चीन को साधने के लिए जरूरी है आसियान का साथ, राजपथ पर भी दिखाई देगी झलक

आसियान से भारत की नजदीकी और दोस्‍ती में मजबूती इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि चीन लगातार भारत को घेरने के लिए पड़ोसी देशों के साथ गठजोड़ बढ़ा रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 24 Jan 2018 12:46 PM (IST) Updated:Wed, 24 Jan 2018 07:47 PM (IST)
चीन को साधने के लिए जरूरी है आसियान का साथ, राजपथ पर भी दिखाई देगी झलक
चीन को साधने के लिए जरूरी है आसियान का साथ, राजपथ पर भी दिखाई देगी झलक

नई दिल्‍ली स्‍पेशल डेस्‍क। इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान देशों की उपस्थिति इस बात का साफ संकेत है कि भारत की दोस्‍ती का दायरा और मजबूत हो रहा है। यह न सिर्फ भारत की कूटनीतिक बल्कि उसकी रणनीति का भी हिस्‍सा है। आसियान से नजदीकी और दोस्‍ती में मजबूती इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि चीन लगातार भारत को घेरने के लिए पड़ोसी देशों के साथ गठजोड़ बढ़ा रहा है। हालही में भारत ने जिस अग्नि-5 मिसाइल का सफलतापूर्वक टेस्‍ट किया था उसके बाद चीन के मिसाइल एक्‍सपर्ट ने इसको बड़ा खतरा बताया था। चीन के एक सरकारी अखबार में यहां तक कहा गया था कि चीन को भारत को साधने के लिए हिंद महासागर में अपनी पेंठ बढ़ानी होगी। हाल के कुछ वर्षों में भारत ने भी इस ओर अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए लुक ईस्‍ट पॉलिसी को बढ़ावा दिया है।

क्या है भारत की लुक ईस्‍ट पॉलिसी

वर्ष 1991 में नरसिंह राव सरकार द्वारा शुरू की गई ‘लुक ईस्‍ट पॉलिसी’ को भारत के विदेश नीति के परिप्रेक्ष्यों में एक नई दिशा और नए अवसरों के रूप में देखा गया और वाजपेयी सरकार व मनमोहन सरकार ने भी इसे अपने कार्यकाल में लागू किया। ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ यानी ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ भारत द्वारा दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक संबंधों को विस्तार देने, भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करने और इस इलाके में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्यों से बनाई गई है। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने लुक ईस्ट पॉलिसी को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ में तब्दील कर दिया। इसके तहत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को नई धार दी गई है। इन देशों के साथ कई व्यापार समझौते हुए हैं और परस्पर संबंध बढ़ा है।

गणतंत्र दिवस पर आसियान

आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से आज भारत काफी कुछ विकसित देशों से कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। भारत की विदेश नीति हमेशा से एक संतुलित रुख पर आधारित रही है। इसके कई अहम बिंदु हैं, जिनमें से एक है पूर्वी एशियाई देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और करीबी संबंध कायम करना। इस नीति का जन्म लुक ईस्ट पॉलिसी के रूप में हुआ था। मौजूदा केंद्र सरकार अब इस नीति में एक कदम आगे बढ़कर एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर काम कर रही है यानी अब केवल बातें नहीं, बल्कि सक्रियता से काम भी करना। इसी का हिस्सा है इस वर्ष गणतंत्र दिवस की परेड के विशेष अवसर पर सभी दस आसियान देशों के शासनाध्यक्षों को दिया गया आमंत्रण।

आसियान के महत्‍व को समझता है भारत

भारत और आसियान के मजबूत होते रिश्‍तों पर ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। चीन के खतरे को भांपते हुए यह आज के समय की जरूरत है कि हम अपनी नजदीकियां बढ़ाएं। उनके मुताबिक वर्ष 2000 के बाद भारत की लुक ईस्‍ट पॉलिसी की तरफ तेजी से कदम बढ़ाए हैं। वह मानते हैं कि भारत आसियान के महत्‍व को काफी अच्‍छे से समझता है। यही वजह है कि 1995 से भारत आसियान का फुल डॉयलॉग पार्टनर है। इसके अलावा भारत आसियान रिजनल फोरम का भी सदस्‍य है। भारत ईस्‍ट एशिया समिट का फाउंडर मेंबर भी है। इन सभी के अलावा भारत आसियान का रणनीतिक साझेदार भी है। उनका यह भी कहना है कि दोनों के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट इस बात का पुख्‍ता सुबूत है कि भारत और आसियान रणनीति के साथ-साथ कूटनीतिक भागेदारी में कहीं आगे हैं। प्रोफेसर पंत का यह भी कहना है कि पिछले वर्ष आसियान सम्‍मेलन में हिस्‍सा लेने गए पीएम नरेंद्र मोदी ने यह बात साफ शब्‍दों में कही थी कि भारत की विदेश नीति का अहम हिस्‍सा आसियान है। इस दौरान उन्‍होंने इस पूरे क्षेत्र में फैले आतंकवाद पर कड़ी चिंता जताते हुए सभी से एकजुट होने की भी अपील की थी। यहां पर उन्‍होंने चीन के खतरे को भी स्‍पष्‍ट शब्‍दों में उजागर किया था।

इस पॉलिसी को अमेरिका का समर्थन

भारत की इस नीति का समर्थन करते हुए अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी कहा था कि उनका देश भारत की ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ का सक्रिय रूप से समर्थन करना चाहता है। अमेरिका में ओबामा प्रशासन ने शुरुआत से ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र को महत्व दिया। अमेरिका भी चीन की बढ़ती शक्ति को हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करके संतुलित करना चाहता है।

राजपथ पर जमीन से आसमां तक आसियान

इस बार गणतंत्र दिवस पर दस देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्ष एक साथ दिखाई देंगे। ऐसे में इस बार परेड में आसियान की छाप चहुंओर बिखरी नजर आएगी। राजपथ पर जहां जवान सभी दस देशों के राष्ट्रीय झंडे हाथ में थामे दिखाई देंगे। वहीं आसमान में हवा भरते सेना के हेलिकाप्टरों भी आसियान देशों की एकजुटता का वैश्विक संदेश देंगे। विश्व में बढ़ती भारतीय ताकत की धमक इस गणतंत्र दिवस राजपथ पर साफ सुनाई देगी। एक ओर जहां आसियान देशों की संस्कृति और संगीत की लहर होगी तो जमीं से आसमां तक आसियान देशों का झंडा लहराएगा।

गणतंत्र दिवस पर इन देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्ष होंगे शामिल

मलेशियाई के प्रधानमंत्री मोहम्मद नजीब बिन तुन अब्दुल रजक, म्यामांर की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की, सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली हसलीन लुंग, इंडोनेशिया के वर्तमान प्रधानमंत्री जोको विडोडो, कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन, ब्रूनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्कियाह, वियतनाम के प्रधानमंत्री नुआन जुंग फुक, लाओस के प्रधानमंत्री थोंगलाउन सिसोउलिथ, थाइलैंड के प्रधानमंत्री जनरल प्रयुत चान ओ चा, फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉबर्ट दुत्रेतोबार। यहां आपको बता दें कि ब्रिटेन और फ्रांस ही दो ऐसे देश हैं, जहां की प्रमुख शख्सियतें पांच बार भारत के गणतंत्र में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। वहीं पाकिस्तान दो बार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो चुका है। 1955 में गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद और 1965 में खाद्य एवं कृषि मंत्री राणा अब्दुल हमीद आए थे।

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