चचरी पर रेंग रही बेली गांव की जिंदगी

डुमरा प्रखंड के बेली गांव में जिंदगी चचरी के सहारे है। यह चचरी भी लोगों ने खुद बनायी है। लंबे समय से लोग यहां एक पुल की मांग कर रहे हैं। धरना प्रदर्शन भी हुआ। लेकिन इस मामले में अभी तक आश्वासन के अलावा लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Wed, 05 Aug 2015 08:27 AM (IST) Updated:Wed, 05 Aug 2015 08:40 AM (IST)
चचरी पर रेंग रही बेली गांव की जिंदगी

सीतामढ़ी [नीरज]। दावे भले सड़क व पुल पुलियों का जाल बिछाने के हों, लेकिन डुमरा प्रखंड के बेली गांव में जिंदगी चचरी के सहारे है। यह चचरी भी लोगों ने खुद बनायी है। लंबे समय से लोग यहां एक अदद पुल की मांग कर रहे हैं। इसके लिए धरना प्रदर्शन भी हुआ। लेकिन इस मामले में अभी तक आश्वासन के अलावा लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ है।

स्थानीय लोगों को जिला व प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए छह से सात किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। वैसे यह दूरी महज चार किलोमीटर ही है। चुनाव में वोट मांगने आने वाले प्रत्याशियों से पुल की मांग होती रही है। आजिज आकर लोगों ने चुनाव बहिष्कार की भी घोषणा तक की।

लेकिन वे जनप्रतिनिधियों के वादों पर भरोसा कर मतदान करते रहे। शासन-प्रशासन से गुहार लगा कर थक चुकेलोग इस बार विधानसभा चुनाव में पुल निर्माण को प्रमुख मुद्दा बनाने के मूड में हैं। उनका कहना है कि इस बार चुप नहीं रहेंगे और पुल बनाने की गारंटी के बाद ही मतदान करेंगे।

जनसहयोग से चचरी, प्रशासन से नाव

फरवरी 2008 में पुल के लिए समाजसेवी हरिओम शरण नारायण ने ग्रामीणों के साथ समाहरणालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया। वे तीन दिन तक अनशन पर रहे। तत्कालीन डीएम की पहल पर शीघ्र ही पुल निर्माण का आश्वासन दे अनशन समाप्त कराया गया। लेकिन परिणाम सिफर रहा।

आजिज ग्रामीणों ने यहां जन सहयोग से 35 फीट लंबी व 10 फीट चौड़ी चचरी का निर्माण किया। तब से आवागमन का यही एकमात्र सहारा है। हालांकि अब चचरी जर्जर हो चली है। फिलहाल प्रशासन की ओर नाव की व्यवस्था की गई है।

जख्म अब बन गया है नासूर

पुल निर्माण नहीं होने का जख्म अब स्थानीय नागरिकों के लिए नासूर बन गया है। योगेंद्र दास बताते हैं कि कोई अधिकारी नहीं सुनता। रामनंदन ठाकुर कहते हैं कि वोट लेने के बाद नेताजी जनता को भूल गए। फकीरा दास बताते हैं कि शासन-प्रशासन हमारी आवाज को अनसुनी कर देता है। किशन मिश्रा, हरिशंकर मिश्रा कहते हैं कि चचरी जर्जर हो गयी है। इस बारिश में अनहोनी का डर है। प्रशासन सबकुछ जानकर भी अनजान बना हुआ है।

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