Bihar Politics : कहीं चौबे-सिंह और कहीं छेदी-मीरा... सियासी 'समय' का फेर पड़ा भारी, चुनावी मैदान से हुए आउट

Bihar Lok Sabha Election 2024 बिहार के कई दिग्गज नेता ऐसे हैं जो इस बार चुनावी मैदान में उम्मीदवार के तौर पर दिखाई नहीं देंगे। कभी इन नेताओं को शह-मात के खेल में ताल ठोकते हुए देखा गया था। बहरहाल समय और लोकसभा सीटों पर सियासी नफे-नुकसान के फैसलों की वजह से इन नेताओं के टिकट काट दिए गए।

By Sunil Raj Edited By: Yogesh Sahu Publish:Wed, 24 Apr 2024 07:01 PM (IST) Updated:Wed, 24 Apr 2024 07:01 PM (IST)
Bihar Politics : कहीं चौबे-सिंह और कहीं छेदी-मीरा... सियासी 'समय' का फेर पड़ा भारी, चुनावी मैदान से हुए आउट
Bihar Politics : कहीं चौबे-सिंह और कहीं छेदी-मीरा... सियासी 'समय' का फेर पड़ा भारी, चुनावी मैदान से हुए आउट

HighLights

  • राजनीतिक फैसलों और समय की भेंट चढ़ी चुनाव मैदान की कई चर्चित 'जोड़ियां'
  • इस बार के लोकसभा चुनाव में जहां मैदान के कई धुरंधर नहीं दिखाई देंगे

सुनील राज, पटना। चुनाव वैसे तो हर पांच साल में आते हैं। वहीं, इन चुनावों की बड़ी बात यह है कि हर बार सियासत के मैदान पर कई चेहरे बदल जाते हैं।

अमूमन सभी दलों में ऐसे उम्मीदवार भी होते हैं, जो बदलती राजनीतिक परिस्थिति या फिर बढ़ती उम्र के कारण भी खुद को चुनाव से अलग-थलग कर लेते हैं।

बहरहाल, सियासी संग्राम का मैदान एक बार फिर सज चुका है। विभिन्न दलों के बड़े-बड़े प्रत्याशी इस मैदान पर अपनी किस्मत आजमाने में लगे हुए हैं।

बड़ी बात यह है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में जहां मैदान के कई धुरंधर नहीं दिखाई देंगे, वहीं कुछ चर्चित 'जोड़ियां' भी इस बार किस्मत आजमाने नहीं उतरेंगी।

सबसे पहले बात बक्सर के चौबे-सिंह की

सबसे पहले बात बक्सर संसदीय सीट (Buxar Lok Sabha Seat) की। बक्सर संसदीय पर इस चुनाव दो नए चेहरे किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा से मिथिलेश तिवारी, जबकि राजद से सुधाकर सिंह।

इसके पूर्व तक यहां दो नेताओं की जोड़ियां काफी चर्चा में रही। बात 2019 लोकसभा चुनाव की हो या फिर 2014 की।

इन दो चुनाव में बक्सर संसदीय सीट पर जगदानंद सिंह और अश्विनी चौबे (Ashwini Choubey) को जनता ने दो बार आमने-सामने होते देखा। जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) राष्ट्रीय जनता दल से उम्मीदवार थे, तो अश्विनी चौबे भाजपा के।

इन दोनों चुनाव में चौबे ने जगदानंद सिंह को पराजित करते हुए जीत अपने नाम कर ली। हालांकि, इस बार प्रत्याशी बदलते ही इन दो नेताओं की जोड़ी टूट गई और ये दोनों अब मैदान से बाहर हैं।

सासाराम में छेदी-मीरा की लड़ाई 

सासाराम संसदीय सीट (Sasaram Lok Sabha Seat) पर एक दौर में कांग्रेस की मीरा कुमार (Meira Kumar) का सामना छेदी पासवान (Chhedi Paswan) से होता रहा। 2014 और इसके बाद 2019 में इन दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा।

छेदी भाजपा उम्मीदवार थे, तो मीरा कांग्रेस की। हालांकि, दोनों बार मीरा कुमार को छेदी पासवान ने पराजित किया। इसके पूर्व सासाराम में ही मीरा कुमार का सामना भाजपा के मुनिलाल से होता रहा।

2004 और 2009 के दोनों लोकसभा चुनाव मेें ये दोनों आमने-सामने रहे। इन दोनों चुनावों में भाजपा उम्मीदवार मुनिलाल कांग्रेस की मीरा कुमार से पराजित रहे।

इस बार चुनाव मैदान में दोनों नेता नहीं हैं। अब भाजपा ने सासाराम संसदीय क्षेत्र से शिवेश राम, जबकि कांग्रेस ने सासाराम से मनोज कुमार को उम्मीदवार बनाया है।

औरंगाबाद सीट पर भी चर्चा में रहे ये दो नेता

औरंगाबाद संसदीय सीट (Aurangabad Lok Sabha Seat) पर भी दो नेताओं का मुकाबला हमेशा चर्चा में रहा। ये नेता हैं- निखिल कुमार और सुशील कुमार सिंह।

2004, 2009 और 2014 के तीनों लोकसभा चुनाव में ये दोनों नेता मैदान पर आमने-सामने होते रहे। 2014 में सुशील सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे, जबकि निखिल कुमार कांग्रेस के।

चुनाव में निखिल पराजित रहे। इसके पूर्व 2009 में सुशील सिंह ने कांग्रेस के निखिल कुमार को पराजित किया था। तब वे जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे।

2004 में भी दोनों नेता आमने-सामने थे। लेकिन तब कांग्रेस के निखिल कुमार ने जदयू के सुशील सिंह को पराजित किया था।

निखिल कुमार इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। हालांकि, सुशील कुमार भाजपा के उम्मीदवार जरूर हैं। वहीं, राजद के अभय सिंह कुशवाहा भी चुनावी मैदान में हैं।

पश्चिम चंपारण सीट के नेता

इसी तरह पश्चिम चंपारण सीट (West Champaran Lok Sabha Seat) पर दो बार दो नेता आमने-सामने हुए। 2009 में फिल्म निर्देशक प्रकाश झा लोजपा के टिकट पर, जबकि संजय जायसवाल (Sanjay Jaiswal) भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे।

इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दोनों नेता एक बार फिर आमने-सामने हुए। प्रकाश झा ने इस बार जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा, जबकि संजय जायसवाल फिर से भाजपा के उम्मीदवार थे।

लेकिन दोनों ही चुनाव में प्रकाश झा (Prakash Jha) बुरी तरह से पराजित रहे और इसी के साथ उन्होंने चुनावी राजनीति को अलविदा भी कह दिया।

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