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    किसी चमत्कार से कम नहीं है मेघालय का Living Root Bridge, जहां प्रकृति और संस्कृति का होता है संगम

    मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज केवल रास्ता पार करने का जरिया नहीं हैं बल्कि ये यहां की विरासत संस्कृति और प्रकृति से जुड़ी कहानी को भी बयां करते हैं। ये पुल सिखाते हैं कि तकनीक के बिना भी इंसान बहुत कुछ कर सकता है। अगर प्रकृति के साथ मिलकर काम क‍िया जाए ताे सब कुछ संभव है।

    By Vrinda Srivastava Edited By: Vrinda Srivastava Updated: Fri, 02 May 2025 11:53 AM (IST)
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    मेघायल की खूबसूरती हैं ये पुल। (Image Credit- Meghalaya Tourism)

    लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। भारत को वि‍वि‍धता का देश कहा जाता है। यहां घूमने के ल‍िए कई सुंदर जगहें मौजूद हैं। वहीं कई रेलवे स्‍टेशन और एयरपोर्ट भी खूबसूरती को संजोए हुए हैं। हालांक‍ि, दुनिया भर में कई सुंदर पुल भी हैं जिनकी खूबसूरती की हर कोई सराहना करते नहीं थकता है। वैसे तो पुल बनाने का काम इंजीन‍ियरों का हाेता है। लेक‍िन भारत में एक ऐसा पुल है जि‍से प्रकृत‍ि और आद‍िवास‍ियों ने बनाया है।

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    इस अद्भुत पुल को देख कर हर कोई दंग रह जाता है। इस पुल को बनाने के लिए कोई सीमेंट या आयरन रॉड की जरूरत नहीं होती है। यह ब्रिज पेड़ की जड़ों से बनाया जाता है। इसलिए इसे लिविंग रूट ब्रिज कहा जाता है। ये ब्रि‍ज कहीं और नहीं, बल्कि भारत के मेघालय राज्‍य में स्‍थ‍ित हैं। ऐसा लगता है जैसे मेघालय को प्रकृति ने खुद अपने हाथों से सजाया है।

    100 साल से भी ज्‍यादा पुराने हैं ये ब्र‍िज

    इसका जीता-जागता उदाहरण मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज (Living Root Bridge) हैं। ये 100 साल से भी ज्‍यादा पुराने हैं। अपनी सुंदरता और अनूठेपन के ल‍िए इन ब्र‍िजों को 2022 में World Heritage Sites की टेंटेटिव लिस्ट में शाम‍िल क‍िया गया। UNESCO ने इन पुलों को “जिंगकिएंग जरी” (Jingkieng Jri) नाम से मान्यता दी है। इसका मतलब होता है- “जीवित जड़ों से बना पुल”।

    आज भी मजबूती से खड़े हुए हैं ये ब्र‍िज

    आपको बता दें क‍ि ये कोई आम पुल नहीं हैं, बल्कि पेड़ की जड़ों से बने होते हैं और वह भी पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से। इन पुलों को खासी और जयंतिया जनजातियों ने कई सालों की मेहनत से तैयार किया है। ये पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी मजबूती से खड़े हुए हैं। इस अनोखी कला की वजह से अब ये पुल दुनिया के सामने एक मिसाल बन गए हैं।

    Image Credit- Meghalaya Tourism

    क्या होता है लिविंग रूट ब्रिज?

    लिविंग रूट ब्रिज यानी ऐसा पुल जो पेड़ की जड़ों से तैयार किया गया हो। इन पुलों को रबर के पेड़ की मोटी जड़ों (जिसे वैज्ञानिक भाषा में Ficus elastica कहते हैं) को एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैलाकर बनाया जाता है। इन जड़ों को धीरे-धीरे कई सालों तक एक खास दिशा में मोड़ते हैं, ताकि वह पुल का आकार ले सके। इसे बनाने में 15 से 20 साल लगते हैं, लेकिन एक बार बन जाने के बाद ये पुल 500 साल तक भी टिक सकते हैं।

    कहां हैं ये पुल?

    ऐसा कहा जाता है कि मेघालय का सबसे लंबा लिविंग रूट ब्रिज 175 फीट लंबा है। यहां अलग-अलग गांवों में लगभग 100 या उससे ज्‍यादा लिविंग रूट ब्रिज हैं। लिविंग रूट ब्रिज मेघालय के चेरापूंजी, मावलीननॉन्ग, नोंग्रियात और जयंतिया हिल्स जैसे इलाकों में फेमस हैं।

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    नोंग्रियात गांव में दो मंज‍िला पुल

    इनमें सबसे मशहूर है “डबल डेकर रूट ब्रिज” जो दो मंजिला पुल की तरह दिखता है। यह पुल नोंग्रियात गांव में मौजूद है और देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। यहां पर्यटकों की भीड़ देखने को म‍िलती है। फोटोग्राफी के शौकीनों के ल‍िए ये जगह क‍िसी स्‍वर्ग से कम नहीं है।

    Image Credit- Meghalaya Tourism

    क्यों खास हैं ये पुल?

    • पूरी तरह से प्राकृतिक: इनमें सीमेंट, लोहा या मशीन का इस्तेमाल नहीं क‍िया जाता है।
    • टिकाऊ और मजबूत: ये पुल समय के साथ और मजबूत होते जाते हैं।
    • पर्यावरण के अनुकूल: यह किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।
    • स्थानीय संस्कृति का हिस्सा: ये पुल स्‍थानीय लोगों की परंपरा और प्रकृति से जुड़ाव को दिखाते हैं।
    • पर्यटन का आकर्षण: हर साल देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ यहां पहुंचती है।

    स्थानीय लोग और उनकी कला

    ये पुल न केवल उन इलाकों की सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि वहां के विकास और खुशहाली में भी सहायक होते हैं। इन पुलों को बनाने की कला खासी और जयंतिया जनजातियों के बुजुर्गों से अगली पीढ़ी तक पहुंचती है। ये स‍िर्फ एक पुल नहीं, बल्कि पहां की परंपरा है। इसे जीव‍ित रखने की ज‍िम्‍मेदारी स्‍थानीय लोगों की है। अगर आप कभी मेघालय जाएं, तो इन जीवित पुलों को जरूर देखने जाएं। यह अनुभव आपकी जिंदगी का सबसे यादगार हिस्सा बन सकता है।

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    Source-

    • https://www.meghalayatourism.in/experiences-4/living-root-bridges/
    • https://whc.unesco.org/en/tentativelists/6606/