अब बेकार नहीं होगा संतरे का छिलका, बनेगा इंधन, मंडी के शोधकर्ताओं ने किया संतरे के छिलके पर प्रयोग

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने संतरे के छिलके से इंधन तैयार करने की विधि इजाद की है। संतरे के छिलके से प्राप्त हाइड्रोचार का बतौर (कैटालिस्ट) उपयोग कर बायोमास से उत्पन्न रसायनाें से बायोफ्यूल प्रीकर्सर बनाया है।

By Richa RanaEdited By: Publish:Wed, 23 Feb 2022 02:24 PM (IST) Updated:Wed, 23 Feb 2022 02:24 PM (IST)
अब बेकार नहीं होगा संतरे का छिलका, बनेगा इंधन, मंडी के शोधकर्ताओं ने किया संतरे के छिलके पर प्रयोग
मंडी के शोधकर्ताओं ने संतरे के छिलके से ईंधन तैयार करने की विधि इजाद की है।

मंडी,जागरण संवाददाता। संतरे का छिलका अब बेकार नहीं जाएगा। न ही इसे ठिकाने लगाने की चिंता सताएगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने संतरे के छिलके से ईंधन तैयार करने की विधि इजाद की है। शोधकर्ताओं ने संतरे के छिलके से प्राप्त हाइड्रोचार का बतौर उत्प्रेरक (कैटालिस्ट) उपयोग कर बायोमास से उत्पन्न रसायनाें से बायोफ्यूल प्रीकर्सर बनाया है। इस शोध से बायोमास से इंधन विकसित करने में मदद मिलेगी जो गिरते पेट्रोलियम भंडार के चलते सामाजिक राजनीतिक अस्थिरताओं को दूर करने के लिए समय की मांग है। शोध के प्रमुख स्कूल आफबेसिक साइंसेज, आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेंकट कृष्णन हैं। सहलेखक उनकी छात्रा सुश्री तृप्ति छाबड़ा और सुश्री प्राची द्विवेदी हैं।

बायोमास से उत्पन्न ऊर्जा वर्तमान में चौथा सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत

देश में प्राकृतिक पदार्थों के बायोमास से उत्पन्न ऊर्जा वर्तमान में कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस के बाद चौथा सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत है जो ऊर्जा की मांग पूरा करने में सक्षम है। जंगल और खेती के अवशेषाें से प्राप्त लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास (उदाहरण के तौर पर) को विभिन्न विधियाें से विभिन्न उपयोगी रसायनाें में परिवर्तित किया जा सकता है। इन विधियाें से बायोफ्यूल बनाने में उत्प्रेरक (कैटालिस्ट) की विशेष भूमिका है क्याेंकि ये प्रक्रियाएं न्यूनतम ऊर्जा लगा कर की जा सकती हैं और सही प्रकार के उत्प्रेरक और प्रतिक्रिया की परिस्थितियां चुन कर इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है कि बायोमास से प्राप्त उत्पाद किस प्रकार का होगा। शोध के बारे में डॉ. वेंकट कृष्णन ने बताया, अक्षय ऊर्जा पर कार्यरत समुदाय के लोग दिलचस्पी के क्षेत्राें में एक बायोमास को ईंधन सहित उपयोगी रसायनाें में बदलने के लिए अधिक स्वच्छ और अधिक ऊर्जा सक्षम प्रक्रियाआें को लेकर काफी उत्साहित हैं।

पानी में संतरे के छिलके को गर्म कर प्राप्त होगा हाइड्रोचार

बायोमास कन्वर्शन (ऊर्जा में बदलने) का सबसे सरल और सस्ता उत्प्रेरक हाइड्रोचार पर शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है। यह आमतौर पानी के साथ बायोमास कचरे (इस मामले में संतरे के छिलके) को गर्म कर प्राप्त होता है। इसमें हाइड्रोथर्मल कार्बाेनाइजेशन की प्रक्रिया होती है। इस कन्वर्शन में बतौर उत्प्रेरक हाइड्रोचार का उपयोग अधिक लाभदायक है क्याेंकि यह नवीकरणीय है और  इसकी रासायनिक और भौतिक संरचना बदल कर उत्प्रेरक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

सूखे संतरे के छिलके के पाउडर को साइट्रिक एसिड के साथ हाइड्रोथर्मल रिएक्टर में किया गर्म

शोधकर्ताओं ने बायोमास से प्राप्त रसायनाें को बायोफ्यूल प्रीकर्सर में बदलने के लिए बतौर उत्प्रेरित संतरे के छिलके से प्राप्त हाइड्रोचार का उपयोग किया है। इसमें सूखे संतरे के छिलके के पाउडर को साइट्रिक एसिड के साथ हाइड्रोथर्मल रिएक्टर (लैब प्रेशर कुकर) में कई घंटाें तक गर्म किया। इससे उत्पन्न हाइड्रोचार को अन्य रसायनाें के साथ ट्रीट किया गया ताकि इसमें एसिडिक सल्फोनिक, फास्फेट और नाइट्रेट फंक्शनल ग्रुप आ जाएं।

फ्यूल प्रीकर्सर उत्पन्न करने के लिए इन तीन प्रकार के उत्प्रेरकाें का उपयोग

सुश्री तृप्ति छाबड़ा बताती हैं, कि फ्यूल प्रीकर्सर उत्पन्न करने के लिए इन तीन प्रकार के उत्प्रेरकाें का उपयोग लिग्नोसेल्यूलोज से प्राप्त कम्पाउंड मिथाइलफ्यूरन और फ़्यूरफ़्यूरल के बीच हाइड्राक्सिलकेलाइज़ेशन एल्केलाइज़ेशन (एचएए) प्रतिक्रिओं के लिए किया। वैज्ञानिकाें ने सल्फोनिक कार्यात्मक हाइड्रोचार कैटालिस्ट को इस प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रभावी पाया जिससे अच्छी मात्रा में बायोफ्यूल प्रीकर्सर पैदा हो सकता है।

डा वेंकट कृष्णन ने कहा, बिना साल्वेंट और तापमान कम किए बिना बायोफ्यूल प्रीकर्सर सिंथेसाइज़ करने में सफल रहे। इससे प्रक्रिया की कुल लागत कम होगी और यह पर्यावरण अनुकूल और उद्योग के दृष्टिकोण से आकर्षक होगा। यह तीन प्रकार के एसिडिक फंक्शनलाइजेशन का आकलन करता पहला तुलनात्मक अध्ययन है।

कैटलिस्ट का विकास देश में जैव इंधन उद्योग के लिए शुभ संकेत

शोधकर्ताओं ने ग्रीन मीट्रिक केलकुलेशन और टेम्परेचर प्रोग्राम्ड डिजार्प्शन (टीपीडी) अध्ययन भी किया ताकि संतरे के छिलके से प्राप्त कार्यात्मक हाइड्रोचार में सल्फोनिक, नाइट्रेट और फास्फेट की उत्प्रेरक गतिविधि की गहरी सूझबूझ प्राप्त हो। बायोमास कन्वर्जन के लिए ऐसे कैटलिस्ट का विकास देश में जैव इंधन उद्योग के लिए शुभ संकेत हैं। हाल के वर्षों में भारत बायोमास से बिजली बनाने में अग्रणी देश बन गया है। 2015 में भारत ने बायोमास, छोटे जल विद्युत संयंत्र और कचरे से ऊर्जा संयंत्राें के माध्यम से 15 जीडब्ल्यू बिजली पैदा करने के लक्ष्य की घोषणा की। पांच वर्षों के अंदर देश ने 10 जीडब्ल्यू बायोमास बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर लिया है।

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