फेसबुक और वॉट्सएप चैटिंग में मशगूल थे डॉक्टर, नवजात ने तोड़ा दम

अस्पताल के डॉक्टर मोबाइल पर वॉट्सएप व फेसबुक देखते रहे और बच्चे ने दम तोड़ दिया। बच्चे के परिजनों ने डॉक्टरों पर एेसे आरोप लगाए हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 24 Oct 2016 07:19 PM (IST) Updated:Tue, 25 Oct 2016 12:35 PM (IST)
फेसबुक और वॉट्सएप चैटिंग में मशगूल थे डॉक्टर, नवजात ने तोड़ा दम

जेएनएन, अमृतसर। यह घटना सरकारी तंत्र की विकृत तस्वीर दर्शाती है। गुरु नानक देव अस्पताल (जीएनडीएच) में डॉक्टरों की अनदेखी से नवजात की मौत हो गई। नवजात के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल के डॉक्टर मोबाइल पर वॉट्सएप व फेसबुक देखते रहे और बच्चे ने दम तोड़ दिया। नवजात की मौत के बाद शव जमीन पर रखकर परिजन फूट-फूटकर रोए।

सुनील कुमार निवासी न्यू सूराज भार्गव कैंप जालंधर ने बताया कि उनकी पत्नी रिया सात माह की गर्भवती थी। 20 अक्टूबर को प्रसव पीड़ा होने पर वह उसे सिविल अस्पताल जालंधर ले गए। डॉक्टरों ने कहा कि रिया की प्री-मेच्योर डिलीवरी करनी पड़ेगी। बच्चे का वजन असामान्य होगा, इसलिए उसे मशीन में रखना पड़ेगा। डॉक्टरों ने सलाह दी कि वे उसे गुरुनानक देव अस्पताल अमृतसर ले जाएं।

सुनील पत्नी को लेकर 20 अक्टूबर को जीएनडीएच पहुंचे। अस्पताल के बेबे नानकी मदर एंड चाइल्ड केयर वार्ड में रिया को दाखिल किया गया। 21 अक्टूबर को रिया की नॉर्मल डिलीवरी हुई। उसने लड़के को जन्म दिया। इसके बाद बच्चे को मशीन में रखवा दिया गया।

सुनील ने बताया कि सातवीं मंजिल पर स्थित न्यू नेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में पीजी डॉक्टर व कुछ ट्रेनी छात्र थे। उन्होंने पूरे आइसीयू को वाईफाई जोन बना रखा है। एक मोबाइल का हॉट-स्पॉट ऑन करके वे इंटरनेट से कनेक्ट रहते हैं और पूरा दिन फेसबुक व वॉट्सएप पर लगे रहते हैं। बच्चे को मशीन में डालकर उन्होंने उसकी तरफ देखा तक नहीं। दिन में तीन-तीन बार उसका खून निकालकर सैंपल भरते। एक सैंपल अपने पास रखते और एक सैंपल उसे देकर निजी लेबोरेट्री में जांच के लिए भेज देते। बार-बार खून निकालने से बच्चे की चमड़ी पर लाल रंग के दाने उभर आए। रविवार को उसकी हालत बिगड़ गई।

पीजी डॉक्टर ने एक और टेस्ट करवाया, जिसमें पता चला कि बच्चे के शरीर में प्लेट्लेट्स कम हो गए हैं। सोमवार सुबह छह बजे बच्चे की मौत की सूचना डॉक्टरों ने उन्हें दी। सुनील ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों ने बच्चे के साथ एक्सपेरिमेंट किया है। बार-बार खून निकालने से वह कमजोर हो गया, इसलिए उसकी जान गई। पीजी डॉक्टर व ट्रेनी स्टाफ मोबाइल पर पूरा दिन व्यस्त रहे। आइसीयू में दाखिल बच्चों को उन्होंने नजरअंदाज किया।

आरोपों में सच्चाई हुई तो लेंगे एक्शन

मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर रामस्वरूप शर्मा का कहना है कि बच्चा प्री-मेच्योर था। उसके रक्त में प्लेट्लेट्स की संख्या भी कम रह गई थी। नवजात शिशुओं के कई टेस्ट आपातकालीन स्थिति में निजी लेबोरेट्री से करवाने पड़ते हैं। बहरहाल, परिजनों की ओर से डॉक्टरों पर लगाए आरोपों की जांच की जा रही है। यदि इनमें सच्चाई हुई तो सख्त एक्शन लिया जाएगा।

एक और बोला, मेरे बेटे को भी मार डाला

इस घटनाक्रम के बीच राकेश शर्मा नामक शख्स भी अस्पताल के बाहर पहुंचा। उसने बताया कि 15 दिन पूर्व उसके बेटे की मौत भी इसी लापरवाही से हुई थी। पत्नी नीता ने बच्चे को जन्म दिया था। डॉक्टरों ने उसे मशीन पर रखकर सही देखभाल नहीं की। मोबाइल पर लगे रहे। हमारी आंखों के सामने ही बच्चा दम तोड़ गया।

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