जान पर खेलकर स्कूल का सफर

सुपौल। सरकार जहां हर गांव और मुहल्ले को मुख्य सड़क से जोड़कर लोगों के लिए हर संभव स

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Oct 2018 01:15 AM (IST) Updated:Sun, 28 Oct 2018 01:15 AM (IST)
जान पर खेलकर स्कूल का सफर
जान पर खेलकर स्कूल का सफर

सुपौल। सरकार जहां हर गांव और मुहल्ले को मुख्य सड़क से जोड़कर लोगों के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध कराने का दावा कर रही है। वहीं सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के शाहपुर पृथ्वीपट्टी के वार्ड नंबर 6 और 7 के करीब 350 बच्चे प्रतिदिन ¨जदगी और मौत से खेलकर विद्यालय जाते आते हैं। इस गांव में हाजीगुल मु. प्राथमिक विद्यालय मुस्लिम टोला पृथ्वीपट्टी और मदरसा कश्मीर शाहपुर पृथ्वीपट्टी दो विद्यालय कटायर धार के किनारे अवस्थित है। इन दोनों विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की संख्या 350 से अधिक है जो मुस्लिम तथा अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के हैं। विद्यालय के शिक्षक लंबे समय से इन बच्चों को कभी पानी में सीधे रूप से तो कभी चचरी पर खड़े होकर पार कराते हैं। तब यह बच्चे स्कूल आते और जाते हैं। सुपौल जिले में सरकारी स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं का शायद ही कहीं ऐसा हाल होता हो। कहते हैं कि जब तक बच्चे चचरी नहीं पार कर जाते तब तक शिक्षकों में बेचैनी बढ़ी रहती है। चचरी के बगल खड़े होकर लंबी सांस ले रहे शिक्षक एक-एक बच्चे को इस किनारे से उस किनारे तक पहुंचाने का काम प्रतिदिन किया करते हैं। ऐसे में यदि किसी दिन संयोग से कोई बच्चा चचरी से फिसल जाता है तब अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। मदरसा कासमिया के शिक्षक प्रधान अब्दुल जलील, सहायक शिक्षक अताउर्रहमान, मंजूर आलम, मु. अयूब, शम्स तबरेज, मु. सुबेश आलम तथा प्राथमिक विद्यालय हाजी गुल मु. मुस्लिम टोला के प्रधान मु. यूसुफ, सहायक अबुल आस, शमशाद आलम तथा शिक्षिका बबली कुमारी ने बताया कि वह सभी प्रतिदिन सवेरे विद्यालय के बदले चचरी के पास पहुंचते हैं। विद्यालय के शिक्षक तथा शिक्षिकाओं ने बताया कि जब तक एक एक बच्चे चचरी पार नहीं कर लेते तब तक वह सभी वहीं खड़े रहते हैं। इसी तरह जब विद्यालय में छुट्टी होती है तो फिर वह सभी चचरी किनारे खड़े हो जाते हैं और एक एक बच्चे को चचरी पार कराने के बाद ही अपने-अपने घरों को जाते हैं। शिक्षकों ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर चचरी पार करना पड़ता है। क्योंकि थोड़ी सी चूक बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है। शिक्षकों ने बताया कि कटायर नदी में पुल की मांग वह सभी लंबे समय से करते रहे हैं। पिछले वर्ष भी विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने इसको लेकर काफी विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और गांव के बच्चे जान हथेली में रखकर विद्यालय आने जाने को विवश बने हैं।-------------------------बोले अभिभावकशाहपुर के अभिभावकों में मु. खलील, मु. रुखसार आलम, गुल मु., मु. इसराइल, मु. कुर्बान, तसलीम, परवेज आलम, लाल मुहम्मद, लुकमान, रसूल, अबुल, इदरीश, मकसूद आदि ने बताया कि कटायर नदी में पुल का नहीं होना बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के मौलिक अधिकार से रोकने जैसा है। अभिभावकों ने बताया कि वैसे भी इस धार में पुल की मांग को लेकर बार-बार क्षेत्र के नेताओं तथा जनप्रतिनिधियों तक जाते रहे हैं सभी के द्वारा आश्वासन तो मिला है लेकिन स्थल पर कोई काम नहीं हो सका है। अभिभावकों ने बताया कि यह उन सबों के साथ नाइंसाफी है।

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बोले बच्चे

इन दोनों विद्यालय के कई बच्चों से पूछने पर बताया कि शिक्षकों और अभिभावकों के दबाव में उन सबों को नियमित रूप से विद्यालय आने की बेबसी है। बच्चों ने बताया कि जब वह सभी चचरी पर चढ़ते हैं तो काफी डर लगता है। कई बच्चों का कहना था कि नदी पर बनी चचरी कभी जानलेवा भी हो सकती है। इस आशंका से कभी-कभी वे सब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने विद्यालयों में जाते हैं।

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