Lok Sabha Election 2019: जम्मू-कश्मीर के तीनों संभागों में अलग-अलग मुद्दों पर पड़े वोट

जम्मू संभाग की दोनों सीटों जम्मू और ऊधमपुर में चुनाव प्रचार पूरी तरह भारत के साथ जम्मू कश्मीर के पूर्ण विलय कश्मीर केंद्रित सियासत की समाप्ति और विकास के ईद-गिर्द रहा।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 07 May 2019 11:30 AM (IST) Updated:Tue, 07 May 2019 11:30 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: जम्मू-कश्मीर के तीनों संभागों में अलग-अलग मुद्दों पर पड़े वोट
Lok Sabha Election 2019: जम्मू-कश्मीर के तीनों संभागों में अलग-अलग मुद्दों पर पड़े वोट

जम्मू, नवीन नवाज। 17वीं लोकसभा के गठन के लिए जारी चुनाव प्रक्रिया के तहत सोमवार को राज्य की सभी छह संसदीय सीटों के लिए मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गई। मतदान के नतीजे बेशक 23 मई को आएंगे, लेकिन लोकतंत्र के इस त्योहार ने विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित राज्य के तीनों संभागों जम्मू, लद्दाख और कश्मीर की राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ-साथ स्थानीय सुरक्षा परिदृश्य और मुख्यधारा की सियासत के प्रति लोगों में नाराजगी की कहानी को बयां कर दिया। बड़ी बात यह कि कश्मीर के तीनों संसदीय क्षेत्रों में कहीं भी मतदान 50 प्रतिशत तक नहीं पहुंचा।

राज्य में छह संसदीय क्षेत्र जम्मू-पुंछ, ऊधमपुर-डोडा-कठुआ, बारामुला-कुपवाड़ा, श्रीनगर-बडगाम, अनंतनाग-पुलवामा और लद्दाख हैं। जम्मू पुंछ सीट पर 72.16, उधमपुर-कठुआ में 70.2, बारामुला-कुपवाड़ा में 34.61, श्रीनगर-बडगाम में 14.1 और अनंतनाग-पुलवामा में 2.81 प्रतिशत मतदान हुआ है। लददाख में 63.70 प्रतिशत मतदान रिकार्ड किया गया है। यह आंकड़े सिर्फ आंकड़े भर नहीं हैं, इन्हें अगर ध्यान से देखा जाए तो यह पूरे राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, आॢथक और सुरक्षा परिदृश्य की तस्वीर पेश करते हैं।

भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा

जम्मू संभाग की दोनों सीटों जम्मू और ऊधमपुर में चुनाव प्रचार पूरी तरह भारत के साथ जम्मू कश्मीर के पूर्ण विलय, कश्मीर केंद्रित सियासत की समाप्ति और विकास के ईद-गिर्द रहा। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा। कश्मीर केंद्रित विशेषकर मुस्लिम वोटों पर आश्रित पीडीपी और नेकां ने यहां उम्मीदवार नहीं उतारे और कांग्रेस का समर्थन किया। इसके जरिए इन दलों ने जम्मू संभाग में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सियासत करनी चाही। इसके बावजूद उन इलाकों में कम मतदान हुआ, जहां नेकां व पीडीपी का जनाधार अधिक है। यानी यहां इनकी सियासी जमीन खिसक रही है या इनका परंपरागत वोटर अब इनसे छुटकारा चाहते हुए विकास की राह पकडऩा चाहता है।

चुनाव बहिष्कार के बावजूद 35 प्रतिशत हुई वोटिंग

दूसरी तरफ, कश्मीर में सिर्फ एलओसी के साथ सटे बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोरा पर आधारित संसदीय सीट बारामुला-कुपवाड़ा में आतंकियों व अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के बावजूद 35 प्रतिशत तक वोटिंग हुई। अहम बात यह रही कि पहाड़ी और एलओसी से सटे इलाकों में अधिक वोट पड़े, जबकि निचले और शहरी इलाकों में कम। श्रीनगर-बडग़ाम-गांदरबल पर आधारित संसदीय सीट जो मुख्यत: शहरी आबादी वाली है और शिया वोटर भी खूब हैं, मात्र 14 प्रतिशत वोट पड़े। वह भी उन इलाकों में जहां गुज्जर समुदाय की आबादी ज्यादा है।

कश्मीर में स्थानीय नेताओं की नाकामी रही कम वोटिंग का कारण

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रशीद राही ने कहा कि जम्मू और लद्दाख संभाग ने मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में जिस तरह का मूड दिखाया है, उससे एक बार फिर साबित हो गया है कि वहां के लोग ही नहीं, सियासतदान भी मुख्यधारा की सियासत और विकास में यकीन रखते हैं। वहां राजनीतिक दलों ने वोट भी इसी आधार पर मांगे हैं। कश्मीर में जो मतदान कम हुआ है, यह दिल्ली नहीं बल्कि स्थानीय सियासतदानों की नाकामी है। यहां के लोगों को वह अपने साथ जोडऩे और उनकी उम्मीदों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। जिन इलाकों में बहिष्कार का असर नजर आया है, वहां पिछले चुनावों में आतंकी ङ्क्षहसा और अलगाववादियों के बॉयकाट के फरमान के बावजूद खूब वोट पड़े थे। इसका यही मतलब है कि स्थानीय लोगों ने जिन्हें वोट दिया था, वह उम्मीदों पर पूरे नहीं उतरे।

सियासी दलों और अलगाववादियों के एक जैसे रहे मुद्दे

कश्मीर में चुनाव लड़ रहे दलों ने धारा 370 और 35 ए के समाप्त होने का डर दिखाकर, भाजपा को मुस्लिमों का दुश्मन बताकर वोट मांगे हैं। उन्होंने सुरक्षाबलों को लताड़ा, दिल्ली को कोसा और मानवाधिकारों के कथित हनन का मुददा भी उठाया। यही मुददे कमोबेश अलगाववादियों के हैं। अगर आम कश्मीरी को इन मुददों से मोह होता तो कम से कम हर क्षेत्र में 30-40 प्रतिशत तक मतदान होता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इससे साबित है कि आम कश्मीरी अगर ङ्क्षहसा के मौजूदा दुष्चक्र से तंग है तो वह अलगाववाद की भावना पर मुख्यधारा की सियासत करने वाले क्षेत्रीय दलों से भी नाराज है।

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