Exclusive इंटरव्यू: बॉलीवुड Moms को लेकर भी होता है रंगभेद- सीमा पाहवा

सीमा का आरोप है कि बॉलीवुड में मां और अन्य चरित्र किरदारों के लिए भी कई प्रोडक्शन हाउस रंगभेद करते हैं। उन्हें सिर्फ गोरी-चिट्टी माँ चाहिए ।

By Manoj KhadilkarEdited By: Publish:Thu, 31 Aug 2017 01:51 PM (IST) Updated:Thu, 31 Aug 2017 07:56 PM (IST)
Exclusive इंटरव्यू: बॉलीवुड Moms को लेकर भी होता है रंगभेद- सीमा पाहवा
Exclusive इंटरव्यू: बॉलीवुड Moms को लेकर भी होता है रंगभेद- सीमा पाहवा

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। अश्विनी अय्यर तिवारी की फिल्म बरेली की बर्फी में जितनी तारीफ़ दर्शकों ने राजकुमार राव, आयुष्मान और कृति की है, उतनी ही कृति सनोन की मां बनीं वरिष्ठ अदाकारा सीमा पाहवा की भी। सीमा इससे ख़ुश हैं लेकिन बॉलीवुड में भेदभाव को लेकर एक बड़ी बात कह दी है।

बरेली की बर्फी के बाद इसी हफ़्ते रिलीज़ हो रही फिल्म शुभ मंगल सावधान में भी सीमा पाहवा एक और मज़ेदार किरदार में नज़र आएंगी। इस दौरान जागरण डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने बताया कि इस फिल्म में वो भूमि पेडनेकर की मां और आयुष्मान की सास के किरदार में हैं। दम लगाके हईसा और बरेली की बर्फी के बाद इस बार भी सीमा आयुष्मान की सास बन गयी हैं। दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक 'हमलोग' में बड़की की भूमिका निभा कर घर घर चर्चित हुईं सीमा ने बड़की का लोकप्रिय किरदार निभाने के बावजूद पूरे 12 साल का लंबा इंतजार किया है।

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सीमा बताती हैं "जब हमलोग शो का प्रसारण होता था और वो बाहर निकलती थीं, तो उस दौर में उन्हें बॉडीगार्ड साथ रखने पड़ते थे क्योंकि लोग उनकी जीप के पीछे पागलों की तरह दौड़ते थे। यहां तक कि उनके घर के एड्रेस पर उनके फैन्स ने चिट्ठियां भेजीं। सीरियल में बड़की के किरदार की जब शादी की बातें हो रही थीं तो रियल लाइफ में उनके घर पर फैन्स ने टीवी, फ्रीज, सिलाई मशीन जैसी चीजें भेजी थीं। लोगों को लगता था कि सचमुच में सीमा बड़की हैं और उनकी शादी होने वाली हैं। लेकिन इतनी लोकप्रियता, ग्लैमर, चकाचौंध के बाद एक दौर ऐसा आया कि उनके पास कोई भी काम नहीं था। सीमा बताती हैं "वह 12 साल मैंने कैसे गुज़ारे हैं. वह मैं ही जानती हूं। जब भी घर पर फोन आता तो उन्हें लगता कि उनके लिए आया है लेकिन वह उनके पति मनोज पाहवा ( वरिष्ठ कलाकार) के लिए होता था। समझ नहीं पा रही थीं कि आखिर उन्हें काम मिल क्यों नहीं रहा है।"

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सीमा बॉलीवुड के इस सोच से भी परदा उठाती हुई बताती हैं कि लोगों को जान कर हैरानी होगी लेकिन पारिवारिक फिल्में बनाने के लिए मशहूर एक प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउस को हीरोइन के माता-पिता के किरदार के लिए भी गोरी मां की मांग करता है। सीमा कहती हैं, काले लोगों को या जिनका रंग सांवला है, इस प्रोडक्शन हाउस में तो मां का किरदार भी नहीं मिलता। उनकी सारी फिल्में उठा कर देख लीजिए, उसमें मां भी गोरी चिट्टी ही नज़र आयेगी। यही सच है कि वैसी फिल्मों में भी मौके मिलने बंद होते गये। सीमा का आरोप है कि बॉलीवुड में मां और अन्य चरित्र किरदारों के लिए भी कई प्रोडक्शन हाउस रंगभेद करते हैं। फिर चाहे कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें हो जायें कि हम प्रोगेसिव थॉट के हैं, लेकिन प्रैक्टिकल और काम देने की बात आती है तो इंडस्ट्री उन चेहरों को अधिक भाव देती है, जो गोरे रंग के हैं।

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सीमा कहती हैं " मैं ठहरी सांवली जाहिर है मुझे यह सब झेलना ही था, लेकिन जब अचानक बॉलीवुड की कहानियां छोटे शहरों की तरफ रुख करने लगी, तब हमारी खोज शुरू हुई। " वह इस बात का बड़ा श्रेय आनंद एल राय जैसे निर्देशकों को देती हैं, जिन्होंने तनु वेड्स मनु जैसी फिल्मों को छोटे शहर की कहानियों से जोड़ा। फिर दम लगा के हईसा, आंखों देखी, बरेली की बर्फी और अब शुभ मंगल सावधान का संयोग बना। बता दें कि सीमा पाहवा ने ही मुंबई में पली बढ़ी भूमि को दम लगाके हईसा के दौरान उत्तर भारत की बोली और रहन-सहन के लिए वर्कशॉप दिया था। सीमा कहती हैं कि इन 12 सालों में मैंने बार-बार खुद को टटोला है कि आखिर वजह क्या रही। कमी कहां है? लेकिन हां मुझे थियेटर ने ज़िंदा रखा। लगातार नाटक लिखती रही। घर में कई सारी मूर्तियां भी बनाती थी। ऐसी ही क्रियेटिवीटी में खुद को उलझाये रखा। वरना डिप्रेशन तो तय था। सीमा शुभ मंगल सावधान के बारे में सीमा कहती हैं "निर्देशक प्रसन्ना ने मुझे बताया कि उन्होंने मेरा वाला किरदार सबसे पहले लिख कर तय कर लिया था कि यह किरदार सीमा जी को ही दूंगा।"

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फिल्म के निर्देशक प्रसन्ना बताते हैं कि हां,यह सच है कि मैं हमलोग का फैन रहा हूं। बड़की मेरी पसंदीदा किरदार रही । फिर दम लगाके हईशा में उनका काम देखा था और मेरी मां से भी उनका चेहरा थोड़ा मेल खाता है तो इस वजह से भी वह कनेक्शन उनके साथ बन पाया।

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