Lok Sabha Elections 2019: बंगाल में 'एम' फैक्टर के लिए फिरदौस फंडा'

Lok Sabha Elections 2019. बंगाल में इस बार भाजपा से मिल रही कड़ी टक्कर से निपटने के लिए तृणमूल कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को साधने का पूरा प्रयास कर रही है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Thu, 18 Apr 2019 07:35 AM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2019 07:35 AM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: बंगाल में 'एम' फैक्टर के लिए फिरदौस फंडा'
Lok Sabha Elections 2019: बंगाल में 'एम' फैक्टर के लिए फिरदौस फंडा'

कोलकाता, जागरण संवाददाता। पश्चिम बंगाल में इस बार भाजपा से मिल रही कड़ी टक्कर से निपटने के लिए तृणमूल कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को साधने का पूरा प्रयास कर रही है। उसने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बांग्लादेशी अभिनेता फिरदौस अहमद तक से प्रचार करा दिया। केंद्र सरकार द्वारा इस पर कड़ा रुख अपनाने से फिरदौस मंगलवार रात अपने देश वापस लौट गए। भारतीय कानून का उल्लंघन करने को लेकर केंद्र सरकार ने फिरदौस का वीजा रद कर उन्हें काली सूची में भी डाल दिया है।

फिरदौस तो लौट गए लेकिन वह कई सवाल बंगाल की सियासत में छोड़ गए। तृणमूल को आखिर क्या सूझी कि बांग्लादेशी अभिनेता को चुनाव प्रचार में उतार दिया? यह सबसे बड़ा सवाल है। असल में बंगाल में इस बार भी लोकसभा चुनाव में मुस्लिम (एम) फैक्टर निर्णायक है। इसी 'एम' फैक्टर के लिए तृणमूल ने फिरदौस को उस क्षेत्र में उतारा जो बांग्लादेश की सीमा से सटा है। रायगंज में दूसरे चरण में गुरुवार को मतदान होना है। यहां करीब 16 लाख मतदाता हैं जिनमें नौ लाख मुस्लिम हैं। 2014 में लाख कोशिशों के बावजूद तृणमूल को इस सीट पर जीत नहीं मिली।

इस सीट पर 1962 से 1971 तक कांग्रेस, 1977 में भारतीय लोकदल को जीत मिली थी। इसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस का कब्जा रहा है लेकिन 1991 से लेकर 1998 तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में माकपा को जीत मिली थी। लेकिन, इसके बाद 1999 से 2009 के चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली और 2014 में माकपा के मोहम्मद सलीम कांग्रेस को महज 1634 मतों से हरा कर विजयी हुई थे। माकपा व कांग्रेस में इस बार गठबंधन नहीं होने की मुख्य वजहों में एक यह सीट भी है। माकपा के मोहम्मद सलीम फिर से मैदान में हैं।

इस खींचतान में तृणमूल ने कांग्रेस छोड़कर आए विधायक कन्हैया लाल अग्रवाल को टिकट दे दिया और वहीं भाजपा ने देवश्री चौधरी को मैदान में उतारा है। इस क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक काफी सक्रिय है। ऐसे में मुस्लिमों को रिझाने के लिए तृणमूल ने फिरदौस का फंडा खोज निकाला। लेकिन, यह कितना कारगर हुआ यह तो 23 मई को पता चलेगा। असल में रायगंज सीट की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि पूर्व में बांग्लादेश की सीमा और पश्चिम में नेपाल की सीमा लगती है।

दूसरी ओर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) व घुसपैठिये के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान हमलावर हो रहे हैं। तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एनआरसी के खिलाफ बोल रही हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने देंगे। यह सर्वविदित है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या सीमावर्ती जिलों में व्यापक है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से लेकर बंगाल के भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय तक कहते रहे हैं कि घुसपैठियों को वोटर आइकार्ड व आधार कार्ड देकर ममता सरकार वोट बैंक बना रही है। इसीलिए, बांग्लादेशी अभिनेता को मैदान में उतारकर प्रचार कराया जा रहा है ताकि घुसपैठियों का वोट मिल सके। यदि इस पर विरोध और कार्रवाई नहीं हुई होती तो शायद बंगाल में फिरदौस और भी सभा व रोड शो करते। ममता भी इन इलाकों के चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए आरएसएस से हाथ मिलाने का आरोप लगा रही हैं।

बंगाल में मुस्लिम बहुल सीटें

मुर्शिदाबाद जिले के बहरमपुर लोकसभा सीट पर करीब 10 लाख, मुर्शिदाबाद सीट में करीब 8 लाख, जंगीपुर में करीब 11 लाख, रायगंज में करीब नौ लाख, मालदा उत्तर में करीब नौ लाख और मालदा दक्षिण में करीब आठ लाख मुस्लिम मतदाता हैं। ये सभी जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं।

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