वोटों की फसल ने बिगाड़ी अन्नदाता की सेहत, किसानों की समस्याएं बरकरार

हरिद्वार संसदीय सीट पर किसानों का सवाल अहम मुद्दा रहेगा। गन्ना किसान अभी तक भुगतान नहीं होने से परेशान हैं तो सरकार के राहत भरे कदम उन्हें नाकाफी लग रहे हैं।

By BhanuEdited By: Publish:Tue, 19 Mar 2019 02:02 PM (IST) Updated:Tue, 19 Mar 2019 02:02 PM (IST)
वोटों की फसल ने बिगाड़ी अन्नदाता की सेहत, किसानों की समस्याएं बरकरार
वोटों की फसल ने बिगाड़ी अन्नदाता की सेहत, किसानों की समस्याएं बरकरार

रुड़की, रमन त्यागी। हरिद्वार संसदीय सीट पर किसानों का सवाल अहम मुद्दा रहेगा। गन्ना किसान अभी तक भुगतान नहीं होने से परेशान हैं तो सरकार के राहत भरे कदम उन्हें नाकाफी लग रहे हैं। ऐसे में किसानों की चाल राजनीतिक दलों के गणित को काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं। 

राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो पर किसानों की समस्याओं का स्थायी हल कोई भी दल नहीं खोज पाया है। मांगों को लेकर आम किसान निरंतर अंतराल पर आंदोलन करता रहा है, लेकिन नेतृत्व कर रहे चंद नेताओं की राजनीतिक निष्ठा कहीं न कहीं आंदोलनों को दिशाहीन करती रही है। किसान किसी एक दल से बंधे नहीं है पर उनकी ताकत का अहसास हर दल को है। 

हरिद्वार संसदीय सीट में खेती-किसानी से जुड़े लोग बड़ा प्रभावी फैक्टर रहे हैं। धर्म और उद्योग के साथ ही इस सीट में किसानों के मुद्दे चुनाव में प्रभावित करने की स्थिति में हैं। किसानों के बीच आपसी खींचतान से भी इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन जब बात सामूहिक हित की हो तो सभी एकजुट दिखाई देते हैं। 

हरिद्वार जिले में 94 हजार हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है। एक लाख 31 हजार से अधिक किसान हैं। इसमें से एक लाख किसान तो सीधे गन्ना उत्पादन से जुड़े हैं। जिले में 54 हजार हेक्टेयर भूमि पर करीब चार करोड़ कुंतल गन्ना पैदा किया जाता है और इसकी आपूर्ति इकबालपुर, लक्सर, लिब्बरहेड़ी, डोईवाला चीनी मिलों को होती है। 

गन्ना पैदा कर चीनी मिलों तक भेजने की बात तक तो सब ठीक है, लेकिन असली समस्या किसानों को समय से गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं होने से पैदा होती है। चीनी मिलों के चक्कर काटकर कई बार किसान निराश व हताश हो जाता है। सालों तक किसान का भुगतान चीनी मिलों में रुका रहता है। वर्तमान में स्थिति यह है कि चीनी मिलों पर किसानों का पिछले और मौजूदा पेराई सत्र का साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये का बकाया है। 

गन्ना मूल्य भुगतान को लेकर किसान संगठन लगातार आवाज उठा रहे हैं। जिले में करीब एक दर्जन किसान संगठन हैं। इसमें भाकियू टिकैत गुट, भाकियू अबावत, किसान क्लब, भारतीय किसान संगम, उत्तराखंड किसान मोर्चा, किसान एसोसिएशन आदि प्रमुख रूप से शामिल है। 

जाहिर है जितने अधिक संगठन, उतनी ज्यादा उलझन। किसी विषय पर एक संगठन राजी है तो दूसरा विरोध करता नजर आता है। ऐसे में आम किसान यह तय नहीं कर पाता है कि आखिर उसके लिए ठीक क्या है। सरकार की माने या किसान संगठनों के साथ मुठ्ठी ताने। 

दरअसल किसानों की समस्याओं का राजनीतिकरण होने से व्यवहारिक पक्ष हाशिये पर चला गया और बयानों के चक्रव्यूह में आम किसान फंसकर रह गया है। यदि किसानों की सियासी ताकत देखें तो यह किसी का गणित बनाने व बिगाडऩे में सक्षम हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के लिए किसानों की समस्याएं लोकसभा चुनाव में अहम होंगी।   

किसानों को सक्षम बनाएं, कर्ज माफी तात्कालिक विकल्प 

राजनीतिक दलों को चुनाव के समय किसानों की खूब याद आती है और तात्कालिक चुनावी लाभ के लिए किसानों के कर्ज माफी का वादा किया जाता है। किसानों का मानना है कि कर्ज माफी फौरी विकल्प है और यह किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। सरकार को किसानों को आर्थिक तौर पर सक्षम बनाने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं लागू करनी चाहिए। केंद्र सरकार की हाल ही में शुरू की गाई योजना का भविष्य में विस्तार होना चाहिए। 

नौ विधानसभा क्षेत्र में किसानों का काफी प्रभाव 

हरिद्वार संसदीय क्षेत्र की नौ विधानभाओं में किसानों का खासा प्रभाव है, जिसमें भगवानपुर, झबरेड़ा, कलियर, मंगलौर, खानपुर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण, ज्वालापुर व डोईवाला विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। 

किसानों के प्रमुख मुद्दे 

- किसानों को सिंचाई के लिए नहर का पानी मुफ्त, ट््यूबवेल पर बिजली मुफ्त मिले। 

- कृषि उपकरणों, खाद, कीटनाशक  पर सीधे पचास फीसद अनुदान मिले। 

- कृषि ऋण पर किसी तरह का ब्याज नहीं लिया जाए। 

- गन्ने की ट्राली मिल में तौले जाने के साथ ही उसका भुगतान किसान के खाते में पहुंचे। 

- मंडी में किसानों की उपज का सही दाम दिया जाए। 

- बुजुर्ग किसानों को सरकार पांच हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन दें। 

-किसानों को उन्नत खेती के लिए निशुल्क गांव में ही प्रशिक्षण मिले। 

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