बिहार में बंदरों का एक गांव, हालत ऐसी कि तीर-कमान लेकर चलते ग्रामीण

बिहार के सुपौल जिले का सरायगढ़ गांव जहां लोग बंदरों के खौफ से जागकर रात बिताते हैं। यहां बंदरों का ही आतंक राज कायम है। पिछले कुछ वर्षों से यहां बंदरों का आतंक झेलना पड़ रहा है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Tue, 02 Oct 2018 11:25 AM (IST) Updated:Tue, 02 Oct 2018 08:43 PM (IST)
बिहार में बंदरों का एक गांव, हालत ऐसी कि तीर-कमान लेकर चलते ग्रामीण
बिहार में बंदरों का एक गांव, हालत ऐसी कि तीर-कमान लेकर चलते ग्रामीण

सुपौल [विमल भारती]। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड क्षेत्र का एक बड़ा इलाका बंदरों के आतंक में है। कुछ वर्ष पूर्व बाहर के लोगों ने नेशनल हाइवे पर बंदरों के झुंड को लाकर उतार दिया था। इस झुंड ने सरायगढ़ गांव में अपना स्थाई आवास बना लिया। इस ग्रामीण इलाके में 400 से अधिक बंदर हैं। पूरा का पूरा गांव बस गया है।

हालत यह है कि बंदरों के खौफ से लोग जागकर रात बिताते हैं औ सुबह होते ही हाथों में तीर कमान थाम लेते हैं। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड का सरायगढ़ गांव के वार्ड नंबर 12, 13 तथा 14 सहित कुछ अन्य वार्ड के लोगों को पिछले कुछ वर्षों से बंदरों के आतंक से जूझना पड़ रहा है।

बंदरों का अब इतना आतंक हो गया है कि कभी-कभी तो उसके मर्जी के खिलाफ लोग एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाते हैं। हद तो तब होती है जब बंदर समूह बनाकर लोगों के घर धमकते और जबरन बना बनाया भोजन ले कर चलते बनते हैं। 

रात को भूखे सोते हैं लोग 

बंदरों के आतंक के कारण सरायगढ़ बस्ती में लोक कई बार रात को भूखे ही सो जाते हैं। अंधेरे में जब बंदर आंगन में धमकते हैं तब लोग घरों को बंद कर सो जाते हैं और फिर सुबह में ही जगते हैं। कहते हैं कि यदि किसी के घर खाना बन रहा होता है तो बंदरों का झुंड बेखौफ होकर उसे उठा ले जाता है। 

 

आए दिन लोग होते घायल 

बस्ती के पीछे तथा आगे वृक्षों पर रह रहे बंदर आए दिन लोगों को घायल करते रहते हैं। फसल बर्बाद करते समय सब्जी के पौधे को उखाड़ते समय या अन्य किसी क्रिया क्लाप का यदि लोग विरोध जताते हैं तो बंदर उस पर झपट मारता है और फिर उसे गंभीर रूप से जख्मी कर देता है।

सरायगढ़ गांव के सूर्य नारायण यादव, संजीव कुमार यादव, जागेश्वर यादव, सुशील कुमार, जुगत लाल यादव, तपेश्वरी यादव, पूर्व सरपंच मुनी लाल यादव, चितरंजन यादव सहित कई लोग बताते हैं कि बंदरों के आक्रमण से अब वे लोग इतने विवश हैं कि कई बार बस्ती से हमेशा के लिए चले जाने का मन किया करता है।

लोग बताते हैं कि बंदरों को जब-जब भोजन नहीं मिलता है तो वे सब्जी की खेती को बर्बाद कर देते हैं। इसी तरह धान सहित अन्य फसलों को भी खेतों में पहुंचकर नष्ट कर देते हैं। 

विरोध करने पर आक्रामक हो जाते हैं बंदर 

लोग बताते हैं कि जब लाठी, पत्थरों से बंदरों पर प्रहार किया जाता है तो वे इतने आक्रामक हो जाते हैं कि लोगों को तुरंत घरों में बंद हो जाना पड़ता है। फिर मौका पाकर बंदर किसी बच्चे पर हमला बोल देते हैं और उसे गंभीर रूप से जख्मी बना देते हैं। पूरी बस्ती के लोग रात भर जगे रहते हैं और सुबह होने पर राहत की सांस लेते हैं। 

तीर तथा गुलेल बना है सहारा 

सरायगढ़ वार्ड नंबर 12 सहित अन्य टोले के लोग बताते हैं कि यहां सभी लोग हाथों में तीर तथा गुलेल लेकर दिन में पहरेदारी करते हैं तब जाकर कोई कामकाज हो पाता है। लोग कहते हैं कि इसके लिए मुहल्ले में लड़कों की टीम बनाई गई है जो बारी-बारी से बंदरों की पहरेदारी किया करते हैं।

बंदरों का कुछ दल अब धीरे-धीरे बाजारों की ओर भी मुखातिब होने लगा है और आए दिन किसी ना किसी घटना को अंजाम देते रहते  हैं। बाजार के विजय कुमार सिंह के घर धमके एक लंगूर ने ईंट के पिलर को इस कदर तोड़ कर गिराया कि उसकी 17 वर्षीय बच्ची गंभीर रूप से जख्मी हो गई जिसका पटना में इलाज चल रहा है।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी राम निवास प्रसाद ने बताया कि सरायगढ़ सहित आसपास के गांव से बंदरों द्वारा घायल किए गए लोग पहुंचते रहते हैं जिन्हें सूई दिलानी पड़ती है। 

प्रशासन बना है बेखबर 

गांव के लोगों का कहना है कि बंदरों के आतंक से बार-बार प्रशासनिक अधिकारी को अवगत कराया जाता रहा है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। 

कहा-प्रखंड विकास पदाधिकारी ने 

अभी बंदरों के आतंक की पूरी जानकारी नहीं है। इस बारे में पूरी तरह अवगत होकर वरीय अधिकारी को जानकारी देंगे फिर रणनीति तय की जाएगी। 

अरविंद कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी 

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