा हैैं।
कोल्ड आतिशी नजारे
आतिशबाजी का क्रेज अब कम होता जा रहा है। पर्यावरण के प्रति भी लोग जागरूक हैैंं। आतिशबाज चमन मंसूरी बताते हैैं कि अब तेजी से कोल्ड आतिशबाजी का क्रेज बढ़ा है, जिसमें कोई खतरा नहीं रहता। प्रदूषण भी नहीं बढ़ता, लेकिन अन्य आतिशबाजी से 25 फीसद महंगी होती है।
फिल्मों में भी बिखेरी छटा
मिलन बैंड के संचालक भरत शर्मा बताते हैैं कि उनके बैैंड की शुरुआत वर्ष 1960 में हरिराम शर्मा ने की। इस बैैंड के कलाकारों को डांस का प्रशिक्षण दिया गया। राम बरात में 12 साल लगातार प्रथम स्थान पर आने का गौरव प्राप्त किया है। फिल्म लल्लूराम और बंटी और बबली में इस बैैंड ने अपनी छटा बिखेरी है।
सबसे पुराना बैैंड
सुधीर बैैंड के संचालक देव शर्मा बताते हैैं शहर में शर्मा बैैंड सबसे पुराना है। यही सबसे पहले रामबरात में भगवान राम के हाथी के आगे चला करता था। शर्मा बैैंड से ही सुधीर बैैंड बना। यह बैैंड देश के विभिन्न प्रांतों में जा चुका है।
राम बरात में रहता है प्रमुख
जगदीश बैैंड के संचालक अशोक शर्मा का कहना था कि उनका बैैंड भी देश में सभी जगह जा चुका है। राम बरात में भगवान राम के स्वरूप के आगे यह बैैंड लगता आ रहा है। पहले शास्त्रीय संगीत बैैंड के कलाकार सीखते थे, शास्त्रीय फिल्मी गीतों की बेहतरीन प्रस्तुति की जाती थी, लेकिन अब केवल नए गीतों की डिमांड होती है, जो बहुत दिन तक नहीं सुने जाते।
राग-रागिनियों के गायन का प्रशिक्षण
बैैंड में कई लोग शास्त्रीय गायन का भी प्रशिक्षण लेते थे। सुधीर बैैंड में पहले स्व. पं.शंकर दत्त थे, जो लाहौर से आए थे। वे राग-रागिनी की धुन क्लानेट पर निकालते थे। दीपक राग में गाने में सिद्धहस्त थे।
पहले थे बीन बैैंड
पहले बीन बैैंड हुआ करते थे। चित्रा टॉकीज के पास नथौली बैैंड था, जिसे पाइप बैैंड भी कहते थे। इसी प्रकार मंटोला थाने के पास बिलास बैैंड, कोतवाली के सामने हींग की मंडी पर प्यारे बैैंड था। ये भी सपेरे की बीन को बजाया करते थे। बाद में बैगपाइपर की तरह अपने वाद्ययंत्र बना लिए थे, जिसमें वे अपने करतब दिखाते हुए भी चलते थे।
हर पंचकल्याणकों में भागीदारी
किशोर बैैंड के संचालक कमल गुप्ता का कहना है कि उनका बैैंड वर्ष 1960 में शुरू हुआ। अपनी क्वालिटी और गौरव को बरकरार रखा है। नई पीढ़ी फास्ट संगीत को सुनना चाहती है, लेकिन उन्होंने पुराने धार्मिक गीतों से अपनी गुणवत्ता को बनाए रखा है। इस बैैंड का धार्मिक उत्सवों में विशेष महत्व रहा है।