बिहार: औरंगाबाद में सिर्फ एक बार जीती है BJP, कभी स्वतंत्र पार्टी ने भी गाड़ा था झंडा

लेकिन इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और महागठबंधन के बीच होगा।

By NiteshEdited By: Publish:Mon, 25 Mar 2019 08:35 PM (IST) Updated:Fri, 29 Mar 2019 04:48 PM (IST)
बिहार: औरंगाबाद में सिर्फ एक बार जीती है BJP, कभी स्वतंत्र पार्टी ने भी गाड़ा था झंडा
बिहार: औरंगाबाद में सिर्फ एक बार जीती है BJP, कभी स्वतंत्र पार्टी ने भी गाड़ा था झंडा

नई दिल्ली (जेएनएन)। लोकसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे बिहार के औरंगाबाद क्षेत्र में राजनीतिक गर्माहट भी शुरू हो गई है। 11 अप्रैल को यहां पहले चरण में मतदान होगा। इस बीच महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, हम, वीआईपी, सीपीआई (एमएल)) ने भी सीट पर बंटवारे का एलान कर दिया है। 40 में से लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के खाते में 20 सीटें आई हैं और कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि अभी तक उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है। लेकिन इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और महागठबंधन के बीच होगा।

2014 में यहां से बीजेपी ने ही जीत का परचम लहराया था, लेकिन उससे पहले के इतिहास पर नजर डालें तो बीजेपी यहां कभी नहीं जीती। इसलिए 2014 में जीती अपनी इस सीट को 2019 में भी बचाए रखना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती होगी। आज इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं 1952 से 2014 तक इस सीट पर किन-किन दलों ने जीत दर्ज की है-

जब स्वतंत्र पार्टी ने कांग्रेस को दिया झटका

1952 में देश में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद क्षेत्र गया पूर्व लोकसभा सीट का हिस्सा था। गया पूर्व में हुए चुनाव में कांग्रेस के बृजेश्वर प्रसाद ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार सत्येंद्र नारायण सिंह जीते। सत्येंद्र यहां से पहली बार सांसद चुने गए। उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार राम स्वरूप सिंह को हराया। सत्येंद्र नारायण को जहां 89389 वोट मिले, वहीं राम स्वरूप को 51903 वोट मिले। 1962 में हुए चुनाव में हालांकि कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस बार औरंगाबाद से स्वतंत्र पार्टी उम्मीदवार ललिता राज लक्ष्मी ने कांग्रेस उम्मीदवार रमेश प्रसाद सिंह को हराया। ललिता जहां 64552 वोट पाकर जीतीं, वहीं रमेश प्रसाद सिंह 54791 वोट ही अपने खाते में दर्ज करा पाए।

1967 में कांग्रेस ने की दोबारा वापसी की

कांग्रेस ने इस बार एक नए उम्मीदवार एम सिंह को इस सीट से उतारा और एम सिंह ने फिर से कांग्रेस को एक बड़ी जीत दिलाई। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार को हराया। दोनों के बीच हार का अंतर भी काफी ज्यादा रहा। इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में जब कांग्रेस दो भागों में बंट गई, तब सत्येंद्र नारायण ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) (NCO) में जाने का फैसला किया। उन्होंने एनसीओ उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस (आई) के प्रत्याशी मुद्रिका सिन्हा को हराकर जीत हासिल की। विपक्ष में रही कांग्रेस (आई) के लिए यह चुनाव बुरा साबित हुआ, क्योंकि उन्हें यहां से फिर से हार का मुंह देखना पड़ा। मुद्रिका कांग्रेस को यहां से जीत दिलाने में नाकामयाब रहे। सत्येंद्र ने मुद्रिका को 91099 वोटों के अंतर से हराया।

लगातार कई बार जीते सत्येंद्र नारायण

1977 में हुए चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिंह फिर से सांसद चुने गए। लेकिन इस चुनाव में उन्होंने एनसीओ का साथ छोड़ भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। सत्येंद्र नारायण वह पहले शख्स थे, जो इस सीट पर तीन बार सांसद बने थे। उनकी ये जीत इसलिए भी बड़ी थी, क्योंकि उन्होंने दो बार कांग्रेस को हराया। 1977 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के नए उम्मीदवार राम स्वरूप यादव को हराया। सत्येंद्र ने अपने खाते में जहां 251139 वोट लिखवाए, वहीं राम स्वरूप केवल 130692 वोट पाने में ही कामयाब रहे।

1980 में एक और नई पार्टी से चुनाव लड़े सत्यें द्र नारायण

1980 में सत्येंद्र नारायण फिर इस सीट से चुनाव लड़े, लेकिन फिर एक नई पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर। कांग्रेस और भारतीय लोक दल का साथ छोड़कर इस बार सत्येंद्र ने जनता पार्टी का हाथ थामा और यहां से जीत दिलाई। इस जीत के साथ सत्येंद्र ने यह साबित कर दिया कि उन्हें औरंगाबाद से हराना किसी भी पार्टी के लिए इतना आसान नहीं। जनता पार्टी की झोली में जीत डालने वाले सत्येंद्र ने अपने विपक्षी उम्मीदवार कांग्रेस (आई) के सिद्धांत सिंह को भारी वोटों के अंतर हराया।

लगातार हार झेलने के बाद कांग्रेस के लिए इस सीट पर वापसी करना बेहद जरूरी था। इसलिए 1984 में कांग्रेस ने सत्येंद्र नारायण को फिर से अपनी पार्टी में शामिल किया। कांग्रेस को भी ये एहसास हो गया था कि सत्येंद्र को इस सीट से हराना बेहद मुश्किल था। इसलिए कांग्रेस ने उन्हें अपनी पार्टी से टिकट दिया और पार्टी का यह फैसला सही भी साबित हुआ। सत्येंद्र ने आखिरकार कांग्रेस को इस सीट से जीत दिलाई और जनता पार्टी को हराया। जबकि 1980 में हुए चुनाव में वह जनता पार्टी से ही जीते थे। लेकिन इस बार उन्होंने जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा और शंकर दयाल सिंह को बड़े अंतर से हराया। सत्येंद्र ने 277567 वोट हासिल किए वहीं शंकर 111532 वोट पाकर हार गए।

1991 में हारे कद्दावर नेता सत्येंद्र नारायण सिन्हा

इसके बाद 1989, 1991 और 1996 में जनता पार्टी ने यहां राज किया और तीनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। 1989 में जनता पार्टी के राम नरेश सिंह ने कांग्रेस के श्याम सिंह हराया। 1991 में राम नरेश ने कांग्रेस के कद्दावर नेता सत्येंद्र नारायण सिन्हा को हराया। 1996 में पार्टी ने नए उम्मीदवार वीरेंद्र कुमार सिंह को टिकट दिया। वीरेंद्र ने भी सत्येंद्र नारायण को हराकर पार्टी को यहां से जीत दिलाई। कांग्रेस के लिए लगातार तीन बार हारना एक बड़ा झटका था।

कांग्रेस का हुआ सूपड़ा साफ, पांचवें नंबर पर पहुंची

1998 में यहां जिस पार्टी ने जीत हासिल की, वो सभी के लिए चौंकाने वाली थी। इस लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद सीट से समता पार्टी के उम्मीदवार जीते और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। समता पार्टी के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह यहां से सांसद चुने गए। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार को हराया। कांग्रेस के लिए 1998 में हारना काफी निराशाजनक रही। हमेशा पहले या दूसरे नंबर पर आने वाली कांग्रेस इस चुनाव में पांचवें नंबर पर रही थी।

1999 और 2004 में यहां फिर कांग्रेस ने बाजी मारी और बड़ी जीत हासिल की। 1999 में कांग्रेस के श्याम सिंह सांसद चुने गए और 2004 में निखिल कुमार ने पार्टी को जीत दिलाई। हालांकि, 2009 में जेडीयू ने जीत का खाता खोल लिया। जेडीयू प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने आरजेडी उम्मीदवार शकील अहमद खान को हराया। लेकिन 2014 में 16वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में सुशील कुमार सिंह भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लड़े और जीते। सुशील कुमार सिंह को 307941 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस के निखिल कुमार को हराया। निखिल कुमार को 241594 वोट मिले।

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