अमेठी की किलेबंदी तोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस का रिश्‍ता है बेहद पुराना

1977 में इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने अमेठी से जो रिश्ता जोड़ा वह अब तक बदस्तूर जारी है। इस रिश्ते को बाद में राजीव गांधी सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी ने परवान चढ़ाया।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 11 Apr 2019 11:08 AM (IST) Updated:Thu, 11 Apr 2019 11:08 AM (IST)
अमेठी की किलेबंदी तोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस का रिश्‍ता है बेहद पुराना
अमेठी की किलेबंदी तोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस का रिश्‍ता है बेहद पुराना

अमेठी [अभिषेक मालवीय]। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का चुनाव क्षेत्र होने की वजह से खास पहचान रखने वाले अमेठी संसदीय क्षेत्र में चुनावी हवा इसलिए भी गर्म है क्योंकि भाजपा नीत सरकार में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले लगभग एक हफ्ते से यहां डेरा डाल रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां चुनावी सभा कर चुके हैं और सपा-बसपा गठबंधन यहां से कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा करने जा रहा है। पिछले चुनाव में राहुल गांधी को कड़ी चुनौती देने वाली स्मृति ईरानी के साथ इस बार सर्जिकल और एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दे भी हैं तो राहुल को गठबंधन प्रत्याशी न होने का लाभ। वस्तुत: अमेठी की पहचान ही गांधी परिवार से है। 1977 में इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने अमेठी से जो रिश्ता जोड़ा, वह अब तक बदस्तूर जारी है।

इस रिश्ते को बाद में राजीव गांधीसोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी ने परवान चढ़ाया। राजनीति की इस यात्रा में अमेठी सीट 1984 में राजीव बनाम मेनका गांधी के चर्चित चुनाव की भी साक्षी रही। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2004 के चुनाव में इस क्षेत्र में इंट्री की थी और तब से लगातार अमेठी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पिछले चुनाव यानी 2014 में भाजपा ने स्मृति ईरानी को अपना उम्मीदवार बनाया था। तब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। मोदी ने गौरीगंज कौहार में स्मृति ईरानी के पक्ष में जनसभा भी की और इसका असर राहुल की जीत में कम अंतर के रूप में सामने आया था। राहुल गांधी एक लाख से कुछ अधिक मतों से ही स्मृति से जीत पाए थे।

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अमेठी का चुनाव भावनात्मक रिश्तों पर टिका होता है। 1977 में संजय गांधी से इसकी शुरुआत हुई थी जो राहुल गांधी तक चली आ रही है। गौरीगंज से सात किमी दूर स्थिति पतरिया गांव के दुर्गाशंकर मिश्र कहते हैं, यहां के लोग भावनाओं से जुड़ते आए हैं। 1998 में भाजपा के संजय सिंह भावनाओं की इस लहर के सहारे ही कांग्रेस प्रत्याशी सतीश शर्मा को हराने में सफल हुए थे। इस बार भी अमेठी में राहुल गांधी का मुकाबला स्मृति ईरानी से ही होना है। पिछली बार हार का अंतर कम होने की वजह से भाजपा उत्साहित है। सर्जिकल-एयर स्ट्राइक और मोदी के चेहरे पर उसका विश्वास टिका हुआ है। दूसरी ओर भाजपा के लिए कांग्रेस की भावनात्मक किलेबंदी तोड़ना बड़ी चुनौती है। प्रियंका वाड्रा ने यहां आकर उनके लिए चुनावी जमीन पहले से ही तैयार कर रखी है।

दूसरी ओर 2014 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी आईं और बीस दिन के प्रचार में तीन लाख मत हासिल किया तो अमेठी से अपने संपर्क का सिलसिला बनाए रखा। वह केंद्रीय मंत्री बनीं तो उसके बाद भी सक्रिय रहीं। पांच सालों में स्मृति ने 21 दौरे किए और 26 दिन अमेठी में ही रही हैं। वह यह बताने में भी कामयाब हो रही हैं कि केंद्र सरकार से अमेठी को क्या-क्या मिला। सांसद को लापता बताने के साथ ही उनके प्रचार का तरीका आक्रामक है। स्मृति पार्टी के सभी विधायक, पूर्व विधायक, मंडल अध्यक्ष के साथ कार्यकर्ताओं के घरों पर जाकर मुलाकात भी कर रही हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी लोकसभा में राहुल संदेश यात्रा निकाल कर गांव-गांव घूम रही है। इसके साथ ब्लाकवार बैठकें भी की जा रही हैं। भाजपा कार्यकर्ता महेश सिंह ने बताया कि अमेठी का विकास स्मृति दीदी ने किया है।

चुनाव हारने के बाद भी वह लगातार विकास योजनाएं ला रही हैं। भाजपा अमेठी के विकास को लेकर कांग्रेस पर लगातार हमले कर रही है। रेलवे लाइन दोहरीकरण, ट्रामा सेंटर, पिपरी बांध, एचएएल की नई यूनिट आदि विकास के कार्यों को गिना रही हैं। वहीं कांग्रेस अमेठी से छीनी गई परियोजना ट्रिपल आइटी, मेगाफूड पार्क, पेपर मिल आदि छीने जाने की कमियां गिना रही है।  

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