राज्यपालों की रवानगी शुरू, यूपी के बीएल जोशी का इस्तीफा

केंद्र की मोदी सरकार के स्पष्ट संकेत मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने पद से इस्तीफा दे दिया है। जोशी के साथ ही लगभग आधा दर्जन राज्यपालों को भी अनौपचारिक तौर पर इस्तीफा देने का संदेश पहुंचा दिया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में ये आसानी से झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश में जुटे राज्यपालों के रवैये पर टिप्पणी करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर वह उनकी जगह होते, तो कब का इस्तीफा दे देते।

By Edited By: Publish:Tue, 17 Jun 2014 06:29 PM (IST) Updated:Wed, 18 Jun 2014 07:04 AM (IST)
राज्यपालों की रवानगी शुरू, यूपी के बीएल जोशी का इस्तीफा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र की मोदी सरकार के स्पष्ट संकेत मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने पद से इस्तीफा दे दिया है। जोशी के साथ ही लगभग आधा दर्जन राज्यपालों को भी अनौपचारिक तौर पर इस्तीफा देने का संदेश पहुंचा दिया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में ये आसानी से झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश में जुटे राज्यपालों के रवैये पर टिप्पणी करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर वह उनकी जगह होते, तो कब का इस्तीफा दे देते। उनके बयान से साफ है कि सरकार अब अपने कदम वापस नहीं खींचेगी।

संदेश साफ है कि मनमोहन सरकार के दौरान नियुक्त हुए राज्यपालों को जाना ही होगा, लेकिन कैसे? इस पर मोदी सरकार साफ नहीं है। पहली कोशिश तो सिर्फ दबाव बनाकर इस्तीफा लेने की है। बीएल जोशी का इस्तीफा इसी का नतीजा है। यूं तो बीएल जोशी का कार्यकाल मार्च, 2014 में ही खत्म हो गया था, लेकिन पिछली मनमोहन सरकार ने उन्हें दोबारा पांच साल के लिए राज्यपाल नियुक्त किया था। इस कड़ी में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन और नगालैंड के राज्यपाल अश्विनी कुमार का इस्तीफा तय माना जा रहा है।

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि समस्या राज्यपाल बने पूर्व नौकरशाहों को लेकर नहीं है। असली समस्या राज्यपाल बने कांग्रेस के पुराने दिग्गजों को लेकर है। पूर्व कानून मंत्री और कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री व असम के राज्यपाल जेबी पटनायक ने अपने इस्तीफे की अटकलों को खारिज कर दिया है। तीन महीने पहले केरल की राज्यपाल बनाई गई दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मीडिया में चल रही खबरों पर टिप्पणी से ही इन्कार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक हद तक राज्यपालों को सुरक्षा का भाव भले ही देता हो, लेकिन उन्हें हटाने से केंद्र सरकार पर पूरी तरह रोक नहीं लगाता है। यही कारण है कि निशाने पर आए राज्यपाल अब प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर राष्ट्रपति भवन तक चक्कर लगाने लगे हैं। इस सिलसिले में राजस्थान की राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। जेबी पटनायक और हंसराज भारद्वाज भी राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे।

राज्यपाल भले ही मोदी सरकार के आगे नहीं झुकने का संकेत दे रहे हों, लेकिन उनमें कई का कार्यकाल कुछ दिन से लेकर कुछ महीने का ही बचा है। त्रिपुरा के राज्यपाल देवेंद्र कुंवर और हंसराज भारद्वाज का कार्यकाल इसी महीने की 28 व 29 तारीख को खत्म हो रहा है, जबकि हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया का 26 जुलाई, राजस्थान की राज्यपाल मार्गेट अल्वा का 5 अगस्त, गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल का 14 अक्टूबर, बिहार के राज्यपाल डीवाई पाटिल का 26 नवंबर और असम के राज्यपाल जेबी पटनायक का कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हो रहा है।

सूत्रों की मानें तो देर-सबेर अधिकांश राज्यपालों के इस्तीफे हो जाएंगे या उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। वैसे शीला दीक्षित जैसे कुछ राज्यपाल इस्तीफा नहीं देने पर अड़ने की आशंका से इन्कार नहीं कर रहे हैं। दरअसल, बतौर राज्यपाल उन्हें राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के मामले में जांच की आशंका से संवैधानिक सुरक्षा घेरा मिला हुआ है। हटते ही पुरानी फाइल खुलने का भय उन्हें इस पद पर जमे रहने के लिए बाध्य कर रहा है। ऐसे राज्यपाल को मणिपुर, त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थानांतरित भी किया जा सकता है।

कार्रवाई का विवादों से नाता

2004 में संप्रग सरकार के सत्ता में आने के बाद पूर्ववर्ती राजग सरकार द्वारा नियुक्त कई राज्यपालों को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया था। उस कदम का भी विरोध हुआ था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था :

अदालत का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2010 में निर्णय देते हुए कहा था कि राज्यपाल केंद्र सरकार के कर्मचारी नहीं होते। इसलिए सत्ता बदलने के साथ उनको मनमाने तरीके से नहीं बदला जा सकता। कोर्ट के मुताबिक कदाचार या किसी अन्य अनियमितता के आरोपों के आधार पर ही उनको बदला जाना चाहिए।

संवैधानिक व्यवस्था

संविधान के भाग छह में राज्यपाल से संबंधित प्रावधान हैं :

अनुच्छेद 153 : प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा।

अनुच्छेद 155 : राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा करेगा।

अनुच्छेद 156 : राज्यपाल की पद अवधि से संबंधित है। इसके तहत राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पद धारण करेगा।

-राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पद त्याग सकेगा।

-इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुए वह अपने पदग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।

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