क्या है एनएसजी और भारत के लिए क्यों जरूरी है इसकी सदस्यता?
पीएम मोदी के पांच देशों की यात्रा के दौरान स्विट्जरलैंड में बड़ी कामयाबी मिली है। जेनेवा ने भारत को एनएसजी मेंबरशीप के लिए समर्थन किया है।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच देशों की यात्रा पर हैं। इस यात्रा के दौरान स्विट्जरलैंड में उन्हें बड़ी कामयाबी मिली। यहां जेनेवा में स्विट्जरलैंड ने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत के शामिल किए जाने का समर्थन किया। यात्रा के चौथे पड़ाव में पीएम मोदी अमेरिका पहुंच गए हैं। अमेरिका पहले से ही एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत का समर्थन कर रहा है। आइए, अब आपको बताते हैं आखिर न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप क्या है, और भारत के लिए क्यों जरूरी है एनएसजी की सदस्यता?
ये भी पढ़ेंः जेनेवा से तीन दिवसीय यात्रा पर अमेरिका पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी
क्या है एनएसजी?
एनएसजी की स्थापना मई 1974 में की गई थी।भारत के पहले परमाणु परीक्षण के जवाब में इसकी स्थापना हुई।इस समूह में 48 देश मेंबर हैं।एनएसजी में अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन समेत 48 सदस्य हैं।उसी वर्ष नवंबर में इस समूह के सदस्यों की पहली मुलाकात हुई।एनएसजी का मकसद परमाणु हथियार के प्रसार को रोकना है।इसके अलावा शांतिपूर्ण काम के लिए ही परमाणु सामग्री और तकनीक की सप्लाई की जाती हैन्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप आम सहमति से काम करता है।सबसे अहम बात एनएसजी सदस्य के लिए परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर जरूरी है।भारत ने अब तक एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है।भारत के परीक्षण ने साबित कर दिया था कि न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को हथियार बनाने के लिए भी प्रयोग में किया जा सकता है।जो राष्ट्र पहले ही नॉन प्रॉलिफिरेशन ट्रीटी यानी एनपीटी का हिस्सा थे उन्हें न्यूक्लियर इक्विपमेंट्स और टेक्नोलॉजी को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई।इसके बाद वर्ष 1975 से 1978 के बीच लंदन मे कई मीटिंग्स हुई थीं।इन मीटिंग्स के बाद कुछ गाइडलाइंस निर्धारित की गईं।इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एसोसिएशन की ओर से इन्हें 'ट्रिगर लिस्ट' टाइटल के साथ पब्लिश किया गया।भारत के लिए क्यों जरूरी है एनएसजी की सदस्यता?
कैसे मिलती है एनएसजी की सदस्यता एनएसजी के दरवाजे सभी देशों के लिए खुले हैं लेकिन इसके बाद भी नए सदस्यों को कुछ नियम मानने होते हैं।सिर्फ उन्हीं देशों को मान्यता मिलती है जो एनपीटी या सीटीबीटी जैसी संधियों को साइन कर चुके होते हैं।एनएसजी की सदस्यता किसी भी देश को न्यूक्लियर टेक्नोलॉली और कच्चा माल ट्रांसफर करने में मदद करती है।
ये भी पढ़ेंः भारत की नई कूटनीति, 'लुक ईस्ट' से पहले 'लुक गल्फ'
क्या है एनपीटी (Non-Proliferation Treaty)?
ये भी पढ़ेंः स्विट्जरलैंड ने किया NSG में भारत के समर्थन का वादा, मोदी ने कहा शुक्रिया
क्या है भारत का तर्क? NTP पर साइन किए बिना NSG में शामिल किए जाने को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने कहा था कि फ्रांस बिना एनपीटी साइन किए एनएसजी का सदस्य बना था।इस पर चीन भारत के रुख को खारिज करते हुए कहा था कि फ्रांस एनएसजी का संस्थापक सदस्य है और ऐसे में उसकी सदस्यता को स्वीकार किए जाने का सवाल कहां पैदा होता है।
ये भी पढ़ेंः जानिए, पीएम मोदी के अमेरिका दौरे ने क्यों उड़ा दी है पाकिस्तान की नींद
क्या है भारत का इतिहास? भारत ने एनपीटी या सीटीबीटी जैसी संधि को साइन नहीं किया हुआ है।जुलाई 2006 में अमेरिकी कांग्रेस ने भारत के साथ नागरिक परमाणू आपूर्ति के लिए कानूनों में बदलाव की मंजूरी दे दी थी।वर्ष 2008 में अमेरिकी कांग्रेस ने भारत के साथ परमाणु व्यापार से जुड़े नियमों में बदलाव किया था।वर्ष 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत की इस समूह में एंट्री के लिए अपना समर्थन दिया था।