सुप्रीम कोर्ट के चलते ही सही लेकिन Delhi-NCR इस बार होगी दीपों की दिवाली

दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी को नियमित करने या फिर प्रतिबंध लगाने को लेकर भी गाहे-बगाहे आवाज उठती रही है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 09 Oct 2017 03:15 PM (IST) Updated:Wed, 11 Oct 2017 10:05 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट के चलते ही सही लेकिन Delhi-NCR इस बार होगी दीपों की दिवाली
सुप्रीम कोर्ट के चलते ही सही लेकिन Delhi-NCR इस बार होगी दीपों की दिवाली

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। दिवाली को दीपों का त्योहार कहा जाता रहा है। लेकिन बीते कुछ दशकों में इसकी पहचान दियों से हटकर रंग-बिरंगी लाइटों और कानफोड़ू आतिशबाजी को लेकर होने लगी है। दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी को नियमित करने या फिर प्रतिबंध लगाने को लेकर भी गाहे-बगाहे आवाजें उठती रही हैं। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों को लेकर सराहनीय काम किया है। वायु प्रदूषण के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का इस बारे में दिया गया फैसला वास्‍तव में तारीफ के काबिल है। लिहाजा इस बार दिवाली अपने नाम को सु्प्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चरितार्थ करेगी। अपने ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस दिवाली पर पटाखों की बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। देखा जाए तो इसके कई पहलू हैं। इनमें से एक पहलू जो सबसे अहम है वह प्रदूषण का है। इसके अलावा इसका दूसरा पहलू पटाखों के कारोबार का है और तीसरा अहम पहलू इस कारोबार में लगे मजदूरों का भी है।

आदेश के पीछे तीन अहम पहलू

देखा जाए तो तीनों ही पहलू इसके बेहद खास हैं। खास इसलिए क्‍योंकि आतिशबाजी से जहां प्रदूषण लेवल बढ़ता है, वहीं इससे होने वाली आय से सरकार की तिजोरी भी भरती है और मजदूरों को आय का जरिया भी मिलता है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद सरकार की आय और मजदूरों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव जरूर देखने को मिलेगा। आतिशबाजी कारोबार में लगे लोग इस बात को मानते हैं कि जितनी आतिशबाजी पूरे वर्ष होती है उतनी अकेले दिवाली पर हो जाया करती है। लिहाजा इसका एक प्रतिकूल असर इस कारोबार पर भविष्‍य में जरूर देखने को मिलेगा। लेकिन यदि प्रदूषण की बात करें तो कोर्ट का यह फैसला बेहद सराहनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में यह भी साफ कर दिया है कि सरकार ने फैसले से पहले जितने भी लाइसेंस जारी किए वह सब तत्‍काल प्रभाव से रद किए जा रहे हैं।

यह भी पढ़ें: यवतमाल: फसल को कीड़ों से बचाने की जुगत में चली गई 20 किसानों की जान 

एक टेस्‍ट के लिए है सुप्रीम कोर्ट का ओदश

इन सभी के बीच कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि उसका यह आदेश एक टेस्‍ट की तरह है, जिसमें कोर्ट यह देखेगा कि आखिर बिना आतिशबाजी के दिल्‍ली-एनसीआर की आबोहवा कितनी साफ है। इसके बाद कोर्ट इस पर अपना फैसला दोबारा सुनाएगा। फिलहाल कोर्ट ने एक नवंबर से दोबारा पटाखे बेचने को भी अनुमति दी है। सितंबर के आदेश के बाद जिन दुकानदारों ने बिक्री के लिए पटाखे खरीद लिए थे, नए आदेश से उन्हें झटका लगा है। यहां पर यह बात ध्‍यान रखनी होगी कि हर वर्ष दिवाली के बाद दिल्‍ली-एनसीआर का प्रदूषण लेवल खतरनाक स्‍तर तक पहुंच जाता है। इसका समय-समय पर कोर्ट ने भी संज्ञान लिया है और सरकारों ने भी इस पर आपत्ति जताई है।

यह भी पढ़ें: आखिर कौन है ये लड़की जिस पर किम को इतना भरोसा, जानें कुछ दिलचस्प पहलू

हजार करोड़ रुपये का नुकसान

सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश का सबसे बड़ा प्रभाव पटाखा कारोबार पर पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक इस फैसले के बाद इस कारोबार को करीब हजार करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है। इतना ही नहीं सिवकाशी जहां से पूरे आतिशबाजी कारोबार का करीब 85 फीसद कारोबार होता है उस पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा। सिवाकाशी में सालाना 7000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। यहां पर इस काम में करीब 8 लाख मजदूर लगे हैं। इनमें से तीन लाख इससे सीधेतौर पर जुड़े हैं जबकि पांच लाख करीब इससे संबंधित कारोबार से जुड़े हुए हैं।

यह भी पढ़ें: किसी को नहीं पता था यह रात उनके लिए आखिरी रात साबित होगी, लेकिन ... 

सीपीसीबी का ये है मानना

इस बाबत Jagran.com से बात करते हुए सेंट्रल पॉल्‍यूशन कंट्रोल बोर्ड के मेंबर सेक्रेट्री ए. सुधाकर ने इस फैसले को बेहतर बताते हुए उम्‍मीद जताई है कि इससे दिवाली के दौरान प्रदूषण में जरूर कमी आएगी। उन्‍होंने बातचीत में यह भी साफ कर दिया कि सीपीसीबी का पक्ष इस बाबत बेहत साफ है कि जिस चीज से भी दिल्‍ली की हवा प्रदूषित होती है उसपर पूरी तरह से प्रतिबंध लगना ही चाहिए। इस दौरान सुधाकर ने यह भी बताया कि दिल्‍ली की आबोहवा अक्‍टूबर से लेकर मार्च तक सर्दियों के मौसम में काफी खराब स्‍तर पर आ जाती है। इसकी वजह यह भी है कि इस दौरान जहरीला धुआं काफी नीचे ही रह जाता है जो लगातार सांस के माध्‍यम से इंसान के अंदर जाता है। ऐसे में दिवाली के दौरान होने वाली आतिशबाजी और घातक साबित होती है।

आतिशबाजी के कारोबार से सीपीसीबी का कोई लेना देना नहीं

सुधाकर के मुताबिक इस बाबत सीपीसीबी ने कोर्ट में आतिशबाजी को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की बात कही थी और उनकी संस्‍था का अहम मकसद भी यही है। उन्‍होंने यह भी माना कि दिल्‍ली की आबोहवा आने वाले दिनों में दिल्‍ली के आस-पास जलने वाली पराली की वजह से भी प्रदूषित होगी। इसके अलावा गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से भी यह प्रदूषित होती है। सीपीसीबी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आतिशबाजी का सालाना कितना कारोबार होता है और कितने मजदूर इस काम में लगे हैं। सीपीसीबी का काम प्रदूषण को कम करने के लिए काम करने का है। लोगों को काम देना उनका काम नहीं है यह सरकार का काम है।

यह भी पढ़ें: US ने CPEC और OBOR का किया विरोध, भारत के पक्ष में दिया ये बड़ा बयान 

 

सदर बाजार एसोसिएशन की राय

फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेड्स एसोसिएशन और कुतुब रोड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष राजेश कुमार यादव का कहना है कि उनकी तरफ से भी काफी समय से पटाखे बैन करने की मांग कही जा रही थी। इसकी दो वजहों में से पहली थी इससे होने वाला प्रदूषण और दूसरा किसी तरह की अनहोनी होने से होने वाला नुकसान। हालांकि इनका यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में पहले ही एक बार में फैसला ले लेना चाहिए था। उनके मुताबिक फैसले से पहले दिल्‍ली में करीब 250 लाइसेंस जारी किए गए थे, जिसमें से केवल 22 ही सदर बाजार के लिए जारी हुए थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वह खुश तो हैं, लेकिन साथ ही मानते हैं इससे दिहाड़ी मजदूरों समेत कारो‍बारियों को भी काफी नुकसान झेलना पड़ेगा। उनके मुताबिक दिवाली के 15 दिनों के कारोबार में एक-एक दुकानदार करीब 70-80 लाख का कारोबार करता है। उसके साथ कई मजदूर भी होते हैं लिहाजा इन सभी को ये नुकसान झेलना होगा। उन्‍होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पटाखा कारो‍बारियों की एसोसिएशन हो सकता है कोर्ट का दरवाजा खटखटाए।

प्रदूषण लेवल दोगुना

साल 2016 में दिवाली के दौरान प्रदूषण का स्तर वर्ष 2015 की तुलना में दोगुना मापा गया था। सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान 2016 में पीएम पर्टिकुलेट मैटर 2.5- 1238 पाया गया था जो कि 2015 के 435 के मुकाबले दोगुने से भी कहीं अधिक था। पीएम दरअसल बेहद महीन कण होते हैं जो हवा में तैरते हुए सांस के जरिए इंसान के अंदर पहुंचकर फेंफड़ों को बेकार कर देते हैं। इनसे सांस लेने में दिक्‍कत होना बेहद आम बात है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक हवा में इनकी मात्रा औसतन 10 से नीचे होनी चाहिए। इसके अलावा पर्टिकुलेट मैटर के बढ़ने का असर सीधेतौर पर मृत्युदर पर भी पड़ता है। आसान शब्‍दों में कहें तो यह इंसान की औसम उम्र को घटा देता है। इससे बूढ़े और बच्‍चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

दुनिया के प्रदूषित शहरो में है दिल्ली

वर्ष 2016 में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में दिल्‍ली शुरुआती 11 शहरों में शामिल था। इसमें भारत के करीब तीन शहर शामिल थे। वहीं वर्ष 2017 में टॉप 10 प्रदूषित शहरों की बात करें तो इसमें भारत के रायपुर, पटना और ग्‍वालियर का नाम शामिल है। आंकड़ों की मानें तो दिल्‍ली में पूरे वर्ष पर्टिकुलेट मैटर की मात्रा जिसे महज 10 से नीचे होना चाहिए वह औसतन 122 पर रहती है। 2015 में सेंट्रल पॉल्‍यूशन कंट्रोल बोर्ड ने दिल्‍ली की एयर क्‍वालिटी को ‘बेहद खराब’ घोषित किया था।

यह भी पढ़ें: आतंकी सईद को बोझ बताने वाले ख्वा‍जा आसिफ ने माना संत नहीं है ‘पाकिस्तान’ 

जयपुर के चौंकाने वाले आंकड़े

यहां पर बात फिलहाल सिर्फ दिल्‍ली एनसीआर की हो रही है, लेकिन यदि यहां से बाहर जाएं तो हालात बेहद चौंकाने वाले हैं। पटाखों को बैन करने का मामला कोर्ट में जाने से पहले अनुमानित तौर पर करीब ढाई लाख किलो की आतिशबाजी दिल्‍ली-एनसीआर में होनी थी। लेकिन क्षेत्रफल में इससे कहीं कम जयपुर की बात की जाए तो वहां पर करीब दस लाख किलो आतिशबाजी इस दिवाली के लिए तैयार है। यह सरकारी आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं।

chat bot
आपका साथी