Loksabha Election 2019 : सबसे बड़े योद्धा बनके उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

पीएम नरेंद्र मोदी की उम्र 68 वर्ष है चुनावी प्रत्यंचा उठाने में किसी से पीछे नहीं। पीएम मोदी इस बार के चुनाव में भी बड़े लड़ैया की तरह लड़ते नजर आये। प्रचार अभियान को नई धार दी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Sat, 18 May 2019 09:02 AM (IST) Updated:Sat, 18 May 2019 09:02 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : सबसे बड़े योद्धा बनके उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
Loksabha Election 2019 : सबसे बड़े योद्धा बनके उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

लखनऊ [आनन्द राय]। लोकसभा चुनाव 2019 के इतिहास में यह भी लिखा जाएगा कि राजनीतिक दलों के किन योद्धाओं ने कितनी रैलियां की और उनका कितना असर रहा। जहां तक इस बार सक्रियता की बात है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समर के सबसे बड़े योद्धा के रूप में उभरे हैैं। वह शुरू में ही अपने चुनावी रथ पर सवार हुए तो रफ्तार लगातार बढ़ती ही गई। समापन हुआ है, प्रदेश में मऊ, मीरजापुर और चंदौली की तीन चुनावी रैलियों के साथ।

पीएम नरेंद्र मोदी की उम्र 68 वर्ष है, लेकिन चुनावी प्रत्यंचा उठाने में वह किसी से पीछे नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार के चुनाव में भी एक बड़े लड़ैया की तरह लड़ते नजर आये और प्रचार अभियान को नई धार दी। हालांकि प्रदेश में इस बार विपक्ष की किलेबंदी भी मजबूत थी। गठबंधन के जातीय समीकरण की चुनौती तो थी ही, कांग्रेस भी बेहद आक्रामक थी। मोदी ने विपरीत हवाओं के वेग से जूझते हुए भाजपा को बड़ी ताकत दी।

यह मोदी का ही करिश्मा था कि वर्ष 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भगवा बयार बही और पूर्वांचल तक उसका असर बना रहा। प्रदेश की 80 सीटों में सहयोगियों समेत भाजपा ने 73 सीटें जीतीं। मोदी प्रधानमंत्री बने और इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय उनको ही मिला। वह गुजरात के मुख्यमंत्री और पीएम पद के उम्मीदवार थे, लेकिन इस चुनावी रण में तो बतौर प्रधानमंत्री मुकाबिल हैं।

निसंदेह मोदी ने अपना साम्राज्य बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा सांसदों की भारी भरकम फौज ने अगर जनता के बीच काम किया होता तो कोई चुनौती नहीं होती। इस बार जो भी बेहतर परिणाम होगा, वह मोदी की ही बदौलत रहेगा।

चरणवार बढ़ती गई रैलियों की संख्या

भाजपा ने अपने संगठन के लिहाज से उत्तर प्रदेश को छह हिस्सों में बांटा है। पश्चिम, ब्रज, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, काशी और गोरखपुर। पश्चिम क्षेत्र में 14 लोकसभा क्षेत्र हैं लेकिन, मोदी ने वहां सिर्फ तीन रैली की। इसके बाद ब्रज क्षेत्र में 20 अप्रैल को उनकी दो रैलियांं एटा और बरेली में थीं। ब्रज में 13 लोकसभा क्षेत्र हैं लेकिन, इस क्षेत्र में भी मोदी की सिर्फ दो रैलियों से भाजपा ने पूरे इलाके को अपने मंसूबों से अवगत करा दिया। तीसरे चरण के चुनाव तक भाजपा की रैलियों में बहुत तेजी नहीं थी लेकिन, चौथा चरण आते-आते कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में मोदी भी सक्रिय हो गये। 25 अप्रैल को मोदी बांदा, 27 को कन्नौज, हरदोई और सीतापुर में थे। मोदी ने बांदा से बुंदेलखंड को साधा।

इसके पहले पुलवामा में शहीदों पर हमले के ठीक एक दिन बाद मोदी झांसी भी गये थे। उस दिन ही मोदी ने पूरे बुंदेलखंड में राष्ट्रवाद की गूंज पैदा की और वहीं से सर्जिकल स्ट्राइक-टू का संकेत पूरी दुनिया को मिल गया था। कन्नौज में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव से पिछली दफे भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक करीब 20 हजार मतों से हारे थे। इस बार कन्नौज आकर मोदी ने अति पिछड़ा कार्ड खेल दिया। मोदी ने अवध क्षेत्र के 16 लोकसभा क्षेत्रों के बीच कुल छह रैलियां की। नौ मई तक मोदी प्रदेश में 18 रैलियों को संबोधित कर चुके थे लेकिन, इसके बाद और तेजी आ गई। मोदी ने 16 मई तक आठ और रैलियां की और इस तरह पूरे उप्र में 26 रैलियों को संबोधित किया। मोदी ने एक रैली से औसत तीन लोकसभा क्षेत्रों को साधा।

नाराजगी का था आलम 

चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली रैली 28 मार्च को मेरठ में हुई। इसके पहले भाजपा ने जब मेरठ के मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया तो भाजपा में ही विद्रोह शुरू हो गया। कार्यकर्ता ही हंगामा करने लगे और एक नई चुनौती आ खड़ी हुई। मोदी की मेरठ रैली से असंतोष, विद्रोह और भितरघात तो दबा ही, कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ गया। शुरुआती दौर में ही मोदी को यह भान हो गया कि उनके सांसदों का माहौल अच्छा नहीं है। इसी कारण मोदी ने हर क्षेत्र में अपने उम्मीदवार का नाम तो जरूर लिया, लेकिन वोट अपने ही नाम पर मांगे। भाजपा ने 21 सांसदों को तो दोबारा चुनाव मैदान में नहीं उतारा लेकिन, जितने सांसद दोबारा किस्मत आजमा रहे थे, उनमें आधे के खिलाफ जबर्दस्त विरोध था। मोदी ने जनता की नाराजगी दूर करने में अहम भूमिका निभाई। 

काशी के रोड शो से बदली पूर्वांचल की फिजा

मोदी काशी के पर्याय हैं। अपने नामांकन से पहले मोदी ने वाराणसी में चार किलोमीटर लंबा रोड शो किया। इस रोड शो से पूर्वांचल की फिजा बदल गई। काशी ने पूरे प्रदेश और देश को संदेश दिया। खासतौर से छठे और सातवें चरण की सीटों के उम्मीदवारों के लिए यह रोड शो संजीवनी जैसा रहा।

यूपी में रैली का लेखा-जोखा

पहली रैली - 28 मार्च - मेरठ

50 दिन में 26 रैलियां (16 मई तक)

-काशी में ऐतिहासिक रोड शो। 

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