मोदी और शाह के सामंजस्य ने भाजपा के लिए गढ़ा नया इतिहास

मोदी सरकार ने तीन साल पूरे किए हैं और बतौर अध्यक्ष शाह उस दहलीज पर है। इस दौरान तेरह राज्यों में चुनाव हुए और भाजपा ने नौ राज्यों में सरकार बना ली।

By Kishor JoshiEdited By: Publish:Tue, 23 May 2017 05:25 AM (IST) Updated:Tue, 23 May 2017 05:25 AM (IST)
मोदी और शाह के सामंजस्य ने भाजपा के लिए गढ़ा नया इतिहास
मोदी और शाह के सामंजस्य ने भाजपा के लिए गढ़ा नया इतिहास

आशुतोष झा, नई दिल्ली। शायद इसे ही अकल्पनीय कहते हैं। सदियों पूर्व जूलियस सीजर ने जो 'वीनी, वीदी, वीसी' (आइ केम, आइ सॉ, आइ कंकर्ड - आया, देखा और जीता) शब्द कहे वह वर्तमान राजनीति में बार बार सच साबित होने लगे हैं। केंद्र में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद महज तीन साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा को जितनी तेजी से उत्कर्ष पर पहुंचाया वह शायद सीजर के लिए ही संभव था। पर महत्वाकांक्षा की उड़ान कुछ ऐसी है कि शाह अभी भी इसे चरमोत्कर्ष मानने को तैयार नहीं है और क्षमता की धमक कुछ ऐसी है कि हर दावा अब तथ्य की तरह दिखने लगा है।

मोदी सरकार ने तीन साल पूरे किए हैं और बतौर अध्यक्ष शाह उस दहलीज पर है। इस दौरान तेरह राज्यों में चुनाव हुए और भाजपा ने नौ राज्यों में सरकार बना ली। मानो यह भी कम हो, सो भाजपा ने बहुमत का अर्थ ही बदल दिया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा में तीन चौथाई का ऐतिहासिक आंकड़ा स्थापित कर दिया। बात यहीं नहीं रुकी है। शाह ने खुद के लिए अब लक्ष्य भी ऐसे रखने शुरू किए हैं जो पहले कभी किसी ने न छुआ हो। और मोदी यह सुनिश्चित करने में जरा भी नहीं झिझकते कि संगठन के शाह पर आंच न आए।

दरअसल पिछले तीन वर्षों में सत्ता और संगठन के बीच समन्वय और तालमेल की भी नई परिभाषा गढ़ी गई है। दोनों एक दूसरे को बल देते हैं जो किसी भी सरकार और पार्टी में अब से पहले नहीं हुआ है। सरकार कोई फैसला करे तो संगठन उसका संदेश पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठाता है। खुद शाह एक कार्यकर्ता की तरह बूथ तक दस्तक देने उतर जाते हैं। चुनावी फतह हो तो खुद मोदी इस उपलब्धि का सेहरा शाह के सिर बांधने से नहीं चूकते। दरअसल मोदी हर वक्त संगठन के सिपाही के तौर पर कर्तव्य निभाने को तैयार खड़े होते हैं। प्रधानमंत्री की व्यस्तताओं के बावजूद ऐसा कोई विधानभा चुनाव नहीं हुआ जिसमें मोदी ने शाह के तय कार्यक्रमों के अनुसार पार्टी चुनाव में अधिकतम समय न दिया हो। शायद यही कारण है कि लक्ष्य मूर्त रूप में सामने खड़ा होने लगा है।

दूसरी तरफ शाह ने पार्टी को उस मुकाम पर खड़ा कर दिया है जहां 'असंभव' शब्द के लिए कोई जगह नहीं है। सोच से लेकर क्रियान्वयन की प्रक्रिया तक सबकुछ बदल चुकी है। और उससे भी बड़ा बदलाव है स्पष्टवादिता जो शायद राजनीति में प्रतिबंधित था। मसलन भाजपा अध्यक्ष यह स्वीकारने से नहीं हिचकते हैं कि -'राजनीतिक दल से हूं तो राजनीति ही करूंगा.. किसी विरोधी दल के राज्य में कानून व्यस्था खराब है तो उसे राजनीतिक मुद्दा बनाउंगा।' राजनीतिक आडंबर से त्रस्त लोगों को शाह की खरी खरी पसंद आने लगी है। वहीं माइक्रो मैनेजमेंट का तानाबाना कुछ ऐसा तैयार हुआ है कि भाजपा की सूची में सी और डी कैटेगरी की सीटें अब खत्म हो गई हैं। शाह का मंत्र है 'हर सीट पर हमें जीतना है।'

महत्वाकांक्षा की इस उड़ान का ही नतीजा था कि कुछ दिनों पहले शाह ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने भावी लक्ष्य रख दिया था- पूरे देश में पंचायत से लेकर संसद तक जीत। विपक्ष त्रस्त और भयभीत है लेकिन शाह इसे भाजपा का स्वर्णिम काल मानने को तैयार नहीं हैं। यह सच है कि भाजपा के कई नेताओं के लिए कठिन परीक्षा का काल चल रहा है लेकिन शाह खुद के लिए भी जो लक्ष्य तय कर रहे हैं वह अभूतपूर्व है। गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और त्रिपुरा चुनाव सामने है। गुजरात में उन्होंने 150 का लक्ष्य रखा है जो मोदी काल में भी हासिल नहीं हुआ था। जबकि त्रिपुरा के जरिए भाजपा इतिहास दोहराने की तैयारी कर रही है।

पिछले दिनों में जिस तरह त्रिपुरा की राजनीति में भूचाल है उसके बाद इसे खारिज करना संभव नहीं है कि भाजपा वहां शून्य सदस्य से लेकर सीधे सरकार गठन की स्थिति तक पहुंच सकती है। भारतीय राजनीति का नया काल शुरू करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एक एक बूथ का दौरा करने लगे है। मोदीकाल के कामकाज और चेहरे के साथ ठोस आधार पर महत्वाकांक्षा की नींव को मजबूती से खड़ा कर दिया गया है। क्या कोई दूसरा राजनीतिक दल कह पाएगा कि शाह के सपनो का स्वर्णिम काल का लक्ष्य अभेद्य है.?

लंबी पारी के लिए नई पौध 

भाजपा का राजनीतिक विस्तार जितना बाहर है उससे बड़ा बदलाव अंदरूनी है। और यही लंबी पारी की आधारशिला रखता है। महज एक डेढ़ वर्ष पहले दूसरी और तीसरी पीढ़ी के नेतृत्व के संकट से जूझ रही पार्टी अब उस मुकाम पर खड़ी है जहां किसी भी स्तर पर फैसला लेने की क्षमता भी है और साहस भी। यह बदलाव टीम मोदी और टीम शाह में स्पष्ट झलकने लगा है। नेतृत्व ने बड़ी सोच समझ के साथ केंद्र से लेकर राज्यों तक में लीडरशिप की नई पौध खड़ी कर दी है जिनमें मोदी और शाह की आक्रामकता भी है और मेहनत का जज्बा भी। इनके उदय ने यह भी सुनिश्चित कर दिया है कि सबसे बड़ी प‌र्टी के नेतृत्व की औसत उम्र भी सबसे युवा हो। यही लंबी पारी के सेनापति होंगे और बड़ी संख्या में उनकी मौजूदगी भाजपा को इसकी स्वतंत्रता भी देगी कि पार्टी बेधड़क समयोचित फैसला ले सके।

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