आरक्षित तबके के संपन्न लोगों के बच्चों को आरक्षण क्यों: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि नौकरी की शुरुआत में आरक्षण ठीक है लेकिन क्या ये तर्कसंगत होगा कि नौकरी में प्रमोशन के वक्त भी आरक्षण दिया जाए?

By Vikas JangraEdited By: Publish:Thu, 23 Aug 2018 10:33 PM (IST) Updated:Fri, 24 Aug 2018 08:59 AM (IST)
आरक्षित तबके के संपन्न लोगों के बच्चों को आरक्षण क्यों: सुप्रीम कोर्ट
आरक्षित तबके के संपन्न लोगों के बच्चों को आरक्षण क्यों: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के बच्चों को सरकारी नौकरी में प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के औचित्य पर गुरुवार को सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि सम्पन्न वर्ग को आरक्षण के लाभ से बाहर करने वाला क्रीमी लेयर का सिद्धांत जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मामले में लागू होता है वह एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में क्यों नहीं लागू होता।

मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधानपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि नौकरी के शुरुआत में आरक्षण का नियम तो ठीक है लेकिन अगर कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है तो क्या ये तर्कसंगत होगा कि उसके बच्चों को पिछड़ा मान कर नौकरी में प्रोन्नति में आरक्षण दिया जाए और जिससे परिणामी वरिष्ठता भी मिलती हो। इस मामले मे कोर्ट 2006 के एम नागराज फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत पर सुनवाई कर रहा है।

गुरुवार को दिनभर चली सुनवाई में प्रोन्नति में आरक्षण का समर्थन कर रही केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों और संगठनों की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, पीएस पटवालिया, इंद्रा जयसिंह आदि ने एम नागराज के फैसले में दी गई व्यवस्था को गलत बताते हुए उसे दोबारा विचार के लिए संविधानपीठ को भेजे जाने की मांग की जबकि आरक्षण का विरोध कर रहे संगठनों के वकील पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया। मालूम हो कि 2006 के एम नागराज फैसले में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने व्यवस्था दी थी कि सरकार एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े एकत्र करे।

एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण का समर्थन कर रहे वकीलों का कहना था कि एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं होता यह सिद्धांत सिर्फ ओबीसी में लागू होता है। एससी एसटी वर्ग अपनेआप में पिछड़ा माना जाता है। जबकि आरक्षण विरोधियों का कहना था कि ये बात ध्यान रखने योग्य है कि आरक्षण हमेशा के लिए लागू नहीं हो सकता। क्रीमी लेयर का सिद्धांत समानता पर आधारित है। ये संतुलन बनाने के लिए है। सरकार का दायित्व है कि वह संतुलन बनाए रखे।

राजीव धवन ने एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने वाले कानून के संसद में पारित होने का ब्योरा देते हुए कहा कि ये कानून संसद के दोनों सदनों में बगैर बहस के पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि आरक्षण के खतरनाक परिणाम दिख रहे हैं। उन्होंने इस बारे में गुजरात और गुर्जर आंदोलन का हवाला दिया। धवन ने कहा कि गुर्जर ओबीसी आरक्षण नहीं चाहते बल्कि एससी एसटी आरक्षण चाहते हैं।

धवन का कहना था कि नागराज का फैसला बिल्कुल सही है उस फैसले के पीछे की पृष्ठभूमि और उसमे दी गई व्यवस्था का बारीकी से विश्लेषण किया जाना चाहिए। फैसले के एक दो पैराग्राफ को देखकर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी के फैसले में कहा गया था कि प्रोन्नति में आरक्षण नहीं हो सकता और इसी के बाद संसद ने कानून में संशोधन करके प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की थी।

नागराज के फैसले में संविधान में मिले बराबरी के मौलिक अधिकार के बीच संतुलन कायम करते हुए व्यवस्था दी गई है। याद रहे कि आरक्षण हमेशा के लिए नहीं है और जब तक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व के आंकड़े नहीं होंगे तबतक ये कैसे जाना जाएगा कि आगे आरक्षण की जरूरत है कि नहीं। कोर्ट इस मामले में बुधवार को फिर सुनवाई करेगा।

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