यहां से गुजरता है संसद पहुंचने का रास्‍ता, बावजूद इसके नहीं सुधरती हालत जानें क्‍यों

संसद में चुनाव दर चुनाव किसान प्रतिनिधियों की आमद होती रही है। इसके बावजूद न खेती की समस्या खत्म हुई और न ही किसानों के हाल सुधरे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 01 Apr 2019 09:15 AM (IST) Updated:Mon, 01 Apr 2019 09:16 AM (IST)
यहां से गुजरता है संसद पहुंचने का रास्‍ता, बावजूद इसके नहीं सुधरती हालत जानें क्‍यों
यहां से गुजरता है संसद पहुंचने का रास्‍ता, बावजूद इसके नहीं सुधरती हालत जानें क्‍यों

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। संसद तक पहुंचने का रास्ता खेत खलिहानों व चौपालों से होकर ही गुजरता है। चुनावी साल में एकाएक गांव और किसान राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में शुमार हो जाते हैं। यह प्राथमिकता केवल वोट के लिए नहीं होती, बल्कि नेताओं के चुनाव के लिए भी होती है। संसद में पहुंचने वालों में सर्वाधिक संख्या ‘किसानों’ की ही रही है।

संसद में चुनाव दर चुनाव किसान प्रतिनिधियों की आमद होती रही है। इसके बावजूद न खेती की समस्या खत्म हुई और न ही किसानों के हाल सुधरे। इस लोकसभा में भी राजनीतिक दलों के बीच किसानों के लिए बहुत कुछ कर गुजरने के वादे और दावे किए जाने लगे हैं। सभी दलों के बीच किसानों को लुभाने की होड़ लगी है। कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष जहां कर्ज माफी का पुराना झुनझुना फिर थमाने में जुटा हुआ है तो वहीं केंद्र की सत्तारुढ़ मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की घोषणा के साथ लागू कर अपने सिर सेहरा बांधने की कोशिश की है।

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किसानों को सबसे आसान मतदाता मानकर सभी दलों की ओर से राजनीतिक पासा फेंका जा रहा है। चुनाव की नजर में कृषि क्षेत्र दुधारू गाय है। सबसे मजेदार तो यह है कि चुनकर आने वाले प्रतिनिधि भी खुद को किसान ही बताते हैं। लेकिन रातोरात वह सांसद हो जाते हैं और किसान नजरअंदाज हो जाते हैं। संसद में अक्सर ऐसा नजारा देखने को मिलता है, जब किसानों और गांव खलिहानों पर चर्चा के वक्त किसान से सांसद बने नेता नदारद होते हैं। यह हाल पिछले दो दशक में हुआ है। वरना शुरुआती दिनों में संसद में वकीलों का बोलबाला हुआ करता था। वकीलों का वर्ग अब घटकर नीचे आता जा रहा है। संसद में दूसरा बड़ा वर्ग वह होता है जिसकी पृष्ठभूमि राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता की होती है। जाहिर तौर पर राजनीति में ऐसे लोग सफल होते हैं और तीसरा बड़ा वर्ग व्यवसाय से जुड़े लोगों का है।

मालिकाना हक सबसे बड़ी समस्या भूमि पर अधिकार

कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है। किसान कई बार असमान भूमि वितरण के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है, जिस पर छोटे किसान काम करते हैं। ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं।

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फसल पर सही मूल्य

एक बड़ी समस्या किसानों की यह भी है कि उन्हें फसल का सही मूल्य नहीं मिलता। वहीं किसानों को अपना माल बेचने के लिए तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है। मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा। ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

अच्छे बीज

अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है। लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं। इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

सिंचाई व्यवस्था

भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है। उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है, लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है, जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है।

मिट्टी का क्षरण

तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं। दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है। इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसलों पर पड़ता है।

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मशीनीकरण का अभाव

कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है, लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं। वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं। इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर नजर आता है।

परिवहन भी एक बाधा

भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है। आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं। वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं। कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए।

भंडारण सुविधाओं का अभाव

भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है। ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं। भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं।

पूंजी की कमी

कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है। तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है। छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है, लेकिन हालात बहुत नहीं बदले।

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