कांग्रेस को वापसी में लग गए थे 20 साल

खूंटी लोकसभा के चुनाव परिणामों पर नजर दौड़ाई जाए तो यहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। पिछली दफा कांग्रेस की वापसी में 20 वर्ष लग गए थे। हालांकि कांग्रेस टक्कर देती रही। 1957 से अब तक 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें कांग्रेस को मात्र तीन बार सफलता मिली। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने सर्वाधिक सात बार जीत दर्ज की है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 11 Apr 2019 09:29 PM (IST) Updated:Fri, 12 Apr 2019 06:26 AM (IST)
कांग्रेस को वापसी में लग गए थे 20 साल
कांग्रेस को वापसी में लग गए थे 20 साल

खूंटी : लोकसभा के चुनाव परिणामों पर नजर दौड़ाई जाए, तो यहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। पिछली दफा कांग्रेस की वापसी में 20 वर्ष लग गए थे। हालांकि, कांग्रेस टक्कर देती रही। 1957 से अब तक 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें कांग्रेस को मात्र तीन बार सफलता मिली, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने सर्वाधिक सात बार जीत दर्ज की है।

1957 के बाद पहली दफा कांग्रेस को 1967 में अर्थात दस वर्षों के बाद विजेता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस समय झारखंड दल से छोड़कर जयपाल सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उन्होंने अपनी जीत का चौका दर्ज किया। इसके 17 वर्षों के बाद 1984 में कांग्रेस की लहर में पार्टी प्रत्याशी साइमन तिग्गा ने जीत दर्ज की। उनके बाद बीस वर्षों तक कांग्रेस को इंतजार करना पड़ा था। 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने जीत दर्ज की। हालांकि, इसके पूर्व उन्होंने लगातार तीन चुनावों में दूसरे स्थान पर पार्टी को कायम रखा था।

1957 एवं 1962 के चुनाव में झारखंड दल के जयपाल सिंह का दबदबा रहा। वे नेता के अलावा देश को हॉकी में स्वर्ण दिलाने वाले प्रथम हॉकी खिलाड़ी थे। आदिवासी हितों की वकालत करने के कारण उनकी खूंटी लोकसभा क्षेत्र में लोकप्रियता कायम रही। 20 जून 1963 को वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। इसके बाद 1967 के चुनाव में उन्होंने खूंटी लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर यहां कांग्रेस का खाता खोलवाया।

1971 के चुनाव में अलग राज्य के मुद्दे पर एनई होरो ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। उस समय दूसरे स्थान पर जनसंघ प्रत्याशी कड़िया मुंडा थे। एनई होरो को 50489 एवं कड़िया मुंडा को 47275 वोट मिले थे। इसके बाद लंबी अवधि तक कांग्रेस पार्टी दूसरे स्थान पर भी नजर नहीं आई। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर कड़िया मुंडा निर्वाचित हुए, जबकि दूसरे स्थान पर झारखंड पार्टी के नीरेल मुंडू रहे। कड़िया मुंडा को 91859 मत मिले थे, जबकि नीरेल मुंडू को 56976 वोट।

1980 में पुन: झारखंड दल का इस सीट पर कब्जा हो गया। दल के एनई होरो को 74229 एवं दूसरे स्थान पर रहे कड़िया मुंडा को 54400 वोट मिले थे। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद 1984 में कांग्रेस को यहां सफलता मिली। पार्टी के साइमन तिग्गा ने 97721 वोट लाकर झारखंड दल के एनई होरो को शिकस्त दे दी। 1989 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पुन: कड़िया मुंडा निर्वाचित हुए। उन्हें 110580 वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर एनई होरो रहे थे। 1991 के चुनाव में पुन: कड़िया मुंडा विनर तथा एनई होरो रनर रहे।

1996 से कांग्रेस यहां टक्कर देने की स्थिति में आई। जीत भाजपा प्रत्याशी कड़िया मुंडा की हुई, लेकिन दूसरे स्थान पर कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने स्वयं को स्थापित किया। कड़िया मुंडा को 138765 वोट मिले थे। जबकि सुशीला केरकेट्टा को 111093 वोट। 1998 एवं 1999 के चुनावों में भी भाजपा से कड़िया मुंडा विजयी रहे। पर, सुशीला केरकेट्टा दूसरे स्थान पर रहकर टक्कर देती रहीं। 1999 में कड़िया मुंडा को 187484 तथा सुशीला केरकेट्टा को 161222 वोट मिले थे।

2004 का चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए खुशियां लेकर आया। तीन बार दूसरे पायदान पर रहनेवाली सुशीला केरकेट्टा ने 218158 वोट पाकर भाजपा के कड़िया मुंडा को दूसरे स्थान पर धकेल दिया। कड़िया मुंडा को 166932 वोट मिले थे।

2009 के चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा पुन: विजयी घोषित हुए। 210214 वोट लाकर उन्होंने कांग्रेस के नियेल तिर्की को पराजित कर दिया। नियेल तिर्की को 130039 वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में कांग्रेस एक पायदान पीचे चली गई। विजेता भाजपा प्रत्याशी कड़िया मुंडा को 269185 वोट प्राप्त हुए। जबकि 176937 वोट लाकर झापा के एनोस एक्का दूसरे स्थान पर पहुंच गए। कांग्रेस के कालीचरण मुंडा 147017 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे।

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