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    Gen Z के बीच फेमस है Floodlighting का खतरनाक चलन! विक्टिम कार्ड के भरोसे अटेंशन की चाहत रख रहे लोग

    Updated: Sun, 09 Mar 2025 09:16 PM (IST)

    आजकल सोशल मीडिया पर Floodlighting नाम का एक नया ट्रेंड जोर पकड़ रहा है। खासकर Gen Z के बीच यह चलन काफी पॉपुलर हो चुका है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि अटेंशन पाने के इस तरीके (Toxic Dating Trend) में लोग अपनी जिंदगी की हर छोटी-बड़ी परेशानी को सोशल मीडिया पर डालकर सहानुभूति बटोरने की होड़ में लगे हुए हैं?

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    क्या होता है Floodlighting और Gen Z के बीच क्यों फेमस हो रहा है इसका ट्रेंड? (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Floodlighting: सोशल मीडिया पर आपने अक्सर ऐसे पोस्ट देखे होंगे- "कोई नहीं समझता मुझे..." या "मैं अंदर से पूरी तरह टूट चुका/चुकी हूं..." और फिर उस पर हजारों लाइक्स, कमेंट्स और "Stay strong" जैसे रिप्लाईज़ की बौछार। लेकिन क्या ये पोस्ट सच में दर्द बयां कर रही होती हैं, या यह सिर्फ ऑनलाइन अटेंशन पाने का नया तरीका है?

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    आजकल Gen Z के बीच फ्लडलाइटिंग नाम का एक नया ट्रेंड छाया हुआ है, जिसमें लोग अपनी निजी परेशानियों को बढ़ा-चढ़ाकर सोशल मीडिया पर डालते हैं- कभी सच्चाई के साथ, तो कभी सिर्फ सहानुभूति और लाइक्स पाने के लिए। विक्टिम कार्ड खेलकर अटेंशन इकॉनमी में अपनी जगह बनाने का यह नया तरीका सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है।

    हालांकि, क्या यह ट्रेंड सच में मेंटल हेल्थ अवेयरनेस बढ़ाने के लिए है, या फिर बस एक हाई-एंगेजमेंट कंटेंट स्ट्रेटेजी? आइए, इस खतरनाक चलन के पीछे की सच्चाई को समझते हैं।

    क्या होता है Floodlighting?

    फ्लडलाइटिंग एक तरह की ऑनलाइन oversharing है, जहां लोग अपनी निजी परेशानियों और इमोशनल स्ट्रगल को सोशल मीडिया पर खुलकर शेयर करते हैं। इसे एक कन्फेशन ट्रेंड भी कह सकते हैं, लेकिन असली मकसद सिर्फ sympathy और validation पाना होता है।

    इस ट्रेंड में लोग अपने दुख, ट्रॉमा और रिश्तों की दिक्कतों को इस तरह से पेश करते हैं कि देखने वाले को लगे कि वे बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। अक्सर, यह पोस्ट्स इतनी नाटकीय होती हैं कि इनके पीछे छिपा मकसद अटेंशन ग्रैब करना ही लगता है।

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    फ्लडलाइटिंग और विक्टिम कार्ड

    आज की डिजिटल दुनिया में विक्टिम कार्ड खेलना आम बात हो गई है। अगर किसी को सोशल मीडिया पर अटेंशन चाहिए, तो उसे बस अपनी लाइफ की कुछ दुखभरी कहानियां शेयर करनी होती हैं। लोग ऐसी पोस्ट्स पर सहानुभूति जताने के लिए कमेंट्स और डीएम में प्यार लुटाने लगते हैं।

    हालांकि, यहां सवाल ये उठता है कि क्या हर पोस्ट सच में दर्द बयां कर रही होती है, या सिर्फ लाइक्स और कमेंट्स पाने की कोशिश होती है?

    Gen Z और मेंटल हेल्थ का दबाव

    Gen Z ऐसी पहली जेनरेशन है जिसने मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात करनी शुरू की। ये अच्छी बात है कि अब लोग अपनी भावनाओं को छिपाने की बजाय खुलकर जाहिर कर रहे हैं, लेकिन Floodlighting का ट्रेंड कहीं-ना-कहीं असली मेंटल हेल्थ इश्यूज को एक कंटेंट स्ट्रेटेजी बना रहा है।

    जो लोग सच में मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं, उनके लिए सोशल मीडिया कोई सुरक्षित जगह नहीं है। उन्हें प्रोफेशनल हेल्प की ज़रूरत होती है, न कि सिर्फ कमेंट्स में "Stay strong" या "We are with you" जैसे सतही शब्दों की।

    फ्लडलाइटिंग का अटेंशन गेम

    सोशल मीडिया पर हर चीज एंगेजमेंट और वायरलिटी पर टिकी होती है। Floodlighting इसका फायदा उठाता है। जब कोई अपनी तकलीफों को ऑनलाइन शेयर करता है, तो लोग भावुक होकर उसे सपोर्ट करने लगते हैं।

    इस तरह, दुख भी एक सोशल करेंसी बन जाता है! जितना ज्यादा आप अपना दर्द दिखाओगे, उतना ज्यादा लोग आपको फॉलो करेंगे।

    फ्लडलाइटिंग के नुकसान

    • मेंटल हेल्थ का मजाक: इस ट्रेंड की वजह से असली मानसिक समस्याओं को हल्के में लिया जाने लगा है।
    • झूठी सहानुभूति: लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर सहानुभूति दिखाते हैं, असल जिंदगी में मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता।
    • Self-Victimization की आदत: बार-बार खुद को विक्टिम की तरह पेश करने से यह एक आदत बन सकती है, जिससे ग्रोथ माइंडसेट खत्म हो सकता है।
    • प्राइवेसी का नुकसान: हर निजी बात ऑनलाइन डालने से लोग आपकी ज़िंदगी का गलत फायदा भी उठा सकते हैं।

    क्या है समाधान?

    • मेंटल हेल्थ को सीरियसली लें: अगर आपको कोई परेशानी है, तो सोशल मीडिया पर अजनबियों से सहानुभूति पाने की बजाय किसी प्रोफेशनल थेरेपिस्ट से बात करें।
    • ऑनलाइन वेरिफिकेशन की जरूरत नहीं: अपनी भावनाओं को मान्यता देने के लिए सोशल मीडिया के लाइक्स और कमेंट्स पर निर्भर मत रहें।
    • सोशल मीडिया का बैलेंस बनाए रखें: हर छोटी-बड़ी बात को ऑनलाइन शेयर करने से पहले सोचें कि क्या यह सच में जरूरी है?

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