बेकाबू क्रोध ऐसे लाएं काबू में

अनियंत्रित क्रोध भी एक मनोरोग है, जिसका कारगर इलाज संभव है... खुशी व गम की तरह क्रोध भी हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का एक जरिया है। जब स्वयं पर हमारे विवेक का पूर्ण नियंत्रण होता है, तो हम अपनी खुशी, गम और यहां तक कि क्रोध भी नियंत्रित रूप से स्थितियों

By Babita kashyapEdited By: Publish:Tue, 12 May 2015 01:53 PM (IST) Updated:Tue, 12 May 2015 01:58 PM (IST)
बेकाबू क्रोध ऐसे लाएं काबू में

अनियंत्रित क्रोध भी एक मनोरोग है, जिसका कारगर इलाज संभव है...

खुशी व गम की तरह क्रोध भी हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का एक जरिया है। जब स्वयं पर

हमारे विवेक का पूर्ण नियंत्रण होता है, तो हम अपनी खुशी, गम और यहां तक कि क्रोध भी नियंत्रित रूप से स्थितियों के अनुरूप ही व्यक्त करते हैं। कहने का आशय यह कि एक विवेकपूर्ण व्यक्ति को पता होता है कि उसे कहां कितनी खुशी

जाहिर करनी है और किसके सामने रोना है या किस स्थिति में कितना क्रोधित होना है। जब हमारी भावनाओं पर स्वयं के विवेक का नियंत्रण नहीं होता है, तब व्यक्ति के स्वभाव में एक विकृति पैदा हो जाती है, जिसे मनोचिकित्सकीय भाषा में

भावनात्मक अस्थिरता कहते हैं। ऐसे व्यक्ति बाहरी तौर से अपने मन के अनुसार माहौल में तो बड़े शालीन, सभ्य व शांत प्रतीत होते हैं, लेकिन किसी भी विपरीत परिस्थिति (जो उनके मन के

अनुसार नही है) में अचानक गंभीर रूप से क्रोधित होकर अपना आपा खो बैठते हैं और तुरंत मारपीट व तोडफ़ोड़ पर भी आमादा हो जाते हैं।

लक्षण

-कोई भी बात मन के अनुसार न होने पर रोगी को उलझन होना और चाहकर भी उस बात को भूल न पाना।

- मन के विपरीत रोगी की किसी भी बात को मना करने पर या समझाने पर रोगी गंभीर रूप से क्रोधित हो जाते हैं और बहस करने लगते हैं।

-भावनाओं पर नियंत्रण के अभाव में रोगी शांत नहीं हो पाते हैं और छोटा-बड़ा, अपना पराया व संबंधों की परवाह किए बगैर रोगी गंभीर रूप से

दूसरे व्यक्ति पर क्रोध करने लगते हैं।

- यदि दूसरा व्यक्ति अगर मनोरोगी को जवाब देता है, तो रोगी तुरंत ही हाथापाई पर उतर आता है। रोगी तोडऩा-फोडऩा शुरू कर देता है।

-ऐसे में रोगी अपने हाथ व सिर को दीवार से टकरा सकते हैं और अक्सर ब्लेड या चाकू से अपनी कलाई भी चीर लेते हैं। गुस्सा शांत होने पर रोगी मन ही मन अपने किए पर पछताते हैं।

अन्य लक्षण

-रोगी को अक्सर लगता है कि वह

जितना दूसरों के लिए करता है, उतना दूसरे

उसके लिए नहीं करते।

-लगातार उलझन व तैश के चलते रोगी

शराब व नींद की गोलियों व अन्य प्रकार

का नशा करने लगते हैं।

-ऐसे विस्फोटक स्वभाव के चलते बार-

बार उलझन व हाथापाई की वजह से रोगी

अपने मां-बाप व परिजनों के साथ नहीं

रह पाते। विवाह के बाद भी अपने परिवार

या पत्नी के साथ संबंध बिगाड़ लेते हैं।

इलाज

-चूंकि अनियंत्रित क्रोध रोगी का सामाजिक व व्यावसायिक जीवन पूर्णत: नष्ट कर सकता है। ऐसे में उसका इलाज करना अनिवार्य हो जाता है।

-इलाज में मनोचिकित्सा व दवाओं का प्रमुख स्थान है।

-मनोचिकित्सा के दौरान रोगी को भावनात्मक अस्थिरता, उलझी बातों से न उबर पाना और मन के विपरीत हर बात को गलत मानना जैसी बुनियादी खामियों को पहचानने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके बाद रोगी ऐसे दोषपूर्ण व्यवहार से बाहर निकलने की सही विधि का

अभ्यास करते हैं।

-इस रोग में परिजनों को भी सलाह दी जाती है। परिजनों को रोगी से क्या बात कहनी है और क्या नहीं कहना है, ये सारी बातें मनोचिकित्सक समझाते हैं।

-रोगी को नशे से मुक्ति का भी इलाज किया जाता है।

- मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह पर ली गई दवाओं की सहायता से ऐसे गंभीर व अनियंत्रित क्रोध पर कारगर रूप से काबू किया जा सकता है।

डॉ. उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ

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