भगवान शिव के पुराने मंदिर इस जगह को बनाते हैं खास, रोज़ाना हजारों की तादाद में आते हैं श्रद्धालु
भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला के कारण बटेश्वर की अलग पहचान है। भाजपा के संस्थापक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मस्थान भी माना जाता है। चलते हैं आज इसके सफर पर।
फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट के लिए यह मेरी चुनावी यात्रा थी, जो आगरा से शुरू हुई। मैं पहली बार बटेश्वर जा रहा था। मस्तिष्क में इस स्थान के बारे में जो एक काल्पनिक छवि दर्ज थी, उसमें बसी असंख्य लघु आकृतियां इन्हीं दो विशिष्टताओं (अटल और शिव मंदिर श्रृंखला) के आधार रंगों से विकसित हुई थीं। आगरा में पता चला कि बटेश्वर के लिए कोई बस सेवा नहीं है। मैंने कार से ही सफर शुरू किया। साथ में कुछ स्थानीय साथी थे।
समृद्ध मंदिर श्रृंखला
बाह से 11 किमी. का रास्ता तय कर जब हम बटेश्वर में दाखिल हुए तो गंतव्य पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मस्थली (हालांकि कुछ प्रमाणपत्रों में ग्वालियर दर्ज है) उनका पैतृक निवास था, लेकिन बटेश्वर में प्रवेश करते ही नज़र अचानक एक समृद्ध मंदिर श्रृंखला की ओर मुड़ जाती है। एक पल में पूर्व में मस्तिष्क में बसी छवि से निकलकर कई आकृतियां इधर-उधर कूदना शुरू कर देती हैं और नई आकृतियां स्थिर होने लगती हैं। बटेश्वर आगरा से 70 किमी. पूर्व में कालिंदी (यमुना) के उत्तरी तट पर स्थित है, जहां यमुना कई किमी. उल्टी यानी पूर्व से पश्चिम की ओर बहकर एक पुराने बांध को छूकर पुन: अपनी दिशा पकड़ती है। बरसात के दौरान बाढ़ आने पर यह 380 अंश का कोण बनाकर पूरे क्षेत्र को टापू में तब्दील कर देती है। मानो, कालिंदी प्रकृति पुत्र बटेश्वर को आलिंगनबद्ध कर रही हो। हालांकि इससे मंदिरों के घाटों को नुकसान पहुंच रहा है और देख-रेख व सरकारी चिंता के अभाव में वह अपनी पहचान खोते जा रहे। 101 (कुछ लोग 108 बताते हैं) मंदिरों की श्रृंखला केवल संक्षिप्त सूचना भर रह जाती है, जो किंवदंती से अधिक कुछ नहीं।
मंदिर श्रृंखला निर्माण से जुड़ी किंवदंतियां
आसपास कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, लेकिन सबका सार यही है कि नागर शैली के इन खूबसूरत शिवमंदिरों का निर्माण भदावर के राजघराने ने कराया। यमुना की धारा के उल्टी बहने का प्रसंग भी इस राजवंश के साथ जुड़ा है। सबसे प्रचलित किंवदंती है कि एक बार भदावर के राजा शिकार पर थे। जिस शेर का शिकार किया वह घायल होकर भागते-भागते चौहान राजाओं की सीमा में चला गया। पीछे-पीछे भदौरिया राजा भी। सीमाक्षेत्र का विवाद खड़ा हो गया और नौबत युद्ध की आ गई। पुरोहितों और मंत्रियों के परामर्श से तय हुआ कि शत्रुता के बजाय मित्रता का संबंध जोड़ा जाए। बात पक्की हुई कि संतानोत्पत्ति के बाद दोनों राजघराने समधी का रिश्ता जोड़ लेंगे। विवाद को विराम मिला किंतु संयोग से दोनों परिवारों में कन्या पैदा हुई। भदावर के राजा ने यह खबर भिजवा दी कि उनके यहां पुत्र पैदा हुआ है। फेंटा और कटार भेजकर चौहान परिवार की कन्या से विवाह करा दिया। जब उम्र हुई और विदाई के बाद कन्या ससुराल आई तो राज खुला। चौहानों ने घेरा डाल दिया। भदावर परिवार की कन्या ने यह मानकर कि विवाद की जड़ वही है, यमुना में छलांग लगा दी जहां शिवजी ने साक्षात प्रकट होकर उसे पुत्र रूप में संबोधित किया। चमत्कार यह कि कन्या ने स्वयं को देखा तो अब वह कन्या नहीं थी। आग्रह पर शिवजी प्रकट होकर तट के ऊपर जिस स्थान तक आए और फिर वहीं स्वत: स्थापित हो गए वह बटेश्वर नाथ का धाम हो गया। बाद में भदावर के राजा ने यहां यमुना तट पर बटेश्वर नाथ के साथ 101 मंदिरों का निर्माण कराया। यहां कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रत्येक वर्ष बड़ा मेला लगता है जिसका मुख्य आकर्षण पशु मेला भी है।
बटेश्र्वर मंदिर की मान्यता
मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। लोग यहां घंटा चढ़ाकर मनौती मानते हैं। 50ग्राम से पांच क्विंटल तक के घंटे चढ़ाये जा चुके हैं, जो ज्यादातर आगरा के ही एटा से लगते जलेसर क्षेत्र में बनते हैं। यहां चंबल के सर्वाधिक चर्चित और हिंदी फिल्मों की दस्यु आधारित फीचर फिल्मों के प्रेरणास्त्रोत डाकू मानसिंह का चढ़ाया घंटा भी मौजूद है। बटेश्वर एक बड़ा प्राचीन गांव है, जो टीलों में बसा है। आसपास का वन क्षेत्र, मंदिरों के घाट और आंचल की तरह फैली यमुना मन में जो आध्यात्मिक भाव जगाती है, वह महानगरीय आपाधापी से क्षणिक छुटकारा पाकर प्रकृति की गोद में विश्राम चाहने वालों के लिए अनमोल उपहार से कम नहीं। यहां से 20 किमी. दूरी तय कर चंबल सफारी का आनंद लिया जा सकता है। यहीं राजमाता का भव्य मंदिर भी है।
बेहद कम दूरी पर ही भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव और पूर्वज सूरसेन की राजधानी शौरिपुर रही है। यहीं 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ जी का जन्म हुआ। बटेश्वर इसी राजधानी का हिस्सा रहा। इन स्थानों को संरक्षित और विकसित कर यदि पर्यटकों को यहां का पता बताया जाए, तो देश ही नहीं बड़ी संख्या में यूरोपीय-अमेरिकी पर्यटकों का यह पसंदीदा स्थल बन सकता है। बटेश्वर और आसपास के क्षेत्र को आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनाने के लिए यहां रोड कनेक्टिविटी बढ़ाने की दरकार है और सीमित रूप से ही सही सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को भी सुदृढ़ करना होगा। अकेले बटेश्वर में प्रतिदिन डेढ़-दो हजार तीर्थयात्री आते हैं, जिनमें आधे से अधिक मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से आते हैं, लेकिन इनके ठहरने और भोजन की उचित व्यवस्था नहीं है। यहां राही पर्यटक आवास गृह भी है, लेकिन बताते हैं कि जब यह बना तो सभी सुविधाओं से युक्त था किंतु अब केवल चौकीदार टिकता है। रात्रि विश्राम के लिए कुछ धर्मशालाएं और गेस्ट हाउस। यह पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो तो पूरे क्षेत्र का भाग्य बदल सकता है। यह क्षेत्र आगरा जिले की सबसे पिछड़ी तहसील बाह में आता है। इसके एक सिरे पर चंबल नदी बहती है, तो दूसरे पर यमुना। आगरा से बाह होते हुए पहले मैं जिस गांव में गया वह चंबल नदी के किनारे का गांव ही था। आसपास सघन वन क्षेत्र है, खास तौर पर बटेश्वर में यमुना के दक्षिणी तट पर या चंबल में समीपवर्ती भिंड, मुरैना की ओर। यहीं अटेर का किला भी है, जिसके जीर्णोद्धार के प्रयास चल रहे हैं। यदि यातायात सुगम हो और रात्रिविश्राम की सहूलियत मिले तो यहां की नैसर्गिक अनछुई खूबसूरती किसी को भी मुग्ध कर सकती है।
मिटते अटल निशां
बटेश्वर में 15 मुहल्ले हैं। जिस मुहल्ले में अटल जी का पैतृक स्थान है, वह एक ऊंचे टीले पर है। अटल जी का पुस्तैनी घर तो अब अवशेष रूप में ही विद्यमान है किंतु उनके संबंधियों राकेश वाजपेयी व अन्य भतीजों, पौत्रों के आवास अब भी हैं। अटल जी का परिवार ज्ञान और पौरोहित्य की विरासत से जुड़ा रहा। संबंधी बताते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब अटल जी जेल गए, तो कोर्ट कचेहरी के दस्तावेजों में उनका जन्मस्थान ग्वालियर भी दर्ज हो गया, जहां उनके पिता शिक्षक थे। बाद के दिनों में अटल जी भी ग्वालियर रहे और फिर राष्ट्र निर्माण और राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा बनकर भ्रमण करते हुए पूरे देश के हो गए। अटल जी अवशेष रूप में विद्यमान घर के पास ही उनकी कुल देवी का मंदिर है और टीले पर ही उनकी स्मृति में रोपा गया पौधा है, जो अब सूख चुका है। इस क्षेत्र को संवारा जाए तो यह स्वयं में एक तीर्थ बन सकता है।
अजय शुक्ला
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