ग्लैंडर्स का खतरा: सैनियान मुहल्ले में चार और घोडिय़ों के लिए खून के सैंपल

सैंपलों को एलाइजा और सीएफटी से होकर गुजारा जाएगा। टेस्ट में जानवर के शरीर से खून लेकर उसके ब्लड सेल्स में एंटीबॉडी या ग्लैंडर्स के एजेंटों को देखते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 01:27 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 01:27 PM (IST)
ग्लैंडर्स का खतरा: सैनियान मुहल्ले में चार और घोडिय़ों के लिए खून के सैंपल
ग्लैंडर्स का खतरा: सैनियान मुहल्ले में चार और घोडिय़ों के लिए खून के सैंपल

जेएनएन, हिसार : शहर में ग्लैंडर्स के मामले मिलने से बाद एक बार फिर से इस बीमारी का लोगों में पहुंचने का खतरा बढ़ गया है। एक घोड़ी के मरने और दूसरी के एलाइजा टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद से दूसरी घोडिय़ों में भी यह बीमारी स्थानांतरित होने का खतरा मंडरा रहा है। इसको लेकर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीई) के निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी के नेतृत्व में प्रधान विज्ञानी डा. हरिशंकर सिंघा की टीम ने सैनियान मुहल्ला में चार और घोडिय़ों के खून के सैंपल लिए हैं। इन सैंपलों को एलाइजा और सीएफटी (कंप्लीमेंट फिक्सेशन टेस्ट) से होकर गुजारा जाएगा। इस टेस्ट में जानवर के शरीर से खून लेकर उसके ब्लड सेल्स में एंटीबॉडी या ग्लैंडर्स के एजेंटों को देखते हैं। सैनियान मुहल्ला में एक घोड़ी में ग्लैंडर्स का मामला सामने आया है। इन घोडिय़ों का प्रयोग शादियों में किया जाता रहा है।

पहले से ही हिसार ग्लैंडर्स नोटिफाई था जिला, अब बढ़ेगा समय

पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डीएस सिंधु ने बताया कि हिसार में पहले भी ग्लैंडर्स के मामले मिल चुके हैं। ऐसे में तीन महीने पहले जिला ग्लैंडर्स ग्रसित नोटीफाई कर दिया था। किसी भी स्थान पर अगर ग्लैंडर्स पाया जाता है तो उस जिले में तीन महीने तक घोड़े व घोडिय़ों की आवाजाही बाहर के जिलों में रोक दी जाती है। पशु मेलों का भी आयोजन नहीं होता और कई विभाग मिलकर ग्लैंडर्स मिलने वाले क्षेत्र के पांच किलोमीटर के दायरे में जांच करते हैं। हर महीने खून की सैंपलिंग होती है। पिछली बार घोषित होने के बाद हिसार ने तीन महीने से पूरे ही किए थे कि अब फिर ग्लैंडर्स मिला है। ऐसे में तीन महीने से फिर सब बंद कर दिया जाएगा।

यह है ग्लैंडर्स बीमारी

ग्लैंडर्स घोड़ों की प्रजातियों में एक जानलेवा संक्रामक रोग है। इसमें घोड़े की नाक से खून बहना, सांस लेने में तकलीफ, शरीर का सूख जाना, पूरे शरीर पर फोड़े या गांठें आदि लक्षण हैं। यह बीमारी दूसरे पालतू पशु में भी पहुंच सकती है। दरअसल यह बीमारी बरखोडेरिया मैलियाई नामक जीवाणु से फैलती है। यह बीमारी होने पर घोड़े को वैज्ञानिक तरीके से मारना ही पड़ता है।

मनुष्यों पर ग्लैंडर्स का प्रभाव

ग्लैंडर्स घोड़ों से मनुष्यों में यह बीमारी आसानी से पहुंच जाती है। जो लोग घोड़ों की देखभाल करते हैं या फिर उपचार करते हैं, उनको खाल, नाक, मुंह और सांस के द्वारा संक्रमण हो जाता है। मनुष्यों में इस बीमारी से मांस पेशियों में दर्द, छाती में दर्द, मांसपेशियों की अकडऩ, सिरदर्द और नाक से पानी निकलने लगता है।

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