पीएमओ तक पहुंची केजरी-नजीब की जंग

दिल्ली सरकार पर अधिकार को लेकर उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच छिड़ी सियासी जंग गृह मंत्रलय के बाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंच गई है। यह दीगर बात है कि राजनिवास और दिल्ली सचिवालय के रिश्तों के बीच लगातार तल्ख हो रहे प्रशासनिक रिश्तों में

By Sanjay BhardwajEdited By: Publish:Tue, 12 May 2015 09:04 AM (IST) Updated:Tue, 12 May 2015 09:21 AM (IST)
पीएमओ तक पहुंची केजरी-नजीब की जंग

नई दिल्ली [अजय पांडेय]। दिल्ली सरकार पर अधिकार को लेकर उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच छिड़ी सियासी जंग गृह मंत्रालय के बाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंच गई है। यह दीगर बात है कि राजनिवास और दिल्ली सचिवालय के रिश्तों के बीच लगातार तल्ख हो रहे प्रशासनिक रिश्तों में मिठास घोलने की पहल कहीं से नहीं हो रही।

उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार के तमाम अधिकारियों के सांन में होने के बावजूद इस टकराव को रोकने के लिए निर्णायक पहल नहीं हुई है। वहीं दो बड़ी हस्तियों के टकराव का खामियाजा पूरी नौकरशाही भुगत रही है। उपराज्यपाल जंग ने विवाद की पूरी जानकारी गृह मंत्रालय को दी है। राजनिवास की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट भेजी गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 और ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रुल्स 1993 के आधार पर दिल्ली सरकार के मामले में उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां प्राप्त हैं। दूसरी ओर वर्ष 1998 में केंद्र सरकार की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया है कि उपराज्यपाल विभिन्न मामलों में दिल्ली के मुख्यमंत्री से सलाह-मशविरा कर सकते हैं। अब इस सरकारी आदेश की दोनों पक्ष अपनी-अपनी व्याख्या कर रहे हैं।

सनद रहे कि संविधान की धारा 239एए में दिल्ली सरकार के मामलों में उपराज्यपाल की वरीयता दी गई है। नौकरशाही अब तक उसी तरीके से काम करती रही है, लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल द्वारा अपने अधिकारों को लेकर आवाज बुलंद किए जाने के बाद राजनिवास से लेकर केंद्र सरकार तक में हड़कंप मचा हुआ है।

नौकरशाही पर दो-दो हाथ करने को तैयार सरकार

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। दिल्ली सरकार के आला अधिकारियों के तबादले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय व केजरीवाल सरकार के बीच विवाद गहराने के आसार हैं। अधिकारियों की नियुक्ति व उनके तबादलों के मामलों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी भी कीमत पर अपनी उपेक्षा बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।

आपको बता दें कि दिल्ली सरकार में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति और उनके तबादले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी केंद्र सरकार से लगातार टकराती रहीं। लेकिन उनके डेढ़ दशक के कार्यकाल में पांच साल ही केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार रही, बाकी दस साल कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें रहीं। यही वजह रही कि दीक्षित को अपने मनमाफिक अधिकारियों की नियुक्ति कराने और उनके तबादले रुकवाने में ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ा। अब मामला बिल्कुल उल्टा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि अधिकारों के मामले में दिल्ली सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। उसे हर मामले में केंद्र की ओर देखना पड़ता है। परन्तु दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास दर्ज करने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल को यह स्थिति मंजूर नहीं है। वे दिल्ली सरकार के लिए पर्याप्त अधिकार चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजे एक पत्र में यह मांग की कि अधिकारियों के तबादलों के मामले में दिल्ली सरकार से रायशुमारी जरूर की जानी चाहिए। उनकी इस मांग को गृह मंत्रालय के उस पुराने आदेश से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें दिल्ली सरकार में तैनात कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले के मामले में मंत्रलय ने कहा था कि उन्हें तय समय में नए स्थान पर रिपोर्ट करना होगा अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सियासी पंडितों का कहना है कि केंद्र व दिल्ली सरकार के बीच बढ़ते टकराव की एक बड़ी वजह यह भी है कि केंद्र दिल्ली को किसी भी सूरत में पूर्ण राज्य का दर्जा देने को तैयार नहीं है और केजरीवाल को बगैर अधिकारों वाली यह हुकूमत रास नहीं आ रही। वह एक ऐसी सरकार के मुखिया हैं जिसके तहत न यहां की पुलिस है और न ही जमीन। जमीन अपने पास नहीं होने के कारण उनके लिए अपने चुनावी वायदे पूरे करना मुश्किल हो रहा है। चाहे अस्पतालों का निर्माण करना हो अथवा स्कूल बनाने हों, बगैर जमीन के सरकार कोई भी काम नहीं कर पाएगी। वही हालत पुलिस के मामले में भी है। बहरहाल, मुख्यमंत्री ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर साफ कर दिया है कि दिल्ली सरकार की उपेक्षा नहीं बर्दाश्त की जाएगी।

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