Loksabha Election 2019 : सपा और रालोद की बैसाखी के सहारे बसपा की टिकीं उम्मीदें

सपा से गठबंधन करते समय बसपा प्रमुख मायावती के दिमाग में 2014 का चुनाव परिणाम भी जरूर रहा होगा। तब 34 सीटों पर बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर थे। बसपा का इस बार इन सीटों पर फोकस है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Wed, 03 Apr 2019 11:44 AM (IST) Updated:Wed, 03 Apr 2019 11:44 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : सपा और रालोद की बैसाखी के सहारे बसपा की टिकीं उम्मीदें
Loksabha Election 2019 : सपा और रालोद की बैसाखी के सहारे बसपा की टिकीं उम्मीदें

लखनऊ [अजय जायसवाल]। पिछले चुनाव के कुछ गणित ऐसे हैैं जो इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का जोश बढ़ाए हुए हैैं। इनमें एक है मतों के प्रतिशत का। भाजपा को जहां पिछली बार 42.65 फीसद वोट मिले थे वहीं सपा-बसपा और रालोद को मिलाकर उससे कहीं अधिक 42.98 फीसद वोट मिले थे, हालांकि इसके बावजूद बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, क्योंकि सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे। इस बार गठबंधन से बसपा को सहारा मिला है और वह उन सीटों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां मतों का बिखराव उसकी हार की प्रमुख वजह बना था।

मसलन सीतापुर की ही सीट लें। बसपा उम्मीदवार यहां 3.66 लाख से अधिक वोट बटोरने में कामयाब रहा था। इस सीट पर सपा को 1.56 लाख वोट मिले थे, जबकि भाजपा ने 4.17 लाख वोट हासिल कर विजय पताका फहरायी थी। साफ है कि सपा-बसपा के साथ आने पर उसके वोट भाजपा से एक लाख से अधिक हो जाते हैैं। कांगे्रस को यहां मात्र 29 हजार वोट मिले थे। सीतापुर जिले की ही दूसरी सीट मिश्रिख का हाल भी कुछ ऐसा रहा। भाजपा यहां 4.12 लाख वोट हासिल कर जीती थी जबकि बसपा को 3.25 लाख और सपा को 1.95 लाख वोट मिले थे।

राजधानी लखनऊ से सटी मोहनलालगंज सीट पर बसपा को 3.09 लाख वोट मिले थे, जबकि सपा को 2.42 लाख मिले थे। दोनों के मिलने से साढ़े पांच लाख वोट होते हैैं जबकि भाजपा ने 4.55 लाख वोट हासिल कर जीत दर्ज कराई थी। इसी तरह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय जिस चंदौली सीट से सांसद हैं वहां भी यदि सपा-बसपा एक रहे होते तो 2014 का परिणाम अलग होता। पिछली बार पाण्डेय 4.14 लाख वोट हासिल कर विजयी हुए थे, जबकि सपा को 2.04 लाख और बसपा को 2.57 लाख वोट मिले थे। कांग्रेस यहां भी कोई कमाल नहीं कर सकी थी। उसे सिर्फ 27 हजार वोट मिले थे।

गठबंधन के पीछे वोटों की गणित समझाने के लिए भले ही चार सीटों के उदाहरण दिए गए हैं लेकिन कुछ ऐसी ही स्थिति बसपा के कोटे वाली 38 सीटों में से लगभग दो दर्जन पर है। पिछली बार बसपा इन पर रनरअप रही थी और अबकी सपा-रालोद के साथ होने से उसे भाजपा पर अपना पलड़ा भारी दिख रहा है। इनमें आरक्षित श्रेणी की सीटें भी हैैं। पार्टी सुप्रीमो मायावती भी इन सीटों पर कहीं ज्यादा फोकस कर रही हैैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को सूबे की विभिन्न सीटों पर छह से लेकर 35.68 फीसद यानि 53 हजार से लेकर 3.66 लाख तक वोट मिले थे। गौर करने की बात यह है कि वोटों के बिखराव के चलते 3.66 लाख से कम वोट हासिल कर जहां भाजपा ने जहां 15 वहीं सपा ने एक सीट पर जीत दर्ज कराई थी। पार्टी नेताओं का कहना है कि हमें बखूबी मालूम है कि गठबंधन के बावजूद सपा का पूरा वोट बसपा को नहीं मिलने वाला है लेकिन पिछले नतीजों से साफ है कि अगर कई सीटों पर सपा का 50 से 75 फीसद वोट भी हमें हासिल हो गया तो हम भाजपा को आसानी से शिकस्त देने में कामयाब रहेंगे।

2014 में इन सीटों पर रनरअप रही बसपा

प्रतापगढ़, मेरठ, बुलंदशहर, आगरा, जालौन, अलीगढ़, अकबरपुर, देवरिया, शाहजहांपुर, सलेमपुर, बांसगांव, फतेहपुर, सुल्तानपुर, फतेहपुर सीकरी, मछलीशहर, भदोही, जौनपुर, घोसी, मोहनलालगंज, अंबेडकरनगर, धौरहरा, डुमरियागंज, संतकबीरनगर, मिश्रिख, सीतापुर।

रनरअप नहीं फिर भी अबकी मैदान में बसपा

सहारनपुर, बिजनौर, नगीना (सु.), अमरोहा, गौतमबुद्धनगर, आंवला, फार्रुखाबाद, हमीरपुर, कैसरगंज, श्रावस्ती, बस्ती, लालगंज, गाजीपुर।

बसपा रनरअप फिर भी सपा-रालोद मैदान में

मिर्जापुर, मुजफ्फरनगर, हाथरस, महराजगंज, राबर्ट्सगंज, चंदौली, बांदा, खीरी, हरदोई, कुशीनगर, बाराबंकी।

chat bot
आपका साथी