हिन्दुत्व की व्याख्या पर कोर्ट नहीं करेगा विचार

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने 1995 में आए फैसले पर दोबारा विचार की दरख्वास्त की। उनकी मांग थी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को ‘हिंदुत्व’ के नाम पर वोट मांगने से रोका जाए।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 25 Oct 2016 02:54 PM (IST) Updated:Wed, 26 Oct 2016 03:10 AM (IST)
हिन्दुत्व की व्याख्या पर कोर्ट नहीं करेगा विचार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। धर्म के आधार पर वोट की अपील करने की मनाही के कानूनी दायरे पर विचार कर रही सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक बार फिर साफ किया कि वे हिन्दुत्व या धर्म के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे।

फिलहाल कोर्ट के सामने 1995 का हिन्दुत्व का फैसला विचाराधीन नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जो मसला विचार के लिये भेजा गया है उसमें हिन्दुत्व का जिक्र नहीं है। उन्हें विचार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की व्याख्या का मामला भेजा गया है जिसमें धर्म के नाम पर वोट मांगने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना गया है। कोर्ट इसी कानून की व्याख्या के दायरे पर विचार कर रहा है। बात ये है कि इस मामले की जड़ें नब्बे के दशक के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जुड़ी है।

जिसमें हिन्दुत्व के नाम पर वोट मांगने के आधार पर बंबई हाई कोर्ट ने करीब दस नेताओं का चुनाव रद कर दिया था। हाईकोर्ट ने इसे चुनाव का भ्रष्ट तौर तरीका माना था। हालांकि 1995 में सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट का यह फैसला पलट दिया था। उस फैसले में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि हिन्दुत्व कोई धर्म नहीं बल्कि जीवनशैली है। इन्ही मामलों से जुड़ी भाजपा नेता अभिराम सिंह की याचिका सुप्रीमकोर्ट में लंबित रह गई। इसके अलावा मध्यप्रदेश का सुन्दर लाल पटवा का मामला भी सुप्रीमकोर्ट आया। दोनों ही में धर्म के आधार पर वोट मांगने का मसला शामिल है। जो तीन और पांच न्यायाधीशों की पीठ से होता हुआ सात न्यायाधीशों के पास पहुंचा है। जिस पर आजकल विचार हो रहा है।

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हालांकि मंगलवार की सुबह सुनवाई की शुरूआत में ही मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों के द्वारा स्थिति स्पष्ट कर दिये जाने के बावजूद कोर्ट के समक्ष 1995 के हिन्दुत्व के फैसले पर समीक्षा की मांग उठती रही। सुबह कुछ हस्तक्षेप याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कोर्ट से कहा कि अगर कोर्ट 1995 के हिन्दुत्व के फैसले पर विचार कर रहा है तो उन्हें भी सुना जाए। इस पर पीठ ने कहा कि वे हिन्दुत्व या धर्म पर विचार नहीं कर रहे हैं। उनके समक्ष ये मसला विचाराधीन नहीं है।

वे मुद्दे को और व्यापक नहीं करना चाहते। उन्हें जो मुद्दा विचार के लिए भेजा गया है वह धर्म के आधार पर वोट मांगने का है उसमें हिन्दुत्व शब्द शामिल नहीं है। इसलिए फिलहाल वे उस पर विचार नहीं कर रहे अगर आगे बहस के दौरान किसी ने कोर्ट को बताया कि रिफरेंस में ये मुद्दा भी शामिल है तो वे उसे सुनेंगे। इसके बाद धारा 123(3) के दायरे पर बहस होनी लगी। भोजनावकाश के बाद एक अन्य हस्तक्षेप याचिकाकर्ता के वकील बीए देसाई ने फिर मुद्दा उठाया और कहा कि कोर्ट ये नहीं कह सकता कि उसके समक्ष हिन्दुत्व का मसला नहीं है या वह उस पर विचार नहीं करेगा।

कोर्ट के सामने जो अपीलें विचाराधीन हैं उनमें यह मुद्दा शामिल है। पीठ को पूरा मामला विचार के लिए भेजा गया है और कोर्ट को पूरे मामले पर तथ्यों के साथ विचार करना चाहिये। देसाई ने कहा कि मेरा मानना है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) के दायरे में हिन्दू और हिन्दुत्व आता है और कोर्ट को उस पर विचार करना चाहिये। फिर उन्होंने चुनाव याचिका पर त्वरित सुनवाई के मुद्दे पर दलीलें रखीं। उनकी बहस कल भी जारी रहेगी। इस मामले में वैसे तो सिर्फ तीन याचिकाएं सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन हैं लेकिन राज्य सरकारों सहित कई हस्तक्षेप याचिकाकर्ताओं ने अर्जी दाखिल कर इस मुद्दे पर उन्हें सुने जाने की अपील की है।

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