आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार से कुपोषण के विरुद्ध छिड़ी वैश्विक लड़ाई पड़ी मद्धिम

पर्याप्त पैदावार होने के बावजूद उचित नीतियों और संतुलन के अभाव में हालात बद से बदतर हो रहे हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 16 Oct 2018 09:35 PM (IST) Updated:Wed, 17 Oct 2018 12:30 AM (IST)
आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार से कुपोषण के विरुद्ध छिड़ी वैश्विक लड़ाई पड़ी मद्धिम
आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार से कुपोषण के विरुद्ध छिड़ी वैश्विक लड़ाई पड़ी मद्धिम

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक विवाद और आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार ने कुपोषण के विरुद्ध छिड़ी लड़ाई को मद्धिम कर दिया है। इसी के चलते पिछले एक साल के भीतर दुनिया के लगभग चार करोड़ अतिरिक्त लोग आधे पेट सोने को मजबूर हुए हैं। जबकि वर्ष 2030 तक पूरे विश्व को भुखमरी मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने विश्व की खाद्य सुरक्षा की इस हालत पर चिंता जताई है। उन्होंने एशियाई देशों की स्थिति पर खुशी जताते हुए कहा कि यहां कम से कम कुपोषण की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है।

विश्व में 82 करोड़ से अधिक लोग कुपोषण के शिकार

कृषि मंत्री सिंह मंगलवार को यहां विश्व खाद्य दिवस पर देश के कृषि वैज्ञानिकों, किसानों और इससे जुड़े सभी लोगों को बधाई दी। वह 'एग्री स्टार्ट अप एंड एंटरप्रीन्योरशिप कानक्लेव' का उद्घाटन करने के बाद बोल रहे थे। उन्होंने कहा 'खाद्यान्न के मामले में देश सिर्फ आत्मनिर्भर नहीं हुआ है बल्कि निर्यातक देश के रूप में उभरा है।' विश्व स्तर पर कुपोषित आबादी बढ़कर 82 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। सिर्फ पिछले साल इसमें 3.8 करोड़ लोग और जुड़ गये हैं। इसके लिए जलवायु परिवर्तन से घटती कृषि उत्पादकता बड़ा कारण हो सकती है। साथ ही वैश्विक स्तर पर बढ़ता विवाद गंभीर होने लगा है, जिसका असर वैश्विक खाद्यान्न सुरक्षा पर पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि अगले 12 सालों में पूरी दुनिया में कोई भूखा नहीं सोएगा। लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुत गंभीर प्रयास की जरूरत है। वैश्विक स्तर पर भूख की तस्वीर बहुत खराब है। एक आंकड़े के मुताबिक कुपोषण के चलते हर दिन पांच साल से कम आयु के 50 लाख बच्चे मर जाते हैं। वहीं दूसरी ओर विश्वभर में पैदा होने वाले कुल कृषि उपज का एक तिहाई भोजन बर्बाद हो जाता है। पर्याप्त पैदावार होने के बावजूद उचित नीतियों और संतुलन के अभाव में हालात बद से बदतर हो रहे हैं।

कृषि मंत्री सिंह ने कहा कि कृषि की पैदावार बढ़ाने की होड़ लगी हुई है, लेकिन ज्यादातर उपज में सूक्ष्म पोषण तत्वों की भारी कमी है। इसका सीधा असर लोगों के पोषण पर पड़ रहा है। पिछले साढ़े चार सालों में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि वैज्ञानिकों ने 20 ऐसी किस्में ईजाद की है, जिनमें सामान्य से अधिक पोषक तत्व हैं। पूसा में आयोजित दो दिवसीय कानक्लेव में देशभर के युवा उद्यमियों ने अपने उत्कृष्ट उत्पादों को प्रदर्शन किया है।

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