हाईकोर्ट करेगा लॉकडाउन से पीडि़त वकीलों की मदद, शुरुआत मिथिला विश्‍वविद्यालय के जमा रुपयों से होगी

पटना हाईकोर्ट ने एक नई व्‍यवस्‍था शुरू की है। इसके जरिये वैसे वकीलों की मदद की जाएगी जो लॉकडाउन के दौरान आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं। ऐसे वकीलों को उन पैसों से मदद दी जाएगी जो अदालत को जुर्माना की रकम से मिलेंगे।

By Shubh NpathakEdited By: Publish:Sat, 14 Nov 2020 11:52 AM (IST) Updated:Sat, 14 Nov 2020 11:52 AM (IST)
हाईकोर्ट करेगा लॉकडाउन से पीडि़त वकीलों की मदद, शुरुआत मिथिला विश्‍वविद्यालय के जमा रुपयों से होगी
पटना हाईकोर्ट ने शुरू की है एक अनोखी पहल। जागरण

पटना, जेएनएन। पटना हाईकोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन से प्रभावित वकीलों की सहायता के लिए एक नई व्यवस्था की शुरुआत की है। फिलहाल अदालतों में काफी सीमि‍त कामकाज हो रहा है। यह स्थिति लगातार आठ महीने से है। इसके चलते वकील आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे वकीलों को कोर्ट की ओर से आर्थिक मदद मिलेगी। वकालत पेशे से प्रभावित वकीलों को जुर्माने की राशि आर्थिक सहायता मिलेगी। अदालती कार्यवाही में सुस्ती दिखाने वालों को जो जुर्माना लगाया जाएगा उसे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा खोले गए अकाउंट में जमा करना होगा। बाद में उसे जरूरतमंदों वकीलों को नए तरीके से वितरित किया जाएगा।

मिथिला विश्‍वविद्यालय के खिलाफ एक मामले से शुरुआत

न्यायाधीश ए अमानुल्लाह की एकल ने जब डॉ. जब राम सागर सिंह के एक मामले पर सुनवाई की तो ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर 20,000 का कॉस्ट लगाया। यह राशि विश्वविद्यालय को रजिस्ट्रार के पास बैंक ड्राफ्ट के रूप में जमा करना होगा। फिर रजिस्ट्रार को एक बैंक अकाउंट खोलना होगा, जिसमें सारी राशि जमा होगी।

सेवानिवृत्ति लाभांश के लिए दायर याचिका की चल रही सुनवाई

दरअसल याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्ति लाभांश के लिए एक याचिका दायर की थी, जिसपर 10 सितंबर को मामले पर पिछ्ली सुनवाई हुई थी, जिसमें अदालत ने साफ कर दिया था कि मिथिला विश्वविद्यालय को जवाब देने के लिए अंतिम समय दिया जा रहा है, यदि इस अवधि में भी हलफनामा दायर नहीं किया गया तो उन्हेंं जुर्माना देना होगा। साथ ही विश्वविद्यालय के संबंधित अधिकारियों को अवमानना के मामले भी झेलनी पड़ेगी।

विश्‍वविद्यालय ने तय समय पर नहीं दाखिल किया था जवाब

मामले पर गुरुवार को सुनवाई हुई तो मिथिला विश्वविद्यालय द्वारा कोई जवाब नहीं दाखिल किया गया, जबकि विश्वविद्यालय को यह बताना था कि सेवानिवृत्त प्रोफेसर को कितना दिया गया है और अभी तक कितना बकाया है। कोई जवाब नहीं मिलने के बाद अदालत लाचार होकर विश्वविद्यालय पर 20, 000 रुपये का आॢथक दंड लगा दिया गया, जिस अब अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।

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