सौ साल बाद खुलेगा कोणार्क सूर्य मंदिर

विश्व में अपनी भव्यता और बनावट के लिए प्रसिद्ध ओडिशा का सूर्य मंदिर (कोणार्क) अथवा कोणार्क सूर्य मंदिर सौ साल बाद जनता के लिए फिर खोला जाएगा। जर्जर होने के कारण इसे 1

By Edited By: Publish:Tue, 16 Sep 2014 10:28 PM (IST) Updated:Tue, 16 Sep 2014 10:28 PM (IST)
सौ साल बाद खुलेगा कोणार्क सूर्य मंदिर

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो] विश्व में अपनी भव्यता और बनावट के लिए प्रसिद्ध ओडिशा का सूर्य मंदिर (कोणार्क) अथवा कोणार्क सूर्य मंदिर सौ साल बाद जनता के लिए फिर खोला जाएगा। जर्जर होने के कारण इसे 1913 में बंद कर दिया गया था। माना जा रहा है कि अगले तीन माह में इसके संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की ओर से काम शुरू कर दिया जाएगा।

ओडिशा के पुरी स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के मंडप की खूबसूरती लोग पिछले सौ साल से नहीं देख पा रहे हैं। 1913 में मंदिर का काफी हिस्सा जर्जर हो गया था और मुख्य मंडप के पत्थर गिरने लगे थे। लिहाजा मंदिर को जनता के लिए बंद कर दिया गया था और मुख्य मंडप को गिरने से बचाने के लिए रेत से भर दिया गया था। 2008 में एएसआइ ने मंदिर को फिर जनता के लिए खोलने पर विचार शुरू किया। इसके तकनीकी अध्ययन में पता चला कि मुख्य मंडप में भरी गई रेत खिसककर नीचे आ गई है। इसी तरह आठ सौ साल पुराने इस मंदिर की दीवारों के दरारों में भरा गया मसाला भी निकल चुका है और दीवारें खोखली हो गई हैं। मंदिर का गर्भ गृह पहले ही गिर चुका है। उसके अवशेष से दो मूर्तियां मिली थीं, जिन्हें संग्रहालय में रखा गया है।

एएसआइ ने वास्तुकार प्रतिमा बोस व इटली के पुरातत्वविद प्रोफेसर कोरोसी से रिपोर्ट तैयार कराई, जिसमें बताया कि मंदिर को संरक्षित कर गिरने से बचाया जा सकता है। एएसआइ के अनुसार, यदि कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं निकलती है तो मंदिर के मुख्य मंडप का काम एक साल में पूरा हो जाएगा और इसे जनता के लिए खोला जा सकेगा।

12 साल में तैयार हुआ था मंदिर

कोणार्क का यह मंदिर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर है, जो प्राचीन उड़िया स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। इसका निर्माण गंग वंश के राजा नरसिम्हा देव प्रथम ने 1250 ईसवी में कराया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर के मंडप में चुंबकीय शक्ति थी, जिसके कारण समुद्री पोत दुर्घटनाग्रस्त होने लगे और मंडप के चुंबकीय भाग को हटा लिया गया। इसी कारण इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा भी कहा जाता है। इसके निर्माण में 1200 शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. बीआर मणि ने बताया कि पहले मंदिर से रेत हटाई जाएगी फिर इस भाग के वास्तुकला का अध्ययन किया जाएगा।

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