नए सत्र से क्यों नहीं लागू करते संस्कृत: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बीच सत्र में जर्मन भाषा की जगह संस्कृत लागू करने के फैसले पर सरकार से फिर विचार करने को कहा है। कोर्ट ने शुक्रवार को पूछा कि सरकार बच्चों और अभिभावकों को होने वाली दिक्कतों का खयाल करते हुए संस्कृत को अगले सत्र से क्यों नहीं लागू

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 28 Nov 2014 04:06 PM (IST) Updated:Sat, 29 Nov 2014 08:10 AM (IST)
नए सत्र से क्यों नहीं लागू करते संस्कृत: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने बीच सत्र में जर्मन भाषा की जगह संस्कृत लागू करने के फैसले पर सरकार से फिर विचार करने को कहा है। कोर्ट ने शुक्रवार को पूछा कि सरकार बच्चों और अभिभावकों को होने वाली दिक्कतों का खयाल करते हुए संस्कृत को अगले सत्र से क्यों नहीं लागू करती? आखिर छोटे बच्चों की क्या गलती है? सरकार के जवाब का इंतजार करते हुए कोर्ट ने मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार तक टाल दी है।

अभिभावकों की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एआर दवे की पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि ऐसी क्या जल्दी है कि सरकार बीच सत्र में जर्मन की जगह तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत लागू कर रही है। इसे नए सत्र से क्यों नहीं लागू करते? कोर्ट ने अटार्नी जनरल से कहा कि वे इस पर सरकार से निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करें।

क्या है मामला

केंद्र सरकार ने गत ११ नवंबर को केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा छह से आठ तक तीसरी भाषा के रूप में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाने का आदेश जारी किया है। कुछ अभिभावकों ने बीच सत्र में संस्कृत लागू करने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

याचिकाकर्ता का तर्क

याचिकाकर्ता की वकील रीना सिंह ने बीच सत्र में संस्कृत लागू करने का विरोध करते हुए कहा कि अगर इसे मार्च से लागू किया जाता तो क्या पहाड़ टूट जाता। संविधान हिंदी की बात करता है, संस्कृत की नहीं।

सरकार का जवाब

सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल ने संस्कृत को संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व की भाषा बताया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा छह से आठ तक संस्कृत ही तीसरी भाषा होगी। इससे बच्चों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा, क्योंकि उन्हें अभी शुरुआती संस्कृत पढ़ाई जाएगी। जर्मन पढ़ाया जाना गलत है और गलती को जारी नहीं रखा जा सकता। अभी तक मैक्समूलर भवन के साथ केंद्रीय विद्यालय संगठन के करार के मुताबिक जर्मन पढ़ाई जा रही थी। यह करार गत सितंबर में खत्म हो गया है। हालांकि अभी भी जर्मन अतिरिक्त विषय के तौर पर पढ़ी जा सकती है।

'संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। हम संस्कृत के खिलाफ नहीं हैं, पर इसे बीच सत्र से नहीं लागू किया जाना चाहिए।' -सुप्रीम कोर्ट

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क्यों पढ़ी जाए संस्कृत

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