एक नहीं, 7 झीलों का शहर है नैनीताल! मगर क्या आप जानते हैं कैसे और क्यों पड़ा इसका नाम?
नैनीताल कुमाऊं हिमालय में 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक खूबसूरत शहर है। यह सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है और नैनी झील के किनारे बसा है। यहां घूमने के लिए एक से एक जगहें मौजूद हैं। यही कारण है कि यहां सालों साल पर्यटकों की जबरदस्त भीड़ देखने को मिलती है। इसे झीलों का शहर (City Of Lakes- Nainital) भी कहा जाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। घूमने-फिरने का शौक भला किसे नहीं है। भारत में कई ऐसे हिल स्टेशंस हैं जहां लोगों की जबरदस्त भीड़ देखने को मिलती है। भारत में जब भी Hill Stations की बात होती है तो सबसे पहले नैनीताल और शिमला-मसूरी का नाम जरूर लिया जाता है। नैनीताल की बात करें तो यहां पर घूमने के लिए एक से एक जगहें मिल जाएंगी। ये बेहद ही खूबसूरत पहाड़ी इलाका है।
नैनीताल, ये प्यारा सा पहाड़ी झील वाला शहर है। ये नॉर्थ इंडिया के सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है। इसे आमतौर पर 'लेक सिटी' यानी 'झीलों का शहर' कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस जगहें की खोज किसने की, इसका नाम कैसे नैनीताल पड़ा, इसे सिटी ऑफ लेक्स क्यों कहा जाता है? आज का हमारा लेख भी इसी विषय पर है। हम आपको नैनीताल के दिलचस्प इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से -
2000 मीटर की ऊंचाई पर बसा है नैनीताल
आपको बता दें कि नैनीताल, कुमाऊं हिमालय में करीब 2000 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। ये खूबसूरत शहर सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन्हें ‘सप्त-श्रृंग’ कहा जाता है। इसमें अयारपाटा, देवपाटा, हांडी-बांडी, नैना, अल्मा, लारिया-कांटा और शेर का डांडा जैसे कई पहाड़ शामिल हैं। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और झील का चमचमाता पानी इस जगह की सुंदरता को और भी बढ़ा देता है।
Image Credit- Instagram/withlavish
यहां गिरी थीं देवी सती की आंखें
ये शहर हरे-भरे पहाड़ों के बीच फैली हुई हरे रंग की नैनी लेक के चारों ओर बसा है। यहां आपको अक्सर रंग-बिरंगी नावें चलती दिखाई दे जाएंगी। पौराणिक मान्यता है कि नैनी झील उस समय बनी थी जब देवी सती की आंखें इस जगह पर गिरी थीं। ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव जब उनके शव को लेकर घूम रहे थे, उसी दौरान देवी सती की आंखें गिर गईं थीं।
ऐसे पड़ा नैनीताल नाम
इसी वजह से यहां की देवी नैना देवी बनीं। कहा जाता है कि ये झील आंख के आकार में बनी है। नैना देवी मंदिर इस झील के उत्तर दिशा (ऊपर वाले किनारे) पर बना हुआ है। इस तरह 'नैनीताल' नाम 'नैना' (आंख) और 'ताल' (झील) को मिलाकर रखा गया है। ये जगह 64 शक्ति पीठों में से एक है।
नैनीताल में है बेहद शांति
कहा जाता है कि ब्रिटिश काल के दौरान ये शहर यूनाइटेड प्रोविंसेज का Summer Capital था। इस शहर में आज भी अंग्रेजों के समय के सुंदर बंगले और विला मौजूद हैं। अपने देश को याद करने वाले अंग्रेज इस शांति भरे और पेड़ों से ढंके शहर में आना पसंद करते थे। ये जगह फेमस नैना देवी मंदिर के लिए भी जानी जाती है, जो झील के किनारे पर बना हुआ है।
Image Credit- Instagram/nainital.india
स्कंद पुराण में भी है जिक्र
पौराणिक मान्यता है कि नैनीताल का नाम 'मानस खंड' (जो कि 'स्कंद पुराण' का हिस्सा है) में त्रि-ऋषि-सरोवर के रूप में लिया गया है। ये नाम तीन ऋषियों- अत्रि, पुलस्त्य और पुलह के कारण पड़ा। जो तपस्या के लिए यहां पर आए हुए थे। जब उन्हें पीने के लिए यहां पानी नहीं मिला, तो उन्होंने एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसरोवर झील (तिब्बत की पवित्र झील) का पानी लाकर भर दिया। तभी से ये झील बन गया।
यह भी पढ़ें: राजा की एक अनोखी सोच ने बदल दी थी पूरे शहर की पहचान, क्या आप जानते हैं कैसे Pink City बना जयपुर?
क्यों कहा जाता है झीलों का शहर?
आपको बता दें कि नैनीताल में सात झील हैं। इसी कारण इसे झीलों का शहर कहा जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि अभी तक तो सिर्फ नैनी लेक यानी कि नैनी झील को ही सुनते और देखते आए हैं। तो हम आपको सातों झील के नाम बताने जा रहे हैं-
- सत्तल झील (Sattal Lake)
- सरियाताल (Sariyatal)
- खुरपाताल झील (KhurpaTal Lake)
- नौकुचियाताल झील (Naukuchiatal Lake)
- भीमताल झील (Bhimtal Lake)
- कमलताल (KamalTal)
- गरुड़ ताल (Garud Tal)
कैसे मिली पहचान?
नैनीताल के इतिहास की बात करें ताे ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने 1815 में कुमाऊं और गढ़वाल का कब्जा ले लिया था। इसके बाद ई गार्डिनर को 8 मई 1815 को कुमाऊं डिवीजन का कमिश्नर बनाया गया। 1817 में दूसरे कमिश्नर जी डब्ल्यू ट्रेल ने टैक्स और जमीन का दूसरा सर्वे कराया। वो नैनीताल आने वाले पहले यूरोपियन थे, लेकिन उन्होंने अपने आने का प्रचार नहीं किया क्योंकि वे इस जगह की धार्मिक अहमियत का सम्मान करते थे।
Image Credit- Instagram/withlavish
1847 तक बन चुका था फेमस टूरिस्ट प्लेस
1839 की बात है जब रोजा नाम की जगह के एक अंग्रेज व्यापारी पी बैरन, जो चीनी का व्यापार करते थे, अपने शिकारी दोस्त के साथ शिकार करते हुए इन पहाड़ों में रास्ता भटक गए थे। रास्ता ढूंडते हुए वो इस झील तक पहुंचे तो उसकी खूबसूरती देखकर मोहित हाे गए। उन्होंने अपना बिजनेस छोड़ दिया और झील के किनारे ही एक यूरोपियन कॉलोनी बसा ली। 1841 से लोग इसके बारे में जानने लगे और 1847 तक ये पूरी दुनिया में एक फेमस टूरिस्ट स्पॉट के रूप में फेमस हो चुका था।
यहां मौजूद है सब कुछ
इसके बाद शहर का तेजी से विकास हुआ। यहां सुंदर बंगले बनाए गए। बाजार से लेकर रेस्ट रूम, क्लब, खेल और मनोरंजन की जगहें और सरकारी दफ्तर भी बना दिए गए। उस दौरान इस शहर में दूर-दूर से लोग पढ़ने आते थे। क्योंकि ज्यादातर बच्चे मैदानों की गर्मी से दूर एक पहाड़ी इलाके में पढ़ना चाहते थे। जहां उन्हें साफ-सुथरा और अच्छा वातावरण मिल सके।
यह भी पढ़ें: झरनों की खूबसूरती में खो जाने का है मन? तो इस मानसून में घूम आइए Rewa, नजारे देख भूल जाएंगे सबकुछ
Source-
- https://nainital.nic.in/history/
- https://uttarakhandtourism.gov.in/destination/nainital
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।