दक्षिणेश्वर काली मंदिर में दर्शनमात्र से पूरी होती हैं सभी मुरादें, आस्था और इतिहास का है अनोखा संगम
देशभर में देवी के कई मंदिर हैं जो अपनी-अपनी महत्ता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इनमें दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Dhakhineshwar Kali Temple) का अपना अलग स्थान है। कोलकाता में स्थापित यह मंदिर न सिर्फ लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है बल्कि बंगाली संस्कृति और इतिहास की भी झलक देता है। आइए जानें इस मंदिर की खासियत।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कोलकाता से कुछ ही दूरी पर, गंगा नदी के पूर्वी तट पर स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Dakshineshwar Kali Temple) पूरे देशभर में अपनी महत्ता के लिए जाना जाता है। मां काली को समर्पित यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि बंगाल की संस्कृति और स्थापत्य कला का भी प्रतीक है।
इस मंदिर का भव्य रूप, पौराणिक महत्व और इतिहास इतना रोचक है कि दूर-दूर से श्रद्धालू इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। माना जाता है कि यहां देवी के दर्शनमात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसे में नवरात्र के शुभ अवसर पर आप भी इस मंदिर के दर्शन करने जा सकते हैं। आइए जानें कैसे और इस मंदिर की खासियत क्या है।
(Picture Courtesy: Instagram)
कैसे हुआ था मंदिर का निर्माण?
दक्षिणेश्वर मंदिर की नींव 19वीं शताब्दी में रानी रासमणि ने रखी थी। ऐसा माना जाता है कि वे वाराणसी जाकर मां काली की पूजा करना चाहती थीं, लेकिन सपने में देवी ने उन्हें गंगा किनारे एक भव्य मंदिर बनवाने का आदेश दिया। रानी ने लगभग 20 एकड़ भूमि खरीदी और वर्ष 1847 में मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई। आठ सालों की मेहनत के बाद 31 मई 1855 को मंदिर का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर एक लाख से ज्यादा ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया था।
मंदिर की विशेषताएं क्या हैं?
यह मंदिर नव-रत्न शैली की बंगाली वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। मुख्य मंदिर तीन मंजिला है और इसके ऊपर नौ शिखर बने हैं। गर्भगृह में देवी काली "भवतरिणी" के रूप में विराजमान हैं, जो भगवान शिव के वक्ष पर खड़ी दिखाई देती हैं। यह मूर्ति एक हजार पंखुड़ियों वाले चांदी के कमल पर स्थापित है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाता है।
मंदिर के चारों ओर 12 छोटे-छोटे शिव मंदिर बने हैं, जिनमें काले पत्थर से बने शिवलिंग स्थापित हैं। इसके अलाव, मंदिर परिसर में राधा-कृष्ण का भी एक सुंदर मंदिर है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह मंदिर केवल पूजा का स्थान ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक साधना का भी केंद्र है। संत श्रीरामकृष्ण परमहंस ने यहां 14 साल तक तपस्या की थी। पंचवटी, बकुलतला घाट और नहबात खाना जैसी जगहें उनके आध्यात्मिक जीवन की कहानी बयां करती हैं।
रानी रासमणि ने इस मंदिर को सभी धर्मों और जातियों के लिए खोला था। यही कारण है कि आज भी यहां हर व्यक्ति, चाहे उसका धर्म कोई भी हो, शांति और सुकून पाने आता है।
पहुंचने का रास्ता
दक्षिणेश्वर मंदिर तक पहुंचना बेहद आसान है। यह कोलकाता रेलवे स्टेशन से लगभग 14 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन कोलकाता रेलवे स्टेशन है और सबसे नजदीकी हवाई अड्डा नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
- दर्शन का समय- सुबह: 6:30 बजे से शाम: 7:30 बजे तक
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