हरियाणा के युवा का कमाल: पिता गांव में चलाते हैं आटा चक्की, बेटा बना न्यूक्लियर साइंटिस्ट

हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव के युवक ने कमाल की उपलब्धि हासिल की है। गांव में आटा चक्‍की चलाने वाले का बेटा न्‍यूक्लियर साइंटिस्‍ट बना है। गांव मुकलान को अशोक को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में परमाणु वैज्ञानिक चुना गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Wed, 06 Jan 2021 10:48 PM (IST) Updated:Thu, 07 Jan 2021 12:47 PM (IST)
हरियाणा के युवा का कमाल: पिता गांव में चलाते हैं आटा चक्की, बेटा बना न्यूक्लियर साइंटिस्ट
न्यूक्लीयर साइंटिस्ट बनने के बाद पिता और मां के साथ अशोक। (जागरण)

हिसार, जेएनएन।  हरियाणा के हिसार जिले के गांव मुकलान में आटा चक्की चलाने वाले के बेटे ने कमाल की उपलब्धि हासिल की है। परिवार की मुश्किल स्थितियों के बावजूद यह युवा न्यूक्लियर साइंटिस्ट बना  है। गांव के अशोक कुमार का चयन भामा अटोमिक रिसर्च सेंटर के लिए हुआ है। अशोक ने मार्च में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रूटमेंट की परीक्षा दी थी। अशोक की कामयाबी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कॉरपरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी स्‍कीम (CSR Scheme) का योगदान है। इस स्‍कीम के कारण वह अपनी इंजी‍निय‍रिंग की पढ़ाई पूरी कर सके। उनकी पढ़ाई में उनके स्‍कूल के दिनों के गणित के एक शिक्षक का योगदान वह हमेशा याद रखेंगे।

अशोक कुमार का भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में चयन हुआ, 16 जनवरी से शुरू होगी ट्रेनिंग

परीक्षा के बाद दिसंबर में इंटरव्यू के बाद ओवरऑल रिजल्ट जारी किया गया। इसमें अशोक कुमार की ऑल इंडिया सेकेंड रैंक आई है। 5 जनवरी को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की ओर से नतीजे घोषित किए गए हैं। अशोक ने बताया कि पूरे देश से करीब 30 छात्रों का चयन हुआ है और इसमें उनका भी नाम है। अशोक के पिता मांगेराम के पास एक एकड़ जमीन है और वह आटा चक्की चलाकर परिवार का पेट पालते हैं।

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अशोक की उपलब्धि पर माता-पिता को गर्व है। पिता मांगेराम ने बताया कि अशोक शुरू से ही पढ़ाई में होनहार था। पैसे के अभाव में गांव के ही उसे सरकारी स्कूल में पढ़ाया और अपनी प्रतिभा की बदौलत अशोक आगे बढ़ा है। अशोक ने अपनी उपलब्धि का श्रेय माता कलावती और पिता मांगेराम को दिया है। अशोक तीन भाई- बहनों में सबसे बड़ा है। उसका एक छोटा भाई विनोद और छोटी बहन ऋतु हैं। अशोक का सपना डॉ. अब्दुल कलाम जैसा वैज्ञानिक बनने का है। अशोक ने बताया कि बचपन से ही वह अब्दुल कलाम को टीवी व अखबार में देखते थाे तो उनके जैसा बनने की सोचता थे।

माता-पिता के साथ अशोक। (जागरण)

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मैकेनिकल में किया बीटेक

अशोक ने गांव के सरकारी स्कूल में दसवीं तक की पढ़ाई करने के बाद 11वीं व 12वीं नॉनमेडिकल से प्राइवेट स्कूल से की। इसके बाद बीटेक मैकेनिकल से की। डा. अब्दुल कलाम जैसा बनने की सपना संजोय अशोक ने मार्च 2020 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रूटमेंट की परीक्षा दी। परीक्षा के बाद इंटरव्यू हुआ और इसके बाद रिजल्ट जारी हुआ है। अशोक ने कहा कि अब 16 जनवरी को मुंबई में उनकी ट्रेनिंग होगी। इसके लिए वह वीरवार को गांव से रवाना हो जाएंगे।

अपनी आटा चक्‍की पर काम करते अशोक के पिता मांगेराम। (जागरण)

 परीक्षा के लिए रोजाना 12 घंटे पढ़ाई

अशोक ने बताया कि इस परीक्षा को पास करने के लिए उन्‍होंने 12 घंटे पढ़ाई की। टीवी से दूर रहा और नियमित रूप से अखबार व किताबें पढ़ीं। अशोक ने बताया कि जब भी वह परेशान होते थे तो डा. कलाम की जीवनी पढ़ते था जिससे नई प्रेरणा मिलती थी।

मोदी सरकार की स्कीम बनी वरादान

अशाेक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 में शुरू की गई सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) स्कीम वरदान बन गई। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्कीम ने उसे लाभान्वित किया।

इंजीनियरिंग की फीस हिसार के शिक्षक ने भरी

2015 में अशोक ने जेईई मेन्स का पेपर क्लीयर कर फरीदाबाद के इंजीनियरिंग कॉलेज वायएमसी में दाखिला लिया। परिवार के पास फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे तो हिसार के गणित के अध्यापक रवि यादव ने प्रतिभा को देखते हुए 50 हजार रुपये फीस भरी। सीएसआर स्कीम के तरत जर्मनी की सीमनस कंपनी ने देशभर से 50 छात्रों को छात्रवृति के लिए चुना, जिसमें अशोक कुमार का भी नाम था। चयन के लिए 10वीं और 12वीं के नंबरों और जेईई मेन्स के स्कोर को आधार बनाया गया। इस स्कीम का इतना फायदा हुआ कि कॉलेज की पूरी पढ़ाई, किताब और होस्टल का खर्च तक कंपनी ने भरा।

एकांतवास में पढ़ाई को छोड़ दिया था घर

अशोक कुमार ने बताया कि 2019 में इंजीनियर की पढ़ाई पूरी होने के बाद एग्जाम की तैयारी के लिए दो साल तक वह घर से दूर रहा। गांव किरमारा में मौसी के घर जाकर रहने लगा, क्योंकि उनके परिवार में कम सदस्य हैं। वहां पढ़ाई के लिए एकांत जगह पर्याप्त थी। रोजाना 12 घंटे सेल्फ स्टडी की और इंटरनेट मीडिया से दूर रहकर सिर्फ अखबार पढ़ा।

मां ने पांचवीं तक पढ़ाया

आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अशोक ने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। स्कूल से घर आकर मां पढ़ाती थी। अशोक की मां कलावती आठवीं पास गृहणी है।

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