EMISAT से भारत की सुरक्षा होगी अभेद्य, पाकिस्तान सीमा पर रहेगी कड़ी नजर

EMISAT - इसरो का पीएसएलवी-45 काफी अहम है। अहम सिर्फ इसलिए नहीं क्‍योंकि इसमें एक साथ 29 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जा रहा है बल्कि इसकी कुछ दूसरी वजह हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 01 Apr 2019 10:07 AM (IST) Updated:Mon, 01 Apr 2019 02:13 PM (IST)
EMISAT से भारत की सुरक्षा होगी अभेद्य, पाकिस्तान सीमा पर रहेगी कड़ी नजर
EMISAT से भारत की सुरक्षा होगी अभेद्य, पाकिस्तान सीमा पर रहेगी कड़ी नजर

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। EMISAT - भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को सुबह करीब 9:27 बजे 29 उपग्रहों को अपने विश्‍वसनीय रॉकेट पीएसएलवी-45 के जरिए प्रक्षेपित कर दिया। इस मिशन के तहत इसरो ने एक स्‍वदेशी और 28 विदेशी उपग्रहों को धरती की दो अलग-अलग कक्षा में स्‍थापित किया है। इस अभियान में पहली बार चार स्‍ट्रैपऑन मोटर वाले पीएसएलवी के क्‍यूएल संस्‍करण ने उड़ान भरी थी। इससे पहले इस यान ने दो, छह या फिर बिना स्‍ट्रैपऑन मोटर के ही उड़ान भरी है। इसी अभियान के तहत इसरो ने भारत के एमिसैट (EMISAT) उपग्रह को भी सफलता पूर्वक कक्षा में स्‍थापित कर दिया। यह एक प्राइमरी उपग्रह है जिसका वजन करीब 436 किग्रा है। एमिसैट को इसरो और डीआरडीओ ने मिलकर बनाया है. 

EMISAT उपग्रह की खासियत 
इसका खास मकसद पाकिस्तान की सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी तरह की मानवीय गतिविधि पर नजर रखना है। ये उपग्रह बॉर्डर पर रडार और सेंसर पर निगाह रखेगा। संचार से जुड़ी किसी भी तरह की गतिविधि पर नजर रखने के लिए भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इस उपग्रह का इस्तेमाल कर सकेगी। एमिसैट सैटेलाइट सीमा पर नजर रखने में मददगार होगा। एमिसैट का इस्तेमाल इलेक्‍ट्रोमैग्‍नेटिक स्‍पेक्‍ट्रम को मापने के लिए किया जाएगा। इसके जरिए दुश्मन देशों के रडार सिस्टम पर नजर रखने के साथ ही उनकी लोकेशन का भी पता लगाया जा सकेगा।  यह दुश्मन के इलाकों का सही इलेक्ट्रॉनिक नक्शा बनाने की त्रुटिहीन जानकारी देगा। वही साथ ही दुश्मन के इलाके में मौजूद मोबाइल समेत अन्य संचार उपकरणों की भी सही जानकारी इकट्ठा करने के लिए इसका उपयोग किया जाएगा।

इन देशों के उपग्रह भी शामिल 
इस मिशन के तहत इसरो अमेरिका के 24 उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया, जिसमें 20 फ्लोक उपग्रह शामिल हैं, जो अर्थ ऑब्‍जरवेशन सेटेलाइट हैं। इसके अलावा वेसल ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्‍टम के साथ लेमूर उपग्रह भी शामिल है। इसके अलावा अन्‍य चार उपग्रह लिथुवानिया, स्‍पेन और स्विटजरलैंड के हैं। इस उड़ान में पीएसएलवी के चौथे चरण का उपयोग स्‍पेस से जुड़े प्रयोगों के लिए, ऑर्बिटल प्‍लेटफार्म के रूप में उपयोग में किया गया था। इस स्‍टेज में तीन भारतीय पेलोड लगाए गए थे। 

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एक नजर यहां भी 
एमसैट इंडिया का ऑटोमेटिक पैकेट रिपोर्टिंग सिस्‍टम (एपीआरएस) के अलावा इसरो का ऑटामेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्‍टम (एआईएस), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ स्‍पेस साइंस एंड टेक्‍नोलॉजी का एडवांस्‍ड रिटार्डिंग पोटेंशियल एनालाइजर फॉर आइनोस्‍फेरिक स्‍टडीज (एआरआईएस), एपीआरएस एमेच्‍योर रेडियो एप्‍लीकेशन के लिए डिजिटल रिपोर्टर है। यह एमेच्‍योर रेडियो ऑपरेटर्स को पॉजीशन डेटा की ट्रेकिंग और मॉनिटरिंग में मदद करेगा। एआईएस को जहजों के ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन के लिए बनाया गया है। यह समुद्री जहाजों द्वारा प्रसारित किए गए संदेशों को हासिल कर उन्‍हें अर्थ स्‍टेशन को ट्रांसमिट करेगा। एआरआईएस एक प्‍लाज्‍मा और इलेक्‍ट्रोस्‍टेटिक उपकरण है। जिसको आइनोस्‍फेयर के रचना संबंधी अध्‍ययन के लिए बनाया गया है। 

749 किमी की ऊंचाई पर एमिसैट स्‍थापित
इस पूरे अभियान में पीएसएलवी ने सबसे पहले 749 किमी की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में एमिसैट को प्रक्षेपित किया। इसके बाद अपने इंजन को दो बार फायर करने के बाद चौथा चरण पीएस-4, 504 किमी की निचली कक्षा में आया और 28 विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया। इसके बाद यह 485 किमी की कक्षा में आया जहां पर यह तीन पेलोड की मदद से यह स्‍पेस से संबंधित कुछ प्रयोग करेगा। 

पहली बार लगे सोलर पैनल
पहली बार पीएसएलवी के चौथे चरण में सोलर पैनल भी लगाए गए हैं। इनका काम कक्षा में बिजली सप्‍लाई करना है। एक टेस्‍ट प्‍लेटफॉर्म के रूप में पीएस-4 की उपलब्‍धता से रियल टाइम में पृथ्‍वी के आइनोस्‍फेयर के अध्‍ययन का अवसर मिलेगा। इससे भविष्‍य में आइनोस्‍फेयर के सटीक मॉडल का विकास करने में मदद मिलेगी। यह उपग्रह के नेवीगेशन सिग्‍नल को और अधिक बेहतर और सटीक बनाने में सहायक होगा। यह मॉडल अन्‍य प्रयोगों में भी काफी मददगार साबित होंगे।  

ये भी खास
इसरो का यह मिशन इस लिहाज से भी बेहद खास है क्‍योंकि इसरो ने आम जनता के मिशन को करीब से देखने के लिए एक स्‍टेडियम तैयार किया है, जिसमें करीब पांच हजार लोग एक साथ बैठकर मिशन को करीब से देख सकेंगे। यह सुविधा केवल भारतीयों के लिए ही है और इसके लिए उन्‍हें किसी भी तरह का कोई टिकट भी नहीं लेना होगा। युवाओं में अंतरिक्ष में बढ़ती रूचि को देखते हुए इसरो ने यह सुविधा दी है। अब तक नासा इस तरह की सुविधा मुहैया करवाता था। इसरो ने इसके तहत स्‍टेडियम में बड़ी स्‍क्रीन भी लगाई हैं जिसपर लोग इस तरह के मिशन को करीब से देख सकेंगे। स्‍टेडियम में आने वालों को पहले से रजिस्‍ट्रेशन करवाना होगा और अपना पहचान पत्र भी एंट्री के दौरान दिखाना होगा। यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर में ही तैयार किया गया है। इस गैलरी के सामने दो लॉन्च पैड होंगे जहां से बैठकर रॉकेट प्रक्षेपण का नजारा देखा जा सकेगा। अभी तक प्रक्षेपण लाइव देखने की सुविधा सिर्फ अफसरों को ही थी।

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