धड़ल्ले से जारी है मिलावट का खेल

अरवल। हर जगह-जगह मिलावट ही मिलावट है। किचेन की सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ रही तो मिर्ची तीखापन नहीं दिखा रहा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 06 May 2019 12:12 AM (IST) Updated:Tue, 07 May 2019 06:34 AM (IST)
धड़ल्ले से जारी है मिलावट का खेल
धड़ल्ले से जारी है मिलावट का खेल

अरवल। हर जगह-जगह मिलावट ही मिलावट है। किचेन की सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ रही तो मिर्ची तीखापन नहीं दिखा रहा। अधिकांश हरी सब्जियां बाजारों में रंगी जाती है और तब जाकर लोगों के किचेन तक पहुंचती है। तेल और मसाले में मिलावट तो जैसे बाजारों में आम हो चली है। स्वीट कार्नरों के खोवा व छेना पर भी संशय की ही स्थिति बनी हुई है। यानि बाजार में आपूर्ति व संबंधित विभागों का नकेल नहीं दिख रहा और मिलावट का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। न तो कभी आपूर्ति विभाग इस ओर झांकने की जहमत उठाता है और नही स्वास्थ्य व फुड विभाग को इससे कोई लेना देना रहता है। नतीजा है कि उपभोक्ताओं की जेब ही नहीं कट रही बल्कि उसके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी हो रहा। ऐसा सुनने तक को नहीं मिलता है कि कभी किसी किराने की दुकान पर आपूर्ति विभाग ने या फिर स्वीट कार्नर पर स्वास्थ्य व फुड विभाग ने छापेमारी की हो। एक ओर टीवी चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाता है तो दूसरी ओर उपभोक्ता दिवस मना कर भी लोगों को इस दिशा में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। बावजूद विभागीय लापरवाही से उपभोक्ताओं की हकमारी तो हो ही जा रही है। सब्जी बाजार की ही स्थिति देखें तो सब्जी को तरो-ताजा दिखाने के लिए रंगों का प्रयोग कर उसे रंगा जाता है। खासकर हरी सब्जियां तो धड़ल्ले से रंग कर बेची जाती है। वहीं सब्जियां मजबूरन लोगों को खरीद कर घर ले जाना पड़ता है। इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। किराने मंडी की स्थिति पर गौर करें तो तेल से लेकर अन्य खाद्य पदार्थो में मिलावट का खेल धड़ल्ले से चलता है। खासकर मसाले आइटम में तो मिलावट ही मिलावट है। पिसे हुए मसाले में तो मिलावट बेहिसाब है। अब देखिए किचेन में सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ती है तो मिर्ची अपना तीखापन नहीं दिखा पाती। आखिर यह सब क्या है। मिठाई दुकान व स्वीट कार्नरों की स्थिति और भी खराब है। आपके सामने परोसे जाने वाले मिठाई शुद्ध खोवा छेना का है या फिर सिन्थेटिक कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं 15-15 दिन पुरानी मिठाई बाजारों में धड़ल्ले से बेची जाती है। आखिर ऐसे में स्वास्थ्य की क्या स्थिति होती होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे बड़ी विडंबना है कि इस ओर कभी न तो आपूर्ति विभाग सजग होता है और न तो स्वास्थ्य और फुड विभाग ही। लोग इन्हीं मिलावटी खेल के बीच दिनचर्या गुजार रहे हैं।

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