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    Jagannath Rath Yatra 2019: ओडिशा में इन 2 गांवों को देखने आते हैं दुनिया भर से दर्शक, जानें क्यों हैं खास

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Thu, 04 Jul 2019 11:40 AM (IST)

    Jagannath Rath Yatra 2019 भगवान जगन्नाथ की यात्रा में अब कुछ ही दिन शेष हैं और ओडिशा के पुरी की फिजाओं में कृष्ण भक्ति की रंगत चरम पर है। चलते हैं इसके सफर पर..

    Jagannath Rath Yatra 2019: ओडिशा में इन 2 गांवों को देखने आते हैं दुनिया भर से दर्शक, जानें क्यों हैं खास

    Jagannath Rath Yatra 2019: कृष्ण की नगरी पुरी घूमते हुए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा के अपने मौसी के घर जाने की भव्य यात्रा के महत्व के बारे में सुनते हुए दो गांवों की बहुत चर्चा सुनी थी। इसमें से एक का नाम है रघुराजपुर और दूसरा पीपली। दोनों गांव उत्कृष्ट कलात्मक वस्तुओं और उन्हें बनाने वालों कलाकारों के लिए जाने जाते हैं। रघुराजपुर में पटचित्रों का काम होता है और पीपली में चांदुआं और एपलिक वर्क का काम। सबसे अच्छी बात यह कि दोनों गांव भुवनेश्र्वर जाने के रास्ते में ही आते हैं। ऐसे में वहां जाने की इच्छा में कोई अड़चन भी नहीं होती। पुरी के सुमद्री किनारों से विदा लेते हुए वापस भुवनेश्र्वर एयरपोर्ट की ओर सुबह-सुबह यात्रा शुरू की।

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    रघुराजपुर गांव: पुरी से करीब 14 किमी. पर चंदनपुर गांव है। वहां से दो लेन की सड़क रघुराजपुर की तरफ मुड़ती है, जो यहां से तकरीबन डेढ़ किमी. की दूरी पर है। सड़क के दोनों ओर लगे सुपारी और नारियल के पेड़ों को पीछे छोड़ते हुए हम पांच मिनट में रघुराजपुर गांव पहुंच गए। गांव के बाहर सफेद रंग के दो स्वागत द्वार हैं, जिसके बीच में ही रामचंद्र जी का मंदिर है। हम वहां सुबह दस बजे पहुंचे। गांव में काफी चहलपहल दिख रही थी, शायद किसी समारोह की तैयारी चल रही थी। दो-तीन गाडि़यों के काफिले को देख गांव वाले आगंतुकों के स्वागत के लिए आगे बढ़े। उनके पीछे कुछ और कलाकार भी अपने घरों से निकलकर हमारी तरफ लपके। वे हमें गांव दिखाने और अपनी कलाकारी के बारे में बताने लगे। गांव ज्यादा बड़ा नहीं है। मेरे ख्याल से यहां तकरीबन डेढ़ सौ घर हैं और दो ही गली है। निगाहें गांव के घरों की दीवारें पर ठहरती हैं, जहां महीन कूचों की कलाकारी की मनमोहक तस्वीरें पौराणिक कथा सुनाती प्रतीत होती हैं। किसी दीवार पर शेषनाग पर बैठे कृष्णलीला का दृश्य है, कहीं गोपियों संग नृत्य करते कृष्ण दिखाई देते हैं, तो कहीं सफेद रंग से ही फूल-पत्ती और सुंदर जानवरों के चित्र उकेरे गए हैं। घर की छतों पर सोलर पैनल भी लगे हैं, जो हम सभी को सीख भी देते हैं। गांव की गली अंदर की तरफ ऊंची होती जाती है। यहां के हर घर का पहला कमरा नुमाइश के लिए खासतौर पर तैयार किया जाता है, इसलिए कमरों की खिड़कियों व किवाड़ों से पटचित्रों और छतों से लटकाई गई खूबसूरत आकर्षक वस्तुओं की झलक मिलती रहती है। करीब पचास घरों के बाद गली दूसरी ओर मुड़ जाती है। यहां गली में कुछ बुजुर्ग महिलाएं बाहर चौखट पर बैठी पर्यटकों को निहारती नजर आती हैं। इनमें से एक बुजुर्ग दादी आशी बताती हैं कि यह गांव सदियों से पटचित्र बनाने का काम करता रहा है। सुंदर पटचित्र बनाने में पूरा परिवार जुटता है। कुछ लोग यहां के लोकनृत्य गोतिपुआ में भी माहिर हैं। ओडिसी के मशहूर नर्तक केलुचरण महापात्र इसी गांव से हैं।

     

    नजरें आगे दौड़ती हैं, फिर इनके घर की बाहर की सजावट देखकर पैर खुद ब खुद घरों के अंदर दाखिल हो जाते हैं। कमरों में कैनवास और सिल्क के कपड़ों पर बने पटचित्रों के नायाब कलेक्शन के साथ, मास्क, सुपारी पर जगन्नाथ भगवान के चित्र, नारियल व पेपर मैश से बनी सुंदर कलाकृतियां मन को मोह लेती हैं। धैर्य से छोटे-छोटे कैनवास पर सधे हाथों से घंटों महीन ब्रश चलाते और उस मेहनत को मूर्त रूप लेते देखना भी अपने आप में अद्भुत अनुभव है। गांव के लोग जितने प्रतिभावान हैं, उतने ही मिलनसार भी हैं, चाहे आप उनसे कुछ खरीदें या नहीं। उनकी कला के मोल तो बस तारीफ के दो मीठे बोल ही हैं। जाते-जाते यहां के लोगों ने बताया कि रघुराजपुर का संबंध भगवान राम से है। कहा जाता है कि अयोध्या लौटते वक्त राम यहां ठहरे थे, इसलिए यहां आज भी भगवान राम की पूजा होती है। पटचित्रों में भी रामचंद्र की खास जगह है। यहां रघुराज का एक मंदिर भी है। यहां के लोगों के स्नेह और अद्भुत कलाकारी को यादों में कैद करते हुए हम आगे बढ़े।

    पीपली गांव: हमारा दूसरा पड़ाव पीपली गांव था, जहां एपलिक (कपड़ों को हाथों से सिलकर उस पर डिजाइनिंग और शीशे लगाने का पारंपरिक काम) और चांदुआ (झूमर, छोटे टेंट) का काम होता है। रघुराजपुर से करीब 30 किमी. आगे ही पीपली है। मुख्य सड़क से ही रंग-बिरंगी वॉल हैंगिंग, पर्स, थैले, छतरी, झूमर, चांदुआ की दुकानें शुरू हो जाती हैं।

    दुकानों में मशीनों पर बैठे कलाकार एपलिक सिलने का काम करते दिखाई देते हैं। साथ ही, कुछ महिलाएं दुकान संभालने के साथ एपलिक पर शीशे का काम करती नजर आती हैं। एपलिक वर्क में ज्यादातर कलाकार हाथी, मोर और शेर को जगह देते हैं। दुकानों की कतार में से एक दुकान के कलाकार सरोज माही बताते हैं कि पीपली गांव में सदियों से सुई-धागा से एपलिक का काम होता था, लेकिन अब ज्यादा मांग होने के कारण मशीनों से भी काम होने लगा है। पताकों की तरह हवा से बातें करतीं चांदुआ और छतरियां जगन्नाथ यात्रा में भी इस्तेमाल होती हैं। इन कलाकृतियों के साथ गांव के घर-आंगन भी खूबसूरत हैं। गांव के ज्यादातर घरों के पीछे नारियल और सुपारी के पेड़ हैं। वहां से गांव के खेत भी दिखाई देते हैं, जो दूर-दूर तक फैले हैं। यहां से खेतों में भी जाया जा सकता है और नारियल पानी का लुत्फ भी लिया जा सकता है और वह भी सिर्फ 30 रुपये में। प्राकृतिक मनोरम दृश्यों को यादों में कैद करते हुए हमें एयरपोर्ट की तरफ भी प्रस्थान करना था, सो गांव वालों से विदा लिया और वापस चल पड़े।

    पुरी रथ यात्रा

    पुरी में जगन्नाथ यात्रा 4 जुलाई से शुरू हो रही है। 12 दिनों तक चलने वाली इस वार्षिक रथ यात्रा को देखना एक अलग ही अनुभव होगा। पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा यात्रा पर निकलते हैं। यह ओडिशा के मशहूर उत्सव में से एक है।

    कैसे पहुंचें?

    भुवनेश्र्वर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से क्रमश: 30 और 60 किमी. की दूरी पर हैं ये दोनों गांव। ट्रेन से भी पहुंचने की व्यवस्था है। भुवनेश्र्वर और पुरी में रेलवे स्टेशन हैं, जहां से बस, टैक्सी के जरिए वहां जाया जा सकता है।

    कहां ठहरें?

    भुवनेश्र्वर और पुरी में कई होटल हैं, जहां रुका जा सकता है। नॉनवेज खाने वालों के लिए यहां कई विकल्प हैं, पर वेज खाने वाले भी निराश न हों, वे सब्जी वाली दाल और आलू पोस्ता का आनंद ले सकते हैं।

    विजयालक्ष्मी