आज भी याद है उस दिवाली की स्याह शाम, जेहन में दृश्य उभरते ही कांप जाती झरिया की रूह Dhanbad News

आज से कोई 27 साल पहले की बात है। जगमग दिवाली की शाम। उस शाम में जो कुछ भी हुआ था उसे याद कर लोग सहम जाते हैं। उनके जेहन में दिवाली की उस शााम की बात स्याह शाम की बात याद आती है।

By MritunjayEdited By: Publish:Tue, 22 Oct 2019 12:41 PM (IST) Updated:Fri, 25 Oct 2019 09:34 AM (IST)
आज भी याद है उस दिवाली की स्याह शाम, जेहन में दृश्य उभरते ही कांप जाती झरिया की रूह Dhanbad News
आज भी याद है उस दिवाली की स्याह शाम, जेहन में दृश्य उभरते ही कांप जाती झरिया की रूह Dhanbad News

झरिया [ जागरण स्पेशल ]। हर साल जब रोशनी का त्योहार दिवाली आती है तो झरिया की रूह कांप जाती है। उस दिवाली की स्याह शाम याद आती है। उस स्याह शाम का भवायवह दृश्य लोगों के दिलों-दिमाग में नाचने लगता है। इस साल यानी 27 अक्टूबर 2019 को दिवाली है। चहुंओर जब दिवाली की तैयारी हो रही है तो इन सबके बीच झरिया को वह स्याह शाम याद आ रही है।

आज से कोई 27 साल पहले की बात है। जगमग दिवाली की शाम। उस शाम में जो कुछ भी हुआ था, उसे याद कर लोग सहम जाते हैं। उनके जेहन में दिवाली की उस शााम की बात, स्याह शाम की बात याद आती है। जब पटाखों के शोर में झरिया डूबा हुआ था अचानक पटाखा दुकानों में आग लग गई। आंकड़ों के अनुसार 29 लोगों की माैत हो गई थी। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ें कहीं ज्यादा थे। यह अविभाजित बिहार के जमाने की घटना है। वर्ष 1992 की 25 अक्टूबर की शाम थी। हर ओर दीपावली की खुशियां लोगों को खुशी से सराबोर कर रहीं थीं। बाजारों में खरीदारों की भीउ़ लगी थी।  तभी शाम साढ़े चार बजे सिन्दुरिया पट्टी में निकली एक चिंगारी ने पटाखों की दुकान में आग भड़का दी थी। इस घटना ने  पूरे देश को दहला दिया था। 29 लोग काल के गाल में समा गए थे। करीब चार दर्जन से अधिक घायल हो गए थे।

बताते हैं कि घटना के बाद अविभाजित बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने झरिया का दौरा किया था। पटाखा कांड में राम स्वरूप मोदी, प्रतिमा कुमारी, दीपक मोदी, आनंद स्वरूप जायसवाल, राजकुमार जायसवाल, फूलचंद जायसवाल, प्रदीप कुमार साव, मो. मुख्तार आलम, जीतेन स्वर्णकार, तनवीर आलम, विकास गुप्ता, मो रियाज, मो इजरायल, रोहित सिन्हा, सुमित भास्कर, नुनुवती देवी, राजू सोनकर, रंजन सिंह, प्रिंस साहु, सोनू कानोडिया, संजय केशरी, अनूप केशरी, बैजनाथ साव एवं मो. रफीक काल के गाल में समा गये थे। जिन घरों के लोगों की मौत हुई उनके परिजनों की आंखें आज भी उस वक्त की बात होते ही झर-झर बहने लगतीं हैं।  आज भी जब दीवाली की दस्तक होती है तो लोगों के जेहन में वह मंजर ताजा हो जाता है। झरिया के लोगों का कहना है कि वह दिन कभी नहीं भूल सकते। बस ऐसी घटना कभी न हो इसकी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। 

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