Loksabha Election 2019 : गठबंधन की डोर बंधते ही पड़ी चौधरी के रिश्ते में गांठ

सपा में शामिल हुए आरके चौधरी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sun, 07 Apr 2019 10:54 AM (IST) Updated:Sun, 07 Apr 2019 11:05 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : गठबंधन की डोर बंधते ही पड़ी चौधरी के रिश्ते में गांठ
Loksabha Election 2019 : गठबंधन की डोर बंधते ही पड़ी चौधरी के रिश्ते में गांठ

लखनऊ, [निशांत यादव]।  मोहनलालगंज सुरक्षित सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा से लड़े आरके चौधरी के पाला बदलने की अटकलें उसी दिन शुरू हो गई थीं, जब सपा-बसपा गठबंधन के बाद यह सीट बसपा के खाते में चली गई थी। आरके चौधरी 22 दिसंबर 2017 को इस उम्मीद से सपा में शामिल हुए थे कि पार्टी के पास वहां 2019 में एक बड़ा चेहरा होंगे। गठबंधन हुआ तो सीट बसपा के खाते में चली गई और इस सीट से सीएल वर्मा को लोकसभा प्रभारी बना दिया गया। उनके प्रभारी बनने के बाद सपा की दो बार सांसद रहीं रीना चौधरी ने भी बसपा छोड़ दी। आरके चौधरी ने शनिवार को नई दिल्ली में कांग्रेस महासचिव व पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के समक्ष कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।

दरअसल, यह पहला मौका नहीं है जबकि आरके चौधरी ने अपना पाला बदला हो। कांशीराम के साथ बसपा की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाने वाले आरके चौधरी ने बसपा से अलग होने के बाद अपनी नई पार्टी आरएसबीपी बनाई। साथ ही बीएसफोर से बहुजन आंदोलन को भी जारी रखा। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में आरके चौधरी ने कांग्रेस के समर्थन से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। हालांकि, वे तीसरे नंबर पर आए थे। उनको 20.79 प्रतिशत वोट मिले। जबकि, विजयी होने वाली सपा की सुशीला सरोज को 36.93 और बसपा के जयप्रकाश को 26.69 प्रतिशत वोट हासिल हुए।

सुशीला सरोज को 2.56 लाख 367 वोट और आरके चौधरी को 1.44 लाख 341 वोट मिले थे। जबकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा पर सवार होकर आरके चौधरी चुनाव लड़े तो 27.75 प्रतिशत वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर आए। भाजपा के कौशल किशोर 40.77 प्रतिशत वोट हासिल कर विजयी हुए। कौशल किशोर और आरके चौधरी के बीच हारजीत का अंतर 1.45 लाख 416 का रहा। सपा की सुशीला सरोज तीसरे नंबर पर आयीं। इस चुनाव में सपा और बसपा को मिलाकर कुल 49.46 प्रतिशत वोट मिले थे।

तीन बार विधायक और चार बार बने मंत्री

आरके चौधरी का मोहनलालगंज विधानसभा क्षेत्र में खासा प्रभाव है। आरके चौधरी इस सीट से तीन बार विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। वह 1993 में फैजाबाद छोड़कर राजधानी आए और बीएसपी के पदाधिकारी बने। पहली बार चार दिसंबर 1993 को चौधरी प्रदेश सरकार में मंत्री बने। मोहनलालगंज सीट से 1996, 2002 व 2007 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।

लेकिन 2012 में रुका विजय रथ

आरके चौधरी को 2012 से मोहनलालगंज सीट पर एक बार भी सफलता नहीं मिली। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की चंद्रा रावत यहां से विजयी हुईं। जबकि, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वे तीसरे नंबर पर रहे। सपा के अम्ब्रीश सिंह पुष्कर विजयी हुए। बसपा के रामबहादुर दूसरे नंबर पर रहे। आरके चौधरी ने भाजपा का समर्थन लेकर अपनी ही पार्टी के चिह्न् पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था।

पिछले चुनावों में इतना रहा कांग्रेस का प्रतिशत

सन 1962 में अस्तित्व में आयी मोहनलालगंज लोकसभा सीट पर 1977 में कांग्रेस को पहली बार हार का मूंह देखना पड़ा। कांग्रेस को आखिरी बार 1984 के चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल हुई। इसके बाद आज तक पार्टी का यहां से खाता नहीं खुला। सन 1996 में 3.53 प्रतिशत, 1998 में 5.27 प्रतिशत, 1999 में 13.23 प्रतिशत, 2004 में 16.17 प्रतिशत और 2014 में 4.71 प्रतिशत मत मिले।

पहले समर्थन अब बागी

सपा में रहते हुए गठबंधन प्रत्याशी को मोहनलालगंज लोकसभा सीट से विजयी बनाने के लिए आयोजित संयुक्त बैठकों में आरके चौधरी बराबर शामिल हुए। अब बागी तेवर अपनाते हुए वह बसपा के सीएल वर्मा के सामने होंगे।

आज तक पार न हुई कांग्रेस की नैया

यह पहला मौका नहीं है, जबकि कांग्रेस को अपना हाथ मजबूत करने के लिए दूसरे दलों से आने वालों का सहारा लेना पड़ा हो। दरअसल, मोहनलालगंज सीट पर कांग्रेस का गिरता जनाधार पार्टी के लिए चिंता का विषय है। इससे पहले 1998 और 1999 में सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतने वाली रीना चौधरी को जब 2004 में टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस में चली गईं। सोनिया गांधी ने रीना चौधरी के लिए जनसभा की। तब भी वह तीसरे नंबर पर रहीं।

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