कोणार्क का सूर्य मंदिर
देश में सूर्य मंदिर के रूप में अगर कोई नाम सबसे पहले उभरकर आता है तो वह है कोणार्क का सूर्य मंदिर। उड़ीसा में पुरी से 35 किलोमीटर दूर समुद्र के किनारे चंद्रभागा तट से थोड़ी ही दूर स्थित यह मंदिर 13वीं सदी में राजा नरसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। शिल्प की दृष्टि से यह पूरे भारत में सबसे बेजोड़ मंदिरों में से एक है, जिसकी त
देश में सूर्य मंदिर के रूप में अगर कोई नाम सबसे पहले उभरकर आता है तो वह है कोणार्क का सूर्य मंदिर। उड़ीसा में पुरी से 35 किलोमीटर दूर समुद्र के किनारे चंद्रभागा तट से थोड़ी ही दूर स्थित यह मंदिर 13वीं सदी में राजा नरसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। शिल्प की दृष्टि से यह पूरे भारत में सबसे बेजोड़ मंदिरों में से एक है, जिसकी तुलना में सिर्फ खजुराहो के मंदिरों को खड़ा किया जा सकता है। यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया है। सूर्य की उपासना को समर्पित यह मंदिर सूर्य के रथ के आकार में बनाया गया है। सामने की तरफ सात घोड़े हैं और दोनों तरफ बारह पहिये हैं। घोड़ों के तो अब केवल भग्नावशेष ही बचे हैं, लेकिन पहिए अब भी उसी भव्यता के साथ मौजूद हैं और वहां आने वालों के लिए बड़ा आकर्षण हैं। मुख्य मंदिर का गर्भगृह अब देखा नहीं जा सकता। जब मंदिर को नुकसान पहुंचने लगा तो सौ साल से भी ज्यादा समय हुए अंग्रेजों ने उसे अंदर से पूरी तरह भरवाकर बंद कर दिया। लेकिन वहां जाने वाले सैलानियों की संख्या और उनकी आस्था में कोई कमी नहीं आई।
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