दुनिया का इकलौता शक्तिपीठ, जहां देवी ने काटा था अपना ही सिर; नवरात्र में आप भी बनाएं दर्शन का प्लान
जब हम देवी के शक्तिपीठों का जिक्र करते हैं तो असम के कामाख्या मंदिर का नाम कई लोगों की जुबां पर आता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि झारखंड में भी एक ऐसा ही अद्भुत और रहस्यमयी शक्तिपीठ है? जी हां हम बात कर रहे हैं रजरप्पा में स्थित मां छिन्नमस्ता के मंदिर की जिसे दुनिया के सबसे बड़े शक्तिपीठों में गिना जाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Navratri Temples 2025: भारत की धरती देवी-देवताओं के रहस्यमयी और प्राचीन मंदिरों से भरी हुई है। झारखंड के रजरप्पा में स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर इन्हीं में से एक है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन की दृष्टि से भी अनोखा एहसास देता है। शारदीय नवरात्र के पावन दिनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है और मंदिर परिसर भक्ति और उत्साह से गूंज उठता है। आइए, जानते हैं मां के इस शक्तिशाली शक्तिपीठ (Maa Chinnamasta Shaktipeeth) से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में।
दस महाविद्याओं में से एक स्वरूप
देवी की दस महाविद्याओं का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। इनमें मां तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला के साथ मां छिन्नमस्ता भी शामिल हैं। यह महाविद्याओं की छठी देवी मानी जाती हैं और रजरप्पा का मंदिर इन्हीं को समर्पित है।
कैसा है मां का स्वरूप?
मंदिर के गर्भगृह में मां का जो स्वरूप स्थापित है, वह भक्तों के मन में विस्मय और श्रद्धा दोनों जगाता है। देवी अपने दाहिने हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर धारण किए हैं। उनके शरीर से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित होती दिखती हैं- दो धाराएं उनकी सहचरियों डाकिनी और शाकिनी (जया और विजया) को समर्पित हैं और तीसरी धारा स्वयं देवी ग्रहण करती हैं।
मां कमल पुष्प पर खड़ी हैं और उनके चरणों के नीचे कामदेव और रति की प्रतिमा अंकित है। गले में मुंडमाला, सर्पमाला और खुले केशों वाला यह रूप शक्ति, त्याग और अद्भुत बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
देवी ने क्यों काटा अपना सिर?
मां छिन्नमस्ता के प्रादुर्भाव से जुड़ी एक रोचक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार मां भगवती अपनी सहचरियों जया और विजया के साथ नदी में स्नान कर रही थीं, तभी उनकी सहचरियों को अचानक तेज भूख लगी और उन्होंने भोजन की याचना की।
मां ने उन्हें थोड़ी प्रतीक्षा करने को कहा, लेकिन उनकी असहनीय भूख को देखकर भगवती ने तुरंत अपने खड्ग से अपना सिर काट लिया। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हुआ। दो धाराओं से सहचरियों ने तृप्ति पाई और तीसरी धारा स्वयं मां ने ग्रहण की। उसी क्षण मां छिन्नमस्ता का प्राकट्य हुआ। यह कथा देवी के असीम त्याग और करुणा को दर्शाती है। वह बताती हैं कि माता अपने भक्तों की जरूरतें पूरी करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।
कैसे पहुंचे मां छिन्नमस्ता मंदिर?
हवाई मार्ग
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, रांची है, जो लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से टैक्सी या बस द्वारा आसानी से रजरप्पा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग
रामगढ़ कैंट रेलवे स्टेशन और बोकारो रेलवे स्टेशन इस मंदिर के नजदीकी प्रमुख स्टेशन हैं। यहां से ऑटो, टैक्सी या लोकल बस से मंदिर तक जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग
रजरप्पा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। रांची, बोकारो, हजारीबाग और धनबाद जैसे प्रमुख शहरों से यहां तक सीधी बस सेवाएं और टैक्सी उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से यात्रा सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय विकल्प है।
ठहरने की सुविधा
मंदिर के आसपास धर्मशालाएं और कुछ गेस्टहाउस उपलब्ध हैं। रांची, रामगढ़ और बोकारो जैसे बड़े शहरों में बेहतर होटल और रिसॉर्ट्स की सुविधा मिल जाती है।
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