शुरू से होगी शुरुआत तो हिंदी बनेगी पुलिस और न्यायालय की भाषा, जानिए क्‍या कहते हैं अधिवक्‍ता

Hindi Diwas हिमाचल के पुलिस थानों व न्यायालयों में हिंदी के इस्तेमाल के लिए अधिवक्ता तो हैं लेकिन एक्ट में संशोधन की जरूरत है।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Mon, 14 Sep 2020 10:33 AM (IST) Updated:Mon, 14 Sep 2020 10:33 AM (IST)
शुरू से होगी शुरुआत तो हिंदी बनेगी पुलिस और न्यायालय की भाषा, जानिए क्‍या कहते हैं अधिवक्‍ता
शुरू से होगी शुरुआत तो हिंदी बनेगी पुलिस और न्यायालय की भाषा, जानिए क्‍या कहते हैं अधिवक्‍ता

शिमला, जागरण संवाददाता। हिमाचल के पुलिस थानों व न्यायालयों में हिंदी के इस्तेमाल के लिए अधिवक्ता तो हैं, लेकिन एक्ट में संशोधन की जरूरत है। अधिवक्ताओं की माने तो हिंदी का पूरा प्रयोग यदि न्यायालयों में शुरू करना है तो पढ़ाई से लेकर थानों में इस्तेमाल हो रही भाषा में भी बदलाव करना होगा। थानों में उर्दू व फारसी का इस्तेमाल होता है। ये आम नागरिक को समझ नहीं आती। इसमें सुधार के लिए जमीनी स्तर से बदलाव किया जाना चाहिए। सदियों से चले आ रहे सिस्टम को बदलने की शुरुआत भी नीचे से शुरू होनी चाहिए। पहले पढ़ाई और रिकॉर्ड को पूरी तरह से हिंदी में बनाया जाना चाहिए।

शिमला के अधिवक्‍ता परेश शर्मा का कहना है न्यायालयों में कामकाज में हिंदी का प्रयोग होना चाहिए। इसके लिए जो भी आवश्यक संशोधन किया जाना है। आम व्यक्ति को कई बार पूरी याचिका समझानी पड़ती है। राष्ट्र भाषा में अनुवाद के लिए केंद्रीय स्तर पर ही कोई बदलाव करने की जरूरत है।

अधिवक्ता अंकुश ठाकुर का कहना है हिमाचल हिंदी भाषी राज्य है। यहां हिंदी में न्यायालयों के काम की सुविधा होनी चाहिए। रिपोर्ट लिखवाने वालों को ही थाने में समझ नहीं आता है कि उनका बोला हुआ लिखा है या नहीं। राजस्व विभाग और न्यायालयों में हिंदी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

अधिवक्‍ता विक्रांत ठाकुर का कहना है राज्य में भी जिलास्तर के न्यायालयों में हिंदी में बात रख सकते हैं, लेकिन यदि हिंदी का इस्तेमाल करना हो तो इसके लिए हाईकोर्ट के स्तर पर संशोधन की जरूरत है। भाषा कोई गलत नहीं है, लेकिन आम आदमी को समझ आने वाली भाषा का इस्तेमाल हो तो ज्यादा बेहतर रहता है।

अधिवक्‍ता राजेश का कहना है न्यायालयों से लेकर थाने की भाषा में बदलाव करने की प्रक्रिया लंबी है। विधि के विद्यार्थियों को हिंदी में पढ़ाना होगा। इसके बाद ही न्यायालयों में इस प्रक्रिया को लागू किया जा सकता है। इसमें सुधार करें तो पूरी तरह से करें, अन्यथा नुकसान ही होता है, इसलिए सुधार शुरू से करने की जरूरत है।

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